नेशनल हेराल्ड में न घोटाला, न गबन-ED का पूरा केस ही हवा में उड़ गया!

सीनियर वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कोर्ट में ईडी के मामले को पूरी तरह आधारहीन बताया। उन्होंने दलील दी कि न तो कोई पैसा ट्रांसफर हुआ और न ही किसी संपत्ति का स्वामित्व बदला, ऐसे में यह मनी लॉन्ड्रिंग का मामला कैसे बनता है, यह समझ से परे है।

Lalit Sharma
Edited By: Lalit Sharma

National News: दिल्ली की रॉउज एवेन्यू कोर्ट में 4 जुलाई 2025 को सुनवाई के दौरान वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने ईडी की चार्जशीट को “कानूनी तौर पर हास्यास्पद” बताया। उन्होंने कहा कि नेशनल हेराल्ड मामले में ईडी यह साबित करने में असफल रही कि कोई धन का दुरुपयोग या संपत्ति की हेराफेरी हुई है। सिंघवी ने अदालत के सामने कहा कि एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड (AJL) के पास देशभर में जो संपत्तियां हैं, वो आज भी जस की तस हैं। “ना कोई ट्रांजैक्शन हुआ, ना कोई ट्रांसफर—तो मनी ट्रेल कहां है?” उन्होंने तीखा सवाल किया। “यह मनी लॉन्ड्रिंग नहीं, यह राजनीतिक बदले की कहानी है।”

कांग्रेस नेताओं ने कुछ लिया ही नहीं

सिंघवी ने स्पष्ट किया कि एजेएल की एक भी इंच संपत्ति न सोनिया गांधी के नाम हुई और न ही किसी अन्य कांग्रेसी नेता के पास गई। उन्होंने बताया कि यंग इंडियन—a गैर-लाभकारी संस्था—को एजेएल के शेयर इसलिए दिए गए ताकि उसकी पुरानी देनदारियों से छुटकारा मिल सके। "शेयर ट्रांसफर के बाद भी सारी संपत्ति वैधानिक रूप से एजेएल के ही नाम रही," सिंघवी ने कहा। उन्होंने यह भी जोड़ा कि यंग इंडियन कानूनी रूप से कोई लाभांश नहीं बांट सकती। उनके अनुसार, यह पूरा मामला कांग्रेस की विरासत पर हमला है—न कि किसी घोटाले का।

कागज़ी ट्रांसफर को बना दिया मुद्दा

एजेएल से यंग इंडियन में जो ट्रांसफर हुआ, वह सिर्फ कागज़ों पर हुआ-ऐसा सिंघवी ने दोहराया। कोई भी संपत्ति न ट्रांसफर हुई, न किसी निजी हित में गई। तर्क था कि एक डूबती कंपनी को पुनर्जीवित करने के लिए यह कॉर्पोरेट स्ट्रक्चर बदला गया था। “ना कोई संपत्ति खिसकी, ना नाम बदला—फिर यह मनी लॉन्ड्रिंग कैसे?” उन्होंने कहा। उन्होंने कहा कि यंग इंडियन भले ही 99% शेयरधारक बना, पर एजेएल की संपत्तियां आज भी उसी के नाम हैं।

वोडाफोन केस का हवाला

सिंघवी ने सुप्रीम कोर्ट के वोडाफोन फैसले का हवाला देते हुए कहा कि 100% शेयरधारिता का मतलब यह नहीं कि कंपनी की संपत्ति पर मालिकाना हक मिल गया। “अगर यंग इंडियन के पास सारे शेयर हैं, तो भी संपत्ति एजेएल की ही रहेगी,” उन्होंने कहा। उन्होंने यह भी कहा कि ईडी का तर्क न केवल पुराने कानूनी सिद्धांतों के खिलाफ है, बल्कि खतरनाक भी है। “अगर शेयरधारिता को ही संपत्ति की मिल्कियत मान लिया जाए, तो यह कानून का गलत इस्तेमाल होगा,” उन्होंने अदालत से कहा।

ना FIR, ना जांच की शुरुआत

ईडी की प्रक्रिया पर सवाल उठाते हुए सिंघवी बोले, “ना कोई एफआईआर, ना कोई वैध शिकायत, और ना ही जांच की वैधानिक शुरुआत—फिर अदालत इसका संज्ञान कैसे ले?” उन्होंने कहा कि BNSS और PMLA के तहत कोई भी कार्रवाई कानूनी और वैध दस्तावेज़ से शुरू होनी चाहिए। “जिस मामले की नींव ही खोखली हो, वह अभियोजन का आधार कैसे बन सकता है?” उन्होंने कोर्ट से शिकायत खारिज करने की अपील की। “यह मामला आपराधिक नहीं, कॉर्पोरेट पुनर्गठन से जुड़ा है।”

ईडी को 10 साल बाद आई जाग

सिंघवी ने तंज कसते हुए कहा, “2010 से 2021 तक ईडी चुप रही, फिर एक दिन अचानक नींद से जागी और निजी शिकायत को केस बना डाला।” उन्होंने आरोप लगाया कि एजेंसी चुनिंदा राजनीतिक निशाने साध रही है। “न कोई तात्कालिकता, न कोई सबूत—तो फिर ये हड़बड़ी क्यों?” सिंघवी ने अदालत में सवाल उठाया। उन्होंने कहा कि ईडी एक भी ऐसा उदाहरण नहीं दे सकी जिसमें किसी गैर-कानूनी व्यक्ति की शिकायत पर उसने चार्जशीट दायर की हो। “ये कानून नहीं, राजनीति का ड्रामा है।”

गैर-लाभकारी संस्था में घोटाला क्यों?

अपना आखिरी तर्क रखते हुए सिंघवी ने पूछा—कोई भी व्यक्ति एक गैर-लाभकारी संस्था के जरिए मनी लॉन्ड्रिंग क्यों करेगा? उन्होंने बताया कि न तो यंग इंडियन और न ही उसके निदेशक एजेएल की संपत्तियों से कोई लाभ ले सकते हैं। “अगर टाटा या बिड़ला ने एजेएल का कर्ज लिया होता तो क्या उसे भी मनी लॉन्ड्रिंग कहते?” उन्होंने पूछा। उन्होंने कहा कि न पैसा छुआ गया, न लाभ कमाया गया—तो मनी लॉन्ड्रिंग का सवाल ही नहीं उठता। सुनवाई कल फिर जारी रहेगी।

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04 July 2025, 09:02 PM IST

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