Ladakh Unrest: लेह हिंसा में सोनम वांगचुक की भूमिका पर उठे सवाल
Ladakh Unrest: लेह में हिंसा ने लद्दाख की शांति को झकझोर दिया है. चार लोगों की मौत और दर्जनों घायल होने की घटनाओं के बीच, सोनम वांगचुक की भूमिका ने विवाद को और गहरा कर दिया है. भूमि विवाद, FCRA रद्दगी और राजनीतिक उठापटक के बीच लद्दाख अब गंभीर अशांति की स्थिति में है.

Ladakh Unrest: अक्सर अपने शांतिपूर्ण वातावरण, मनोहर झीलों और बौद्ध मठों के लिए जाने जाने वाला लद्दाख इन दिनों हिंसा की खबरों से हिल गया है. वो क्षेत्र जिसे हमेशा भारत का क्राउन ज्वेल कहा जाता रहा, अब आग, आक्रोश और नुकसान की घटनाओं से झकझोर उठा है. इस अशांति के केंद्र में वह व्यक्ति हैं जिन्हें कभी लद्दाख के पर्यावरण रक्षक के रूप में विश्व स्तर पर सम्मान मिला. सोनम वांगचुक जिन्हें अब गिरफ्तार कर उनके ऊपर अशांति भड़काने का आरोप लगाया गया है.
24 सितंबर को लेह में हिंसा की लहर देखी गई. प्रारंभ में राज्य और सिक्स्थ स्केड्यूल सुरक्षा की मांग को लेकर बुलाया गया बंद जल्दी ही अराजकता में बदल गया. दोपहर तक, भीड़ सरकारी और भारतीय जनता पार्टी कार्यालयों पर टूट पड़ी, वाहन जला दिए गए और पुलिस से झड़पें हुईं.
हिंसा में हुई जान-माल की हानि
इस हिंसा में चार लोगों की जान चली गई और दर्जनों घायल हुए. केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल की एक वैन आग से बच पाई, जिसके बाद प्रशासन ने कर्फ्यू लागू किया. यह क्षेत्र हमेशा अपनी आध्यात्मिक शांति के लिए जाना जाता रहा है, लेकिन इस बार पत्थरबाजी और जलते वाहनों के दृश्य ने सभी को झकझोर दिया. अधिकारियों का कहना है कि यह कोई अचानक प्रदर्शन नहीं था, बल्कि लंबे समय से चली आ रही राजनीतिक उत्तेजना का परिणाम था.
वांगचुक की बदलती छवि
सोनम वांगचुक का निर्माण सावधानीपूर्वक हुआ. फिल्म 3 इडियट्स में प्रेरक चरित्र बनने से लेकर वैश्विक पर्यावरण पुरस्कारों तक, उन्होंने खुद को नवप्रवर्तनकर्ता और सुधारक के रूप में प्रस्तुत किया. लेकिन आलोचकों का कहना है कि उनका सार्वजनिक रुख समय के साथ असंगत रहा, जिससे उनके अवसरवाद को उजागर किया गया.
2019 में जब अनुच्छेद 370 रद्द किया गया और लद्दाख को केन्द्र शासित प्रदेश बनाया गया, वांगचुक ने इसे खुशी के साथ स्वीकार किया था. उस समय उनके शब्द थे, "धन्यवाद प्रधानमंत्री, लद्दाख के लंबे समय से चले आ रहे सपने को पूरा करने के लिए नरेंद्र मोदी पीएमओ का धन्यवाद. ठीक 30 साल पहले अगस्त 1989 में लद्दाखी नेताओं ने केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा पाने के लिए आंदोलन शुरू किया था. इस लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण में मदद करने के लिए आप सभी का धन्यवाद!"

अब वही शब्द राज्य स्थापना और धोखाधड़ी के आरोपों में बदल गए हैं. समर्थकों का कहना है कि यह लद्दाख की बदलती जरूरतों को दर्शाता है, जबकि आलोचक इसे दोहरे मानदंड के रूप में देखते हैं.
फ्यांग भूमि विवाद
बहुतों का कहना है कि वांगचुक की मुश्किलें तब शुरू हुईं जब प्रशासन ने उनके प्रिय प्रोजेक्ट को रद्द किया. 21 अगस्त 2025 को लेह के डिप्टी कमिश्नर ने फ्यांग में हाइमालयन इंस्टिट्यूट ऑफ़ अल्टरनेटिव लर्निंग (HIAL) के लिए 2018 में दिए गए 135 एकड़ के 40 साल के पट्टे को रद्द कर दिया.
आधिकारिक आदेश में छह साल की निष्क्रियता, किसी मान्यता प्राप्त विश्वविद्यालय से संबद्धता न होना, स्थल पर कोई ठोस विकास न होना और करोड़ों के पट्टे का भुगतान न होने का हवाला दिया गया. ग्रामीणों ने अतिक्रमण की शिकायत भी की. आदेश में कहा गया कि पट्टा समाप्त हो गया है, बकाया राशि चुकानी होगी और भूमि सरकार को लौटानी होगी.
वांगचुक ने इस फैसले को राजनीतिक निशाना बताया और इसके बाद 35 दिन का अनशन शुरू किया, जो सिक्स्थ स्केड्यूल सुरक्षा की व्यापक मांग के साथ जुड़ा. इस अनशन को लद्दाख के लोगों ने दिल्ली की उदासीनता के प्रति प्रतिक्रिया के रूप में देखा, लेकिन यह ध्यान रखना जरूरी है कि यह भूमि पट्टे रद्द होने के तुरंत बाद शुरू हुआ.
FCRA रद्दगी और वित्तीय सवाल
वांगचुक की समस्याएं केवल भूमि तक सीमित नहीं रहीं. उनके संगठन, स्टूडेंट्स एजुकेशनल एंड कल्चरल मूवमेंट ऑफ़ लद्दाख, का फॉरेन कंट्रीब्यूशन रेगुलेशन एक्ट (FCRA) के तहत लाइसेंस रद्द कर दिया गया. अधिकारियों का आरोप था कि फंड का दुरुपयोग किया गया, वित्तीय रिपोर्टिंग अनियमित रही और पैसे का उपयोग लाइसेंस के तहत अनुमत गतिविधियों के लिए नहीं हुआ.

