आपसी सहमति से बनाए गए शारीरिक संबंध अपराध नहीं... कलकत्ता हाईकोर्ट
कलकत्ता हाईकोर्ट की जलपाईगुड़ी बेंच ने निर्णय दिया है. इस फैसले में उन्होंने कहा कि दो विवाहित लोगों के बीच आपसी सहमति से बना संबंध, यदि दोनों को एक-दूसरे की वैवाहिक स्थिति की जानकारी हो, तो उसे शादी के झूठे वादे पर धोखा नहीं माना जा सकता है और न ही यह कोई आपराधिक कृत्य है.

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी स्थित कलकत्ता हाईकोर्ट की बेंच ने एक बेहद अहम फैसला सुनाया है, जिससे वैवाहिक रिश्तों के बाहर बने आपसी सहमति से संबंधों को लेकर कानून की स्थिति स्पष्ट हो गई है. अदालत ने कहा कि अगर दो विवाहित लोग परस्पर सहमति से शारीरिक संबंध बनाते हैं, तो उसे इस आधार पर आपराधिक नहीं ठहराया जा सकता कि एक पक्ष ने बाद में शादी से इनकार कर दिया.
जस्टिस बिभास रंजन डे ने शुक्रवार को यह फैसला सुनाते हुए साफ किया कि इस तरह के संबंध को ‘झूठे विवाह के वादे पर धोखा’ नहीं माना जा सकता, जब तक कि इसमें जबरदस्ती या प्रलोभन का कोई स्पष्ट प्रमाण न हो. कोर्ट ने यह भी कहा कि जब दोनों पक्ष एक-दूसरे की वैवाहिक स्थिति से भलीभांति परिचित हों, तो उनकी सहमति को संदेह की दृष्टि से नहीं देखा जा सकता.
क्या था मामला?
यह केस एक विवाहित महिला की शिकायत पर आधारित था, जिसमें उसने एक विवाहित पुरुष पर दो साल तक चले प्रेम-सम्बंध के दौरान शादी का झूठा वादा कर शारीरिक संबंध बनाने का आरोप लगाया था. शिकायत 8 सितंबर 2024 को दर्ज कराई गई थी. महिला ने यह भी बताया कि जब उसके पति को इस संबंध की जानकारी हुई और उसने तलाक की प्रक्रिया शुरू की, तो महिला ने आरोपी पुरुष से विवाह की मांग की. जब पुरुष ने इनकार कर दिया, तो महिला ने उसके खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज करवा दिया.
अदालत ने क्या कहा?
जांच के बाद अदालत को ऐसा कोई साक्ष्य नहीं मिला जिससे यह सिद्ध हो सके कि आरोपी ने जानबूझकर धोखे की नीयत से संबंध बनाए थे. जस्टिस डे ने भारतीय दंड संहिता की धारा 69 (छल से यौन संबंध) और धारा 351(2) (आपराधिक धमकी) के तहत लगाए गए आरोपों को खारिज कर दिया. जज ने कहा, "जब दोनों पक्ष एक-दूसरे की वैवाहिक स्थिति जानते हुए आपसी सहमति से संबंध बनाते हैं, तो इसे धोखाधड़ी नहीं माना जा सकता. यह आपराधिक मामला नहीं है."
वयस्कों की सहमति को कोर्ट ने दिया महत्व
अदालत ने इस फैसले के माध्यम से यह स्पष्ट कर दिया कि वयस्कों के बीच सहमति से बना रिश्ता, जब तक उसमें धोखा या जबरदस्ती न हो, उसे आपराधिक मानदंडों में नहीं गिना जाएगा. इससे ऐसे मामलों में व्यक्तिगत स्वायत्तता और परिपक्वता को कानूनी मान्यता मिलती है.
कानून और निजी रिश्तों की नई व्याख्या
इस फैसले से उन मामलों में बड़ी राहत मिलेगी, जहां आपसी सहमति से रिश्ते बने हों लेकिन बाद में संबंध बिगड़ने पर एक पक्ष इसे जबरदस्ती या धोखा बताने की कोशिश करे. कोर्ट ने संकेत दिया कि अगर रिश्ता आपसी सहमति से बना हो, तो बाद में शादी न होने को आधार बनाकर आपराधिक मामला नहीं बनाया जा सकता.