जम्मू-कश्मीर पुलिस की प्रताड़ना पर सुप्रीम कोर्ट सख्त, कहा- मानवाधिकार उल्लंघन बर्दाश्त नहीं
जम्मू-कश्मीर में पुलिस हिरासत के दौरान हुई कथित बर्बरता के एक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए न सिर्फ CBI जांच के आदेश दिए हैं, बल्कि पीड़ित कांस्टेबल को 50 लाख रुपये का मुआवजा देने का निर्देश भी दिया है. यह मामला कुपवाड़ा के ज्वाइंट इंटरोगेशन सेंटर में हुए टॉर्चर से जुड़ा है, जहां पीड़ित पुलिसकर्मी ने शारीरिक और मानसिक रूप से प्रताड़ित किए जाने के गंभीर आरोप लगाए हैं.

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को जम्मू-कश्मीर पुलिस के एक कांस्टेबल के साथ हिरासत में हुई कथित बर्बरता को लेकर बड़ा फैसला सुनाया है. कोर्ट ने केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) को मामले की जांच का आदेश देते हुए जम्मू-कश्मीर प्रशासन को पीड़ित कांस्टेबल को 50 लाख रुपये का मुआवजा देने के निर्देश दिए हैं. यह मामला कुपवाड़ा के ज्वाइंट इंटरोगेशन सेंटर में कथित टॉर्चर से जुड़ा है, जिसमें पीड़ित ने गंभीर आरोप लगाए हैं.
याचिकाकर्ता ने अदालत से मांग की थी कि घटना की स्वतंत्र जांच हो और जिन अधिकारियों ने यह क्रूरता की, उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज हो. साथ ही उसने कुपवाड़ा पुलिस स्टेशन में उसके खिलाफ दर्ज FIR (धारा 309 IPC) को रद्द करने की मांग भी की थी. कोर्ट ने मामले की गंभीरता को देखते हुए सख्त रुख अपनाया और जांच की निगरानी की बात कही.
हिरासत में बर्बरता के गंभीर आरोप
पीड़ित पुलिस कांस्टेबल ने आरोप लगाया है कि उसे कुपवाड़ा के इंटरोगेशन सेंटर में हिरासत के दौरान न केवल बेरहमी से पीटा गया, बल्कि उसके शरीर के कई हिस्सों को क्षति पहुंचाई गई. उसने कोर्ट में कहा कि उसके साथ इस हद तक टॉर्चर किया गया कि वह मानसिक और शारीरिक रूप से टूट गया.
कोर्ट ने CBI जांच के दिए निर्देश
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को गंभीर मानवाधिकार उल्लंघन मानते हुए सीबीआई जांच के आदेश दिए हैं. साथ ही कोर्ट ने जम्मू-कश्मीर प्रशासन को निर्देश दिया है कि वह पीड़ित को 50 लाख रुपये की मुआवजा राशि जल्द से जल्द दे. कोर्ट ने मामले की प्रगति पर नजर रखने के लिए सितंबर तक स्टेटस रिपोर्ट भी मांगी है.
SIT या CBI जांच की थी मांग
याचिकाकर्ता ने अपनी याचिका में मांग की थी कि इस गंभीर मामले की जांच SIT या CBI जैसी स्वतंत्र एजेंसी से कराई जाए ताकि सच्चाई सामने आ सके और दोषियों को सजा मिल सके. उसने कोर्ट से कहा कि पुलिस द्वारा दर्ज की गई FIR को भी रद्द किया जाए, क्योंकि वह एक तरह से झूठा केस बनाकर उसे फंसाने की कोशिश है.
पहले भी सामने आ चुके हैं ऐसे मामले
गौरतलब है कि इस साल की शुरुआत में जम्मू-कश्मीर के कठुआ जिले के बिलावर इलाके में हिरासत में मौत का एक और मामला सामने आया था. उस मामले में एक गुज्जर युवक को आतंकियों से संबंध होने के आरोप में हिरासत में लिया गया था और कथित रूप से पुलिस टॉर्चर के बाद उसने आत्महत्या कर ली थी. इसने भी राज्य में पुलिस हिरासत में हो रहे कथित अत्याचारों पर सवाल खड़े कर दिए थे.
सुप्रीम कोर्ट की सख्ती
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला न केवल एक पीड़ित को न्याय दिलाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि देश की सर्वोच्च अदालत मानवाधिकार उल्लंघन के मामलों में किसी भी तरह की कोताही बर्दाश्त नहीं करेगी. अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि जांच निष्पक्ष और पारदर्शी होनी चाहिए, ताकि भविष्य में इस तरह की घटनाओं को रोका जा सके.


