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भारत ने पाकिस्तान पर कड़े कदम उठाए, रिश्तों में कटुता, पाकिस्तान अब खुद गहरे संकट में

Pahalgam आतंकी हमले के बाद भारत-पाकिस्तान के रिश्ते एक बार फिर से कटु हो गए हैं. भारत ने Pakistan पर कड़े आर्थिक और रणनीतिक कदम उठाए हैं, जिससे पाकिस्तान बौखलाया हुआ है. इस नई स्थिति में, हाजी पीर दर्रे की भूमिका और भी महत्वपूर्ण हो गई है.

Lalit Sharma
Edited By: Lalit Sharma

नई दिल्ली. Pahalgam terror attack के बाद से भारत और पाकिस्तान के रिश्तों में एक बार फिर से तनाव बढ़ गया है. इस हमले के जवाब में भारत ने पाकिस्तान के खिलाफ सख्त कदम उठाए हैं, जिसमें सिंधु जल समझौते को स्थगित करना और Border seal करने जैसे अहम फैसले शामिल हैं. वहीं, पाकिस्तान ने Shimla agreement को निलंबित करने का निर्णय लिया है और ताशकंद समझौते को भी रद्द करने की तैयारी कर रहा है. यह घटनाक्रम भारत और पाकिस्तान के बीच कूटनीतिक संबंधों में एक नई जटिलता को जन्म दे रहा है.

हाजी पीर दर्रा: भारत और पाकिस्तान के बीच एक रणनीतिक बिंदु

हाजी पीर दर्रा, जो जम्मू और कश्मीर के पुंछ इलाके को पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (PoK) के रावलकोट से जोड़ता है, एक महत्वपूर्ण रणनीतिक बिंदु है. 2,637 मीटर की ऊंचाई पर स्थित यह दर्रा पाकिस्तान के आतंकियों द्वारा भारत में घुसपैठ करने का मुख्य मार्ग है. यह दर्रा न केवल कश्मीर घाटी पर पाकिस्तान की नजर रखने का एक साधन है, बल्कि इसके कब्जे का भारतीय सुरक्षा के लिए भी बेहद महत्वपूर्ण है. यदि भारत ने 1966 में ताशकंद समझौते के तहत इसे पाकिस्तान को सौंपा न होता, तो आज कश्मीर में आतंकवादियों की घुसपैठ रुक सकती थी.

1965 में हुई रणनीतिक चूक

1965 में हुए भारत-पाक युद्ध के बाद ताशकंद समझौता हुआ था, जिसमें भारत ने हाजी पीर दर्रे पर से अपना कब्जा छोड़ दिया था. यह एक ऐतिहासिक चूक मानी जाती है, क्योंकि इस निर्णय ने पाकिस्तान को कश्मीर में आतंकवाद फैलाने का अवसर दिया. अगर उस समय भारत ने इस दर्रे को अपने पास रखा होता, तो कश्मीर में आतंकवाद को पनपने से रोका जा सकता था. यह समझौता भारतीय रणनीति में एक महत्वपूर्ण मोड़ था, जिसने पाकिस्तान को रणनीतिक लाभ दिया.

1965 युद्ध में हाजी पीर दर्रा का महत्व

भारत ने 1965 में पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध में हाजी पीर दर्रे के पास स्थित तीन ऊंची पहाड़ियों पर कब्जा किया था. मेजर रणजीत सिंह दयाल की अगुवाई में भारतीय सेना ने भारी बारिश के बावजूद यह ऊंचाइयाँ हासिल की थीं. हालांकि, ताशकंद समझौते के बाद भारत को यह रणनीतिक स्थान पाकिस्तान को लौटाना पड़ा, जो भारत के लिए एक बड़ा झटका था.

ताशकंद समझौता और उसकी वापसी

ताशकंद समझौते के बाद भारत को पाकिस्तान के कब्जे में 1920 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र लौटाना पड़ा, जिसमें सियालकोट, लाहौर और कश्मीर घाटी के उपजाऊ क्षेत्र शामिल थे. इसके बावजूद, यदि पाकिस्तान इस समझौते को तोड़ता है, तो भारत के पास हाजी पीर दर्रे पर फिर से कब्जा करने का अवसर हो सकता है. यह एक महत्वपूर्ण रणनीतिक बिंदु है, जिस पर नियंत्रण भारत के लिए न केवल कश्मीर घाटी की सुरक्षा के लिहाज से, बल्कि पाकिस्तान की घुसपैठ को रोकने के लिए भी बेहद आवश्यक है.

कश्मीर की सुरक्षा में हाजी पीर की भूमिका

India and Pakistan के बीच बढ़ते तनाव के बावजूद, हाजी पीर दर्रे के पुनः कब्जे को लेकर स्थिति स्पष्ट नहीं है. हालांकि, यदि पाकिस्तान ताशकंद समझौते को तोड़ता है, तो यह एक नई रणनीतिक स्थिति उत्पन्न कर सकता है, जिसमें भारत को अपनी सुरक्षा को और सख्ती से बढ़ाना पड़ेगा. यह समय बताएगा कि भारत पाकिस्तान के खिलाफ अपनी रणनीति में क्या बदलाव करता है, लेकिन हाजी पीर दर्रा का महत्व और उसकी रणनीतिक स्थिति कश्मीर की सुरक्षा के लिए

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25 April 2025, 06:18 PM IST

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