राष्ट्रगान क्यों नहीं बन सका वंदे मातरम? संविधान सभा में हुई थी जमकर बहस, जानें क्या थी नेहरू और राजेंद्र प्रसाद की राय
वंदे मातरम, 1876 में रचित राष्ट्रीय गीत, स्वतंत्रता आंदोलन की प्रेरणा बना पर धार्मिक आपत्तियों के कारण राष्ट्रगान नहीं बन सका. संविधान सभा ने 1950 में जन गण मन को राष्ट्रगान और वंदे मातरम को समान सम्मान के साथ राष्ट्रगीत घोषित किया.

नई दिल्लीः भारत का राष्ट्रीय गीत वंदे मातरम इतिहास, प्रेरणा और संघर्ष से भरा हुआ है. यह गीत जन गण मन से लगभग 35 वर्ष पहले लिखा गया था, फिर भी राष्ट्रगान के रूप में जन गण मन को चुना गया. आज संसद में वंदे मातरम पर चर्चा होने वाली है, और एक बार फिर यह सवाल उठेगा कि इसे राष्ट्रगान का दर्जा क्यों नहीं मिला.
कब हुई वंदे मातरम की रचना?
बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय ने 7 नवंबर 1876 को वंदे मातरम की रचना की. यह गीत उनके प्रसिद्ध उपन्यास आनंदमठ में 1882 में प्रकाशित हुआ. इस गीत ने आजादी की लड़ाई के दौरान करोड़ों लोगों को प्रेरित किया. 1896 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में, यह गीत पहली बार सार्वजनिक रूप से गाया गया. बाद में रवींद्रनाथ टैगोर ने इसे सुरबद्ध किया.
स्वतंत्रता आंदोलन में वंदे मातरम की गूंज
1905 के बंगाल विभाजन आंदोलन के दौरान वंदे मातरम स्वतंत्रता संघर्ष का स्वर बन गया. इसकी लोकप्रियता से घबराकर ब्रिटिश सरकार ने कई जगहों पर इसे गाने पर रोक लगा दी. स्कूलों, कॉलेजों और सार्वजनिक कार्यक्रमों में यह गीत गाने पर पाबंदी लगाई गई, यहाँ तक कि लोगों को गिरफ्तार भी किया गया.
लाल बाल पाल त्रिमूर्ति लाला लाजपत राय, बिपिन चंद्र पाल और बाल गंगाधर तिलक इस गीत को राष्ट्रगान बनाने के मुखर समर्थक थे. अरविंद घोष ने इसे भारतीय आत्मा को जगाने वाला गीत कहा. यहां तक कि जन गण मन के रचयिता रवींद्रनाथ टैगोर भी इसका सम्मान करते थे और कांग्रेस अधिवेशन में इसे उन्होंने ही गाया था. महात्मा गांधी और सुभाष चंद्र बोस दोनों ही वंदे मातरम को महत्व देते थे.
वंदे मातरम राष्ट्रगान क्यों नहीं बन सका?
गीत के कुछ अंशों में देवी दुर्गा और सरस्वती का उल्लेख था, जिसे कुछ मुस्लिम नेताओं ने धार्मिक भावना से जोड़कर विरोध किया. उनके अनुसार, किसी देवी-देवता की स्तुति से जुड़ा गीत सभी धर्मों द्वारा स्वीकार्य नहीं हो सकता. मौलाना अबुल कलाम आजाद समेत कई सिख, ईसाई, जैन संगठनों ने भी इसी तरह की आपत्ति जताई.
1937 में बनी कमेटी और समाधान
1937 में कांग्रेस ने गांधी, नेहरू, आजाद और सुभाष बोस की कमेटी बनाई. विचार-विमर्श के बाद तय हुआ कि वंदे मातरम के केवल पहले दो छंद धार्मिक प्रतीकों से मुक्त हैं, इसलिए इन्हें ही राष्ट्रीय गीत के रूप में मान्यता दी जाएगी.
संविधान सभा में ऐतिहासिक फैसला
24 अगस्त 1947 को संविधान सभा में पहली बार इस मुद्दे पर विस्तृत बहस हुई. विभिन्न सदस्यों ने अपनी राय दी:
- नेहरू: राष्ट्रगान ऐसा हो जो सभी को स्वीकार्य हो.
- जैदुल्ला खान: अंतिम पद धार्मिक भावनाओं वाला है.
- एच. वी. कामत: वंदे मातरम ने आंदोलन को ऊर्जा दी, इसे सम्मान मिलना चाहिए.
- केटी शाह: विवादित अंश हटाकर शुद्ध हिस्से लिए जा सकते हैं.
23–24 जनवरी 1950 को राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने घोषणा की. जन गण मन को राष्ट्रगान घोषित किया गया. वंदे मातरम को राष्ट्रगीत का दर्जा और राष्ट्रगान के बराबर सम्मान दिया जाएगा.
राष्ट्रगान और राष्ट्रगीत का फर्क
जन गण मन (राष्ट्रगान) 52 सेकंड में गाया जाता है, खड़े होकर सम्मान देना अनिवार्य है. वंदे मातरम (राष्ट्रगीत) राष्ट्रीय सम्मान से जुड़ा सांस्कृतिक गीत, पर इसके लिए राष्ट्रगान जैसे औपचारिक नियम नहीं हैं.


