Hindutva in Rajasthan Assembly Election 2023 : राजस्थान विधानसभा चुनाव में बीजेपी किसी भी हाल में हिंदुत्व के मुद्दे से भटकना नहीं चाहती इसके लिए चाहे उसे कोई भी कीमत चुकानी पड़े. बीजेपी हिंदुत्व के मुद्दे पर आज भी कायम है यह दिखाने के लिए पार्टी ने मसूदा सीट से अपने प्रत्याशी अभिषेक सिंह से टिकट वापस ले लिया. उनकी जगह वीरेंद्र सिंह कानावत को उम्मीदवार घोषित किया है. सोशल मीडिया पर तेजी से अफवाह फैली कि अभिषेक सिंह हिंदू नहीं बल्कि मुस्लिम हैं। इसके बाद बीजेपी ने उनसे किनारा कर लिया. हालांकि, अभिषेक सिंह का कहना है कि वह रावत-राजपूत हैं और हिंदू धर्म को मानते हैं. बीजेपी ने इस सीट पर प्रत्याशी को बदलने के पीछे की कोई आधिकारिक वजह नहीं बताई, लेकिन मुस्लिम होने की अफवाहों पर अभिषेक सिंह को हटाकर बीजेपी ने राजस्थान में यह संदेश देने की कोशिश की है कि 200 सीटों में उसने एक भी मुस्लिम उम्मीदवार को नहीं दिया. 

हिंदुत्व और तुष्टिकरण बीजेपी का अहम हथियार

चुनाव देश का हो या फिर किसी राज्य का लेकिन हिदुत्व और धार्मिक तुष्टिकरण हर चुनाव में बीजेपी का हथियार होता है. बीजेपी ने राजस्थान में हिंदुत्व के एजेंडे को बढ़ावा देने के लिए मसूदा के उम्मीदवार को बदला है। ध्रुवीकरण की राजनीति को आगे बढ़ाने के लिए जयपुर की हवा महल सीट से भगवाधारी संत बाल मुकुंद आचार्य को चुनावी मैदान में उतारा है. बाल मुकुंद को बीजेपी के पुराने नेताओं को दरकिनार कर टिकट दिया गया है.  उनकी प्रसिद्धि की खास वजह जयपुर में हिंदू मंदिरों के रखरखाव के लिए हाल ही में अचानक शुरू हुए अभियान से हुई है. 

हालांकि हवा महल सीट पर बड़ी मुस्लिम आबादी है ऐसे में जयपुर के वाल्ड सिटी क्षेत्र में मतदाताओं का ध्रुवीकरण करने के लिए संत बाल मुकंद को बीजेपी ने टिकट दिया है. इस सीट पर बीजेपी नेताओं द्वारा अक्सर जबरन हिंदू पलायन के आरोप लगाए जाते रहे हैं. बीजेपी ने जयपुर के अलावा गोहत्या और सांप्रदायिक तनाव के लिए बदनाम मेवात क्षेत्र के अलवर जिले की तिजारा सीट से बाबा बालकनाथ को उम्मीदवार बनाया है. राजस्थान में बाबा बालकनाथ को ‘राजस्थान का योगी’ कहा जाता है. बालकनाथ बुलडोजर पर सवार होकर अपना नामांकन दाखिल करने पहुंचे थे और यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ उनका समर्थन करने तिजारा पहुंचे थे. बाबा बालकनाथ ध्रुवीकरण के लिए तीखे तेवर अपनाते हैं. उन्होंने सीएम अशोक गहलोत पर “फतवा सरकार” चलाने और मुसलमानों के लिए काम करने का आरोप लगाया है. 

राम मंदिर के मुद्दे ने पकड़ा जोर
राज्य के पश्चिमी हिस्से में केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत एक वायरल वीडियो में लोगों से बीजेपी को वोट देने का आग्रह करते हुए यह तर्क देते दिखाई दे रहे हैं- कंधों से बड़ी छाती नहीं होती, धर्म से बड़ी जाति नहीं होती. ये सनातन धर्म को बचाने का चुनाव है. इसी तरह, पूर्वी राजस्थान में बीजेपी सांसद रमेश बिधूड़ी एक वीडियो में दावा करते दिखाई दे रहे हैं कि पाकिस्तान राजस्थान चुनावों पर नजर रख रहा है. उनका दावा है कि “टोंक सीट पर लाहौर नजर रखे हुए है. हमें इस बात का ध्यान रखना होगा कि चुनाव के बाद लाहौर में लड्डू न बांटे जाएं.” पिछले हफ्ते एक रैली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कन्हैया लाल की सिर काटने की घटना को याद कर दावा किया था कि कन्हैया लाल की हत्या राज्य सरकार पर एक बड़ा धब्बा है जो आतंकवादियों के साथ सहानुभूति रखती है.

कांग्रेस के हिंदू समर्थक बयान बनाम बीजेपी का हिंदुत्व
बीजेपी हिंदुत्व के मुद्दे पर हिंदू मतदाताओं को हमेशा अपने पक्ष में एकजुट करने का काम करती है. लेकिन हिंदुत्व के मुद्दे पर इस बार कांग्रेस की प्रतिक्रिया बिल्कुल नई और आश्चर्यजनक है. हिंदुत्व के मुद्दे से निपटने के लिए कांग्रेस धर्मनिरपेक्ष मुद्दों और गहलोत सरकार की कल्याणकारी योजनाओं को जनता के सामने पेश कर रही है. वहीं ‘तुष्टिकरण’ की राजनीति के आरोपों का जवाब देने की बजाए कांग्रेस चिरंजीवी स्वास्थ्य बीमा योजना से लेकर पुरानी पेंशन योजना को फिर से लागू करने और पूरी वयस्क आबादी के लिए न्यूनतम गारंटी आय देने तक के अपने कामों को सामने रख रही है.

