जस्टिस वर्मा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव का विपक्ष राज्यसभा में करेगा विरोध, पूर्व कानून मंत्री ने कर दिया ऐलान
कपिल सिब्बल ने उपराष्ट्रपति और सरकार पर जज शेखर यादव के खिलाफ महाभियोग पर देरी और पक्षपात का आरोप लगाया, जबकि यशवंत वर्मा के मामले में तेज़ी दिखाई गई, जिससे न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर सवाल उठे हैं.

पूर्व केंद्रीय मंत्री और राज्यसभा सांसद कपिल सिब्बल ने उपराष्ट्रपति और उच्च सदन के सभापति जगदीप धनखड़ पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं. उन्होंने पूछा कि जब 13 दिसंबर 2024 को इलाहाबाद हाई कोर्ट के जज शेखर कुमार यादव के खिलाफ महाभियोग का नोटिस सौंपा गया था, जिस पर 55 सांसदों के हस्ताक्षर थे, तो उस पर अब तक कोई कार्रवाई क्यों नहीं की गई? उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार जानबूझकर शेखर यादव को बचा रही है, जिन्होंने कथित रूप से सांप्रदायिक बयान दिया था.
न्यायपालिका पर नियंत्रण की कोशिश
सिब्बल ने यह भी ऐलान किया कि वह दिल्ली हाई कोर्ट के जज यशवंत वर्मा के खिलाफ प्रस्तावित महाभियोग का विरोध करेंगे. उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार वर्मा को हटाने के लिए इन-हाउस रिपोर्ट का गलत उपयोग कर रही है, जबकि शेखर यादव के मामले में ऐसी कोई कार्रवाई नहीं की गई. सिब्बल ने कहा कि इस भेदभाव से स्पष्ट होता है कि सरकार कुछ जजों को टारगेट कर रही है और कुछ को बचा रही है.
इन-हाउस जांच में भेदभाव क्यों?
कपिल सिब्बल का कहना है कि राज्यसभा सचिवालय ने सुप्रीम कोर्ट को चिट्ठी भेजकर कहा कि जब तक शेखर यादव के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लंबित है, तब तक उनके खिलाफ इन-हाउस जांच न की जाए. लेकिन यही प्रक्रिया यशवंत वर्मा के मामले में नहीं अपनाई गई. सिब्बल ने पूछा कि क्या न्यायिक प्रक्रियाएं व्यक्ति विशेष पर आधारित होनी चाहिए?
न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर खतरा
सिब्बल ने यह भी कहा कि यदि केवल एक आंतरिक रिपोर्ट के आधार पर किसी जज को हटाया जाता है, तो यह संविधान और न्यायपालिका की स्वतंत्रता के खिलाफ है. उन्होंने इस पर चिंता व्यक्त की कि सरकार न्यायिक जांच प्रक्रिया को नजरअंदाज कर सीधे महाभियोग लाने की कोशिश कर रही है.
महाभियोग प्रस्ताव पर देरी क्यों?
सिब्बल ने पूछा कि महाभियोग प्रस्ताव के हस्ताक्षरों की पुष्टि में छह महीने लगना क्या उचित है? उन्होंने कहा कि यदि सरकार इस प्रक्रिया को जानबूझकर लटका रही है ताकि शेखर यादव 2026 में रिटायर हो जाएं, तो यह न्यायिक प्रक्रिया का मज़ाक है.
VHP के कार्यक्रम में भड़काऊ भाषण का आरोप
13 दिसंबर को विपक्षी दलों के 55 सांसदों ने राज्यसभा में एक नोटिस दिया था, जिसमें आरोप लगाया गया कि VHP के एक कार्यक्रम में जज शेखर यादव ने संविधान का उल्लंघन करते हुए भड़काऊ बयान दिया था. इस नोटिस में कहा गया था कि उन्होंने अल्पसंख्यकों के खिलाफ पूर्वाग्रहपूर्ण भाषा का प्रयोग किया.