भारत के 'टाइगर मैन' वाल्मीक थापर का 73 वर्ष की उम्र में निधन, इस खतरनाक बीमारी से थे पीड़ित
प्रसिद्ध पर्यावरणविद वाल्मीक थापर का 73 वर्ष की उम्र में दिल्ली में निधन हो गया. उन्होंने बाघों और वन्यजीव संरक्षण के क्षेत्र में चार दशकों तक महत्वपूर्ण योगदान दिया. रणथंभौर फाउंडेशन की स्थापना, 150 से अधिक सरकारी समितियों में भागीदारी, और 30 से अधिक किताबें व वृत्तचित्र उनके कार्यों की मिसाल हैं. वे भारतीय बाघों की वैश्विक आवाज़ माने जाते हैं. उनके निधन को संरक्षण जगत की बड़ी क्षति माना जा रहा है.

प्रसिद्ध पर्यावरणविद और वन्यजीव संरक्षण के अग्रणी चेहरे वाल्मीक थापर का 31 मई 2025 को दिल्ली स्थित उनके आवास पर निधन हो गया. वे 73 वर्ष के थे और लंबे समय से कैंसर से पीड़ित थे. शनिवार को उनका अंतिम संस्कार लोधी रोड इलेक्ट्रिक श्मशान घाट पर किया गया. थापर को भारतीय बाघों के रक्षक के रूप में जाना जाता था.
चार दशकों तक बाघों के लिए संघर्ष
वाल्मीक थापर ने अपने जीवन के 40 से अधिक वर्ष बाघों और अन्य वन्यजीवों के संरक्षण के लिए समर्पित किए. 1988 में उन्होंने रणथंभौर फाउंडेशन की स्थापना की, जो समुदाय-आधारित संरक्षण प्रयासों पर केंद्रित है. वे बाघों के आवास की रक्षा और अवैध शिकार के विरुद्ध कड़े कानूनों के समर्थन में हमेशा मुखर रहे.
सरकारी सलाहकार और नीतिकार
थापर 150 से अधिक सरकारी समितियों और टास्क फोर्स का हिस्सा रहे, जिनमें प्रधानमंत्री के नेतृत्व वाला राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड भी शामिल है. 2005 में सरिस्का टाइगर रिजर्व से बाघों के लुप्त होने के बाद उन्हें विशेष टास्क फोर्स में शामिल किया गया. उन्होंने सह-अस्तित्व की नीति पर असहमति जताते हुए बाघों के लिए समर्पित सुरक्षित क्षेत्रों की मांग की.
लेखन और फिल्म निर्माण में सक्रिय
थापर ने 30 से अधिक पुस्तकें लिखीं या संपादित कीं. उनकी प्रमुख कृतियों में ‘Land of the Tiger’ और ‘Tiger Fire’ शामिल हैं. उन्होंने बीबीसी के साथ मिलकर कई वृत्तचित्र बनाए, जिनके माध्यम से भारत के वन्यजीवों को अंतरराष्ट्रीय मंच मिला. 2024 में वे डॉक्यूमेंट्री ‘My Tiger Family’ में रणथंभौर के 50 वर्षों के अनुभव साझा करते नजर आए.
पत्रकार थे पिता
थापर के पिता रोमेश थापर पत्रकार थे, जबकि चाची रोमिला थापर इतिहासकार हैं. उन्होंने संजना कपूर से विवाह किया और उनके एक पुत्र हैं. कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने उन्हें “संरक्षण का स्तंभ” कहा. वन्यजीव विशेषज्ञ नेहा सिन्हा और निर्मल घोष ने भी उन्हें ‘बाघ संरक्षण का वैश्विक चेहरा’ बताया.


