सुप्रीम कोर्ट ने पहली बार तोड़ी परंपरा, पहलगाम आतंकी हमले के पीड़ितों के लिए रखा दो मिनट का मौन
भारत के अगले मुख्य न्यायाधीश बनने जा रहे न्यायमूर्ति भूषण गवई ने पहलगाम आतंकी हमले पर दुख जताया और सुप्रीम कोर्ट द्वारा मौन रखे जाने को राष्ट्रीय एकजुटता का प्रतीक बताया. उन्होंने युद्धविराम का समर्थन करते हुए शांति की आवश्यकता पर बल दिया. पहले बौद्ध मुख्य न्यायाधीश के रूप में वे बुद्ध पूर्णिमा के बाद शपथ लेंगे. न्यायिक सेवा में उनका लंबा अनुभव रहा है. उन्होंने संविधान को सर्वोच्च बताया और सेवानिवृत्ति के बाद किसी पद को स्वीकार न करने की घोषणा की.

भारत के अगले मुख्य न्यायाधीश बनने जा रहे न्यायमूर्ति भूषण रामकृष्ण गवई ने जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए हालिया आतंकी हमले पर गहरा शोक व्यक्त किया, जिसमें 26 लोगों की जान चली गई. उन्होंने कहा, "जब देश संकट में होता है, तो सुप्रीम कोर्ट उससे अलग नहीं रह सकता, हम भी देश का हिस्सा हैं." यह टिप्पणी उन्होंने उस दुर्लभ क्षण के संदर्भ में दी जब सुप्रीम कोर्ट ने इस हमले की निंदा करते हुए एक मिनट का मौन रखा एक परंपरा जो केवल 30 जनवरी को महात्मा गांधी की पुण्यतिथि पर निभाई जाती है.
शांति और युद्धविराम पर विचार
जस्टिस गवई ने भारत-पाकिस्तान के बीच हालिया युद्धविराम का समर्थन करते हुए कहा कि युद्ध किसी के लिए लाभकारी नहीं होता. उन्होंने यूक्रेन-रूस और गाजा-इज़राइल संघर्ष का उदाहरण देते हुए बताया कि युद्धों में निर्दोष नागरिक सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं. उनके अनुसार, युद्धविराम से राहत की आशा है और यह राष्ट्रीय हित में एक सकारात्मक पहल है.
बौद्ध पृष्ठभूमि और पारिवारिक मूल्य
न्यायमूर्ति गवई देश के पहले बौद्ध मुख्य न्यायाधीश होंगे और संयोगवश वह बुद्ध पूर्णिमा के एक दिन बाद 14 मई को पदभार ग्रहण करेंगे. उन्होंने बताया कि इस पावन अवसर पर वह इंद्रप्रस्थ पार्क स्थित शांति स्तूप जाकर श्रद्धांजलि देंगे. उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि सेवा निवृत्ति के बाद वह किसी पद को स्वीकार नहीं करेंगे. उन्होंने कहा, “मुख्य न्यायाधीश का पद सर्वोच्च है, इसके बाद कोई भी पद उपयुक्त नहीं लगता, चाहे वह राज्यपाल ही क्यों न हो.”
राजनीतिक रुख और व्यक्तिगत जीवन
राजनीति में आने की संभावना पर उन्होंने कहा कि वह अपने पिता आर. एस. गवई की तरह राजनीति में नहीं जाएंगे. आर. एस. गवई एक प्रमुख अंबेडकरवादी नेता और पूर्व राज्यपाल रह चुके हैं. जस्टिस गवई ने बताया कि वह आज भी वर्ष में तीन बार अपने गांव जाते हैं.
संविधान की सर्वोच्चता पर जोर
सुप्रीम कोर्ट और मुख्य न्यायाधीश पर की गई राजनीतिक टिप्पणियों पर प्रतिक्रिया देते हुए उन्होंने कहा, “भारत में सर्वोच्च सिर्फ संविधान है.” यह टिप्पणी उपराष्ट्रपति और कुछ नेताओं द्वारा सुप्रीम कोर्ट की भूमिका पर दिए गए बयानों के जवाब में आई.
न्यायिक सेवा का अनुभव
न्यायमूर्ति गवई ने 1985 में वकालत शुरू की और 2003 में उच्च न्यायालय के अतिरिक्त न्यायाधीश बने. उन्हें 2019 में सुप्रीम कोर्ट का जज नियुक्त किया गया. पिछले छह वर्षों में वे लगभग 700 बेंचों में शामिल रहे हैं, जो विभिन्न संवैधानिक, प्रशासनिक और नागरिक मामलों से जुड़े थे.


