भव्य राम मंदिर बन चुका, अब अगला कदम...RSS प्रमुख मोहन भागवत ने बताया अब आगे कौन सा मंदिर बनेगा
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ(RSS)के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने आरएसएस के शताब्दी वर्ष समारोह के तहत कोथरूड के यशवतराव चौव्हाण नाट्यगृह में आयोजित आभार समारोह को संबोधित करते हुए कहा कि सबकी भलाई का प्रतीक भव्य राम मंदिर अब बन चुका है. अब अगला कदम शानदार, शक्तिशाली और सुंदर राष्ट्रीय मंदिर बनाना है.

नई दिल्ली : राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने मंगलवार को स्पष्ट कहा कि अयोध्या में भव्य राम मंदिर का निर्माण भारत की सांस्कृतिक चेतना का प्रतीक है, लेकिन यह केवल पहला कदम है. अब देश को “शानदार, शक्तिशाली और सुंदर राष्ट्रीय मंदिर” बनाने की दिशा में आगे बढ़ना होगा. वे पुणे के कोथरूड स्थित यशवंतराव चव्हाण नाट्यगृह में आरएसएस के शताब्दी वर्ष समारोह के तहत आयोजित आदित्य प्रतिष्ठान के आभार कार्यक्रम में बोल रहे थे.
संघ की कार्यशैली पर भागवत का दृष्टिकोण
‘वसुधैव कुटुंबकम’ ने मानवता को जोड़कर रखा
कार्यक्रम में आदित्य प्रतिष्ठान के अध्यक्ष शंकर अभ्यंकर ने कहा कि दुनिया में कई बार हमलों के कारण सभ्यताएं नष्ट हो गईं, लेकिन भारत की हिंदू संस्कृति ने हमेशा ‘वसुधैव कुटुंबकम’ के मंत्र के साथ मानवता को जोड़कर रखा. उन्होंने दावा किया कि ब्रिटिश शासन भी भारत की पहचान तोड़ने का प्रयास था, लेकिन भारत की सांस्कृतिक नींव इतनी मजबूत थी कि वह टिक पाई.
सनातन संस्कृति और लोकतंत्र का संबंध
जगद्गुरु शंकराचार्य विजयेंद्र सरस्वती स्वामी ने कहा कि सनातन धर्म सिर्फ आध्यात्मिक विचारधारा नहीं, बल्कि मानवता को कल्याण की दिशा देने वाला मार्ग है. उन्होंने कहा कि भारत के विविधतापूर्ण समाज में लोकतंत्र इसलिए सफल है क्योंकि लोकतांत्रिक मूल्य सनातन संस्कृति की मूलभूत सोच में समाहित हैं. स्वामी ने इस बात पर जोर दिया कि “अच्छे और सज्जन लोगों को मजबूत बनाना ही सच्चे लोकतंत्र का आधार है.”
कार्यक्रम में हुए प्रमुख आयोजन
समारोह के दौरान वैश्विक संत भारती महाविष्णु मंदिर का शिलान्यास किया गया, जिसे विश्व आध्यात्मिक एकता का प्रतीक माना जा रहा है. इसी कार्यक्रम में ‘विश्वकोष खंड भारतीय उपासना’ के तीसरे संस्करण का विमोचन किया गया. साथ ही संगीत साधक जितेंद्र अभ्यंकर के ऑडियो एल्बम ‘पंढरिश’ को भी लॉन्च किया गया. कार्यक्रम का उद्देश्य भारतीय संस्कृति, अध्यात्म और समाज संगठन की दिशा में किए जा रहे प्रयासों के प्रति आभार प्रकट करना था.