हालांकि, वांगचुक के वित्तीय तरीकों को लेकर चिंताएं इससे पहले भी थीं. 2007 में, संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (UPA) के शासनकाल में, लेह के डिप्टी कमिश्नर ने इसी संगठन पर विदेशी अनुदान का दुरुपयोग, बिना अनुमति 200 कनाल सरकारी भूमि पर कब्जा और हिल काउंसिल पर दबाव डालने का आरोप लगाया था. सुरक्षा एजेंसियों ने चीन सहित विदेशों से लिंक की भी चिंता जताई थी.
रिकॉर्ड्स दिखाते हैं कि वांगचुक की गतिविधियों को लेकर संदेह पहले से था, लेकिन हाल की रद्दगी को व्यापक असहमति पर लगाम लगाने के प्रयास के रूप में भी देखा गया.
अनशन से गिरफ्तारी तक
वांगचुक का अनशन वैश्विक ध्यान खींचने में सफल रहा. उन्हें कम्बल में लिपटे हुए, शून्य डिग्री तापमान में देखी गई तस्वीरें दुनिया भर में वायरल हुईं. उन्होंने कहा था, "जेल में बंद सोनम वांगचुक, सरकार के लिए बाहर मौजूद सोनम वांगचुक से भी अधिक खतरनाक हैं."
जब लेह में प्रदर्शन हिंसक रूप लेने लगे, प्रशासन ने तुरंत कार्रवाई की. 25 सितंबर को उन्हें राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम के तहत गिरफ्तार किया गया. आलोचकों के लिए यह कानून का पालन था, जबकि समर्थकों के अनुसार यह राजनीतिक दमन का प्रमाण है.
राजनीतिक पृष्ठभूमि
राजनीतिक परिदृश्य ने आग में घी का काम किया. रिपोर्ट्स में कहा गया कि विपक्ष समर्थित समूहों ने सोशल मीडिया पर वांगचुक को आधुनिक गांधी के रूप में पेश करते हुए प्रदर्शन को हवा दी. ऑनलाइन अभियानों में भारत में पहले के अशांति के प्रसंगों के समानता देखी गई, जिससे यह अटकलें लगाई गई कि प्रदर्शन उतने स्वाभाविक नहीं थे.
आलोचक मानते हैं कि यह संवेदनशील सीमा क्षेत्र को अस्थिर करने की कोशिश थी, जबकि समर्थक कहते हैं कि असहमति को विदेशी प्रभाव में रंगना केवल वैध शिकायतों को बदनाम करने की रणनीति है.
लद्दाख और भारत के लिए स्टेक्स
लद्दाख का महत्व केवल सांस्कृतिक सौंदर्य में नहीं बल्कि सुरक्षा दृष्टि में भी मापा जाता है. यह चीन से सटी है, आधुनिक उद्योग के लिए आवश्यक दुर्लभ पृथ्वी खनिजों के भंडार हैं और यहाँ भारतीय सेना के महत्वपूर्ण इकाइयाँ मौजूद हैं. किसी भी लंबी अवधि की अशांति स्थानीय राजनीति से कहीं अधिक जोखिम पैदा कर सकती है.
वांगचुक के अरब स्प्रिंग, श्रीलंका और बांग्लादेश की घटनाओं के संदर्भ ने चिंता बढ़ा दी है. उनके पहले के आगाहियों को अब संवेदनशील संस्थानों में असंतोष बढ़ाने का हिस्सा माना जा रहा है.
वांगचुक प्रकरण अब केवल एक व्यक्ति की सक्रियता तक सीमित नहीं है. यह लद्दाख के राजनीतिक भविष्य, असहमति और अराजकता के बीच संतुलन और भारत के सीमा क्षेत्रों की संवेदनशीलता से जुड़ा हुआ है.
जो नकारा नहीं जा सकता वह यह है कि इस हिंसा में चार लोगों की जान गई, दर्जनों घायल हुए और लद्दाख की नाजुक शांति टूट गई.