राजस्थान में कांग्रेस अबकी बार जातिगत जनगणना करने पर जोर देती हुई नजर आ रही है. इससे पार्टी को मंडल/कमंडल नैरेटिव को दोबारा खड़ा करने की उम्मीद है क्योंकि राजस्थान में बहुत से लोग आमतौर पर धर्म और जाति को प्राथमिकता देते हैं. पिछले हफ्ते राहुल गांधी ने राज्य में चुनावी रैलियों को संबोधित करते हुए कहा कि अगर पार्टी आगामी विधानसभा चुनाव में सत्ता में आती है तो राजस्थान में जातिगत सर्वेक्षण कराएगी.

जाति जनगणना की बात कहकर राहुल गांधी चुनाव में धर्म के ध्रुवीकरण का मुकाबला पिछड़ा वर्ग (OBC) आबादी के सहारे करते दिखाई दे रहे हैं। जबकि बीजेपी जातिगत जनगणना के सख्त खिलाफ है. यहां पर देखने लायक बात यह है कि विवादास्पद रूप से ही सही, कांग्रेस भी धार्मिक प्रतीकवाद का अपना ब्रांड पेश कर बीजेपी के हिंदुत्व को नाकाम करने की कोशिश कर रही है.

हिंदुत्व की योजनाओं पर कांग्रेस का ध्यान
सीएम अशोक गहलोत मध्य प्रदेश के कमलनाथ की तरह बढ़-चढ़कर हिंदू होने का दिखावा नहीं कर रहे हैं, लेकिन वह अपनी सरकार द्वारा शुरू की गई हिंदू-अनुकूल योजनाओं को पेश करने में पीछे नहीं हैं. इनमें गायों के लिए गौशालाओं को बड़े अनुदान से लेकर राज्य भर के प्रमुख मंदिरों के नवीनीकरण और तीर्थयात्रियों के लिए सुविधाओं पर करोड़ों रुपये खर्च करना शामिल है.

राजस्थान में, जब कांग्रेस ने अपनी ‘गारंटी यात्रा’ शुरू की, तो गहलोत और पार्टी के राज्य प्रभारी–सुखजिंदर सिंह रंधावा ने जयपुर के सबसे मशहूर गणेश मंदिर में पूजा की. इसी तरह, जब पार्टी के बड़े नेता चुनावी रैलियों के लिए आते हैं, तो वे खासतौर से स्थानीय मंदिरों में पूजा पाठ करते हैं इससे हिंदुत्व को लेकर कांग्रेस की छवि सुधार को सुधारने का प्रयास किया जाता है. इसी क्रम में पार्टी महासचिव प्रियंका गांधी ने डूंगरपुर जिले में एक जनसभा में ‘गायत्री मंत्र’ का जाप भी किया. कांग्रेस की इस रणनीति से बीजेपी पर हिंदू विरोधी होने के आरोपों की हवा निकाल रही है.

खुद को बेहतर हिंदू साबित करने का प्रयोग
कांग्रेस के कुछ नेताओं का कहना है कि पार्टी धार्मिक प्रतीकवाद को अपनाकर खुद को बीजेपी की तुलना में बेहतर हिंदू साबित करने का प्रयोग कर रही है. उदयपुर चिंतन शिविर और रायपुर प्लेनरी में 2019 की हार पर एके एंटनी की रिपोर्ट के बाद से, कांग्रेस ‘हिंदू विरोधी लेबल को हटाने की दिशा में काम कर रही है. कांग्रेस की मौजूदा रणनीति बीजेपी के द्वारा उसे ‘हिंदू विरोधी’ बताने की साजिश को नाकाम करना है. यह प्रयोग कितना कामयाब हो पाता है, यह बात तो तीन दिसंबर को राजस्थान चुनाव के परिणाम आने के बाद ही साफ हो पाएगी. 

राजस्थान में जैसे-जैसे हिंदुत्व पर बहस गर्म होती जा रही है, अल्पसंख्यक मुद्दों और सवालों को पूरी तरह नजरअंदाज किया जा रहा है. बीजेपी आक्रामक ध्रुवीकरण की कोशिश कर रही है, लेकिन किसी भी पार्टी ने यह सवाल नहीं उठाया कि बीजेपी ने एक भी मुस्लिम उम्मीदवार क्यों चुनाव में टिकट क्यों नहीं दिया. 2011 की जनगणना के अनुसार राजस्थान की आबादी में 9 फीसद से अधिक मुस्लिम हैं.

फिलहाल, राजस्थान की चुनावी लड़ाई में ध्रुवीकरण की राजनीति एक प्रमुख मुद्दा है. जहां बीजेपी अपनी मुख्य अभियान रणनीति के रूप में आक्रामक ध्रुवीकरण पर भरोसा कर रही है, वहीं कांग्रेस भी धार्मिक हथकंडों से बहुसंख्यक आबादी को लुभाने के लिए हिंदू प्रतीकवाद की रणनीति पर काम कर रही है. यह अलग बात है कि कांग्रेस की कल्याणकारी योजनाएं और गरीब-समर्थक योजनाएं उसका प्रमुख हथियार हैं.