कुलदीप सेंगर की बढ़ सकती है मुश्किलें, दिल्ली HC के फैसले के खिलाफ SC पहुंची CBI
केंद्रीय जांच ब्यूरो ने उन्नाव रेप कांड के दोषी कुलदीप सिंह सेंगर को दिल्ली हाईकोर्ट से मिली जमानत के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है. हाईकोर्ट ने सेंगर की सजा निलंबित कर 15 लाख रुपये के बांड पर जमानत दी थी. CBI ने इसे गंभीर अपराध में अनुचित राहत बताते हुए फैसले को चुनौती दी है.

नई दिल्ली : उन्नाव रेप कांड से जुड़े एक अहम घटनाक्रम में केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) ने दिल्ली हाईकोर्ट के उस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है, जिसमें दोषी कुलदीप सिंह सेंगर की सजा को निलंबित करते हुए उसे जमानत दी गई थी. यह मामला न केवल कानूनी दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि सामाजिक और न्यायिक व्यवस्था पर भी गहरे सवाल खड़े करता है.
CBI की सुप्रीम कोर्ट में याचिका
दिल्ली हाईकोर्ट का आदेश
दिल्ली हाईकोर्ट की एक खंडपीठ, जिसमें न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद और न्यायमूर्ति हरिश वैद्यनाथन शंकर शामिल थे, ने सेंगर की सजा को निलंबित करते हुए उसे जमानत प्रदान की थी. अदालत ने यह राहत कुछ शर्तों के साथ दी थी, जिनमें 15 लाख रुपये का जमानत बांड भरना शामिल था. हाईकोर्ट के इस फैसले के बाद यह मामला एक बार फिर चर्चा में आ गया, क्योंकि यह एक बेहद संवेदनशील और चर्चित केस रहा है.
सजा और पूर्व फैसला
गौरतलब है कि कुलदीप सिंह सेंगर को मार्च 2020 में एक अलग लेकिन संबंधित मामले में सजा सुनाई गई थी. यह मामला पीड़िता के पिता की हिरासत में हुई मौत से जुड़ा था. अदालत ने सेंगर को इस मामले में 10 साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई थी और साथ ही 10 लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया गया था. इससे पहले भी सेंगर को उन्नाव रेप कांड में दोषी ठहराया जा चुका है, जिसने पूरे देश में आक्रोश पैदा किया था.
CBI की आपत्ति और तर्क
CBI का मानना है कि इतने गंभीर अपराध में दोषी व्यक्ति को जमानत देना पीड़ित पक्ष और समाज के लिए गलत संदेश देता है. एजेंसी का तर्क है कि ऐसे मामलों में सजा का निलंबन न्याय प्रक्रिया की गंभीरता को कमजोर करता है. इसी आधार पर CBI ने सुप्रीम कोर्ट से हस्तक्षेप की मांग की है, ताकि हाईकोर्ट के आदेश की समीक्षा की जा सके.
आगे की कानूनी प्रक्रिया
अब इस मामले में सुप्रीम कोर्ट का रुख बेहद अहम माना जा रहा है. शीर्ष अदालत यह तय करेगी कि दिल्ली हाईकोर्ट का फैसला बरकरार रहेगा या फिर CBI की दलीलों को स्वीकार करते हुए आदेश में बदलाव किया जाएगा. इस फैसले का असर न केवल इस मामले पर पड़ेगा, बल्कि भविष्य में ऐसे संवेदनशील मामलों में न्यायिक दृष्टिकोण पर भी प्रभाव डाल सकता है.
उन्नाव रेप कांड पहले ही देश के न्यायिक इतिहास में एक अहम अध्याय बन चुका है और CBI की यह याचिका एक बार फिर यह सवाल खड़ा करती है कि गंभीर अपराधों में दोषियों को राहत देने की सीमा क्या होनी चाहिए.


