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गोलियों से चाय तक: पहलगाम की कहानी, जहां डर को हराया गया और उम्मीद की लौ जली

पहलगाम में हाल ही में हुए आतंकी हमले के बाद एक नई उम्मीद जगी है। जहां पहले खौफ का माहौल था, वहीं अब फिर से जिंदगी की रौनक लौट आई है। सैलानियों की वापसी और स्थानीय लोगों के हौसले ने पहलगाम को फिर से रोशन कर दिया है।

Lalit Sharma
Edited By: Lalit Sharma

जम्मू कश्मीर. जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हाल ही में आतंकवादी हमलों के बाद एक बार फिर से सैलानी लौटने लगे हैं, जिससे इस शांत और खूबसूरत इलाके में रौनक लौट आई है. कुछ समय पहले आतंकवादियों के हमले से क्षेत्र में सन्नाटा और डर का माहौल था, लेकिन अब स्थिति में बदलाव दिख रहा है. हालांकि हमले के बाद यहां के स्थानीय लोग सहमे हुए थे, लेकिन साहसी सैलानियों ने इस खूबसूरत घाटी की ओर रुख किया. सैलानियों का कहना है कि स्थानीय लोग उन्हें हमेशा सुरक्षित महसूस कराते हैं और उन्होंने कभी अकेला महसूस नहीं होने दिया. इस तरह की परिस्थितियों में यात्रा करना केवल साहसिक नहीं, बल्कि कश्मीरियत के संदेश को भी जीवित रखने का माध्यम है.

स्थानीय आवाज़ें: कश्मीरियों की चिंता और संघर्ष

स्थानीय निवासी जैसे ड्राइवर मोहम्मद इस्माइल और शॉल विक्रेता रफ़ी अहमद का कहना है कि कश्मीर की यात्रा को छोड़ना उनकी रोज़ी-रोटी के लिए बहुत बड़ा खतरा है. उनका मानना है कि यदि सैलानी फिर से नहीं लौटे तो उनका भविष्य खतरे में पड़ जाएगा. इन सभी स्थानीय लोगों का संदेश साफ है— "हमें अलग मत कीजिए, कश्मीर को छोड़िए मत."

अभिनेता अतुल कुलकर्णी का संदेश

अभिनेता अतुल कुलकर्णी ने भी पहलगाम का दौरा किया और कहा कि "डर का जवाब प्यार से देना चाहिए." उनका मानना है कि पर्यटन केवल व्यवसाय नहीं है, बल्कि यह दिलों को जोड़ने का एक तरीका है. उनका कहना है कि सैलानियों को अपनी बुकिंग कैंसिल नहीं करनी चाहिए, बल्कि कश्मीर की खूबसूरती का अनुभव करना चाहिए. हालांकि स्थानीय लोग जानते हैं कि हालात अभी भी नाजुक हैं, लेकिन उनकी उम्मीदें इस हालात से कहीं ज्यादा मज़बूत हैं. पहलगाम में फिर से चाय की खुमारी और सैलानियों की चहचहाहट ने यह साबित कर दिया है कि घाटी में एक नई शुरुआत हो रही है. यहां के लोग जानते हैं कि आने वाले दिनों में मुश्किलें होंगी, लेकिन उनका हौसला भी उतना ही मजबूत है. पहलगाम में फिर से सैलानियों की वापसी ने इस खूबसूरत इलाके में रौनक और उम्मीद लौटा दी है. आतंकवाद के खौफ के बावजूद यहां के लोग कश्मीरियत और प्यार से इस क्षेत्र को फिर से जीने का संदेश दे रहे हैं.

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29 April 2025, 05:34 PM IST

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