लालू के आंगन से निकला बागी बेटा, अब अखिलेश की साइकिल की करेगा सवारी!
तेज प्रताप यादव ने जब लालू प्रसाद के घर से बाहर निकल साइकिल की सवारी चुनी, तो यह महज़ पारिवारिक बगावत नहीं रही। यह बिहार की राजनीति में नए समीकरण का ऐलान था।

National News: तेज प्रताप अब सिर्फ लालू यादव के बेटे नहीं, बल्कि अपने दम पर सियासत के मैदान में उतर चुके हैं। समाजवादी पार्टी की ओर बढ़ते उनके कदम बिहार की राजनीति को नई दिशा देने वाले हैं। लालू की पार्टी और परिवार से अलग होना, कोई मामूली फैसला नहीं है। यह उनकी एक सोची-समझी बगावत है, जिसे उन्होंने दिल और रणनीति दोनों से निभाया है। अब तेज, खुद को लालू की परछाईं से हटाकर एक अलग पहचान गढ़ना चाहते हैं। ये राह मुश्किल है, लेकिन वो इससे पीछे हटने नहीं वाले।
एक वीडियो कॉल ने देश की राजनीति को चौंका दिया। तेज प्रताप और अखिलेश यादव के बीच हुई बातचीत महज़ शिष्टाचार नहीं थी, बल्कि उसमें भावनाएं और इरादे दोनों छुपे थे। तेज ने कहा, "अखिलेश मेरे दिल के क़रीब हैं।" और अखिलेश ने उनसे चुनाव लड़ने की प्लानिंग तक पूछ ली। क्या अब साइकिल पर चढ़कर तेज, लालू को चौंकाने निकलेंगे? सियासी गलियारों में इस दोस्ती को 2025 की सबसे चौंकाने वाली चाल कहा जा रहा है।
आज मेरे परिवार के सबसे प्यारे सदस्यों में से एक यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री माननीय श्री अखिलेश यादव जी से वीडियो कॉल पर लंबी वार्ता हुई,इस दौरान बिहार के राजनीतिक हालातों पर भी चर्चा हुई....अखिलेश जी हमेशा से ही मेरे दिल के काफी करीब रहे है और आज जब मेरा हालचाल लेने के लिए उनका… pic.twitter.com/5BLu1FxEsc
— Tej Pratap Yadav (@TejYadav14) June 25, 2025
घर से निकले, पर हाथ खाली नहीं
तेज प्रताप को लालू ने घर और पार्टी दोनों से बाहर निकाल दिया। वजहें चाहे निजी रही हों या सार्वजनिक, लेकिन इसका असर सियासत पर पड़ना तय है। तेज ने न सफाई दी, न झुकाव दिखाया—बस अपने रास्ते पर चल पड़े। अब उनकी ये बगावत उनके नए राजनीतिक भविष्य की नींव बन सकती है। लालू का ये फैसला उन्हें भारी पड़ सकता है—शायद पिता के विरोध से निकला बेटा अब सबसे बड़ा प्रतिद्वंद्वी बन जाए।
बिहार की सियासत का नया नक्शा
तेज प्रताप और अखिलेश यादव के बीच संभावित गठबंधन ने नए जातीय समीकरणों को जन्म दिया है। यादव वोट बैंक, मुस्लिम समर्थन और युवाओं की अपील—इस नई जोड़ी में सब कुछ है। सपा को बिहार में पांव जमाने की ज़रूरत है, तेज को मंच चाहिए—और दोनों को ही एक-दूसरे की ज़रूरत है। बीजेपी और जेडीयू के खिलाफ यह गठबंधन बड़ा सरप्राइज़ बन सकता है। राजनीति में जो सबसे चुप होता है, वही चाल सबसे तेज़ चलता है।
तेज की चाल में आत्मसम्मान
तेज की ये बगावत कुछ लोगों को धोखा लग सकती है, लेकिन समर्थक इसे आत्मसम्मान की जंग बता रहे हैं। तेज कभी पिता की छाया में दबे रहे, अब वो खुद की पहचान बना रहे हैं। इस फैसले में इमोशन भी है और प्लानिंग भी। अगर ये चाल चली गई तो बिहार में तेज का नाम स्वतंत्र नेता के रूप में दर्ज हो जाएगा। यह सिर्फ एक बेटे की नहीं, बल्कि पूरे सिस्टम से अलग हटकर अपनी राह बनाने की बगावत है।
लहर बनने लगी है चर्चा
बिहार की गलियों, सोशल मीडिया और राजनीतिक अड्डों में अब एक ही चर्चा है—तेज और अखिलेश। पोस्टर लगने लगे हैं, होर्डिंग्स में साइकिल के साथ तेज की तस्वीरें आने लगी हैं। यह लहर अभी शुरुआत है। तेज भी अब पब्लिक मीटिंग्स और भाषणों में खुलकर बोलने लगे हैं। हर बार उनकी बात में एक नया तेवर होता है—जो बताता है कि अब वो सिर्फ नेता नहीं, बागी योद्धा हैं।
अगला मोड़, चुनावी रणभूमि
तेज प्रताप ने जो राह चुनी है, वो आसान नहीं है। लेकिन अगर वह इस बगावत को रणनीति और समर्थन में बदल पाए, तो 2025 की तस्वीर बदल सकती है। साइकिल की सवारी उन्हें कहां ले जाएगी—यह वक्त तय करेगा। मगर इतना तय है कि अब तेज रुकने वाले नहीं हैं। लालू की विरासत से बाहर, एक नई विरासत की शुरुआत हो चुकी है।


