अरावली पर मंडराता खतरा: सुप्रीम कोर्ट के फैसले से क्यों बढ़ी राजस्थान से दिल्ली तक चिंता?
भारत की सबसे पुरानी पर्वत श्रृंखला एक बार फिर एक बड़े विवाद के केंद्र में है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा अरावली की नई परिभाषा को हाल ही में मंज़ूरी देने से पर्यावरणविदों, सामाजिक संगठनों और आम जनता में चिंता बढ़ गई है.डर है कि अगर अरावली को बड़े पैमाने पर नुकसान पहुँचाया गया, तो राजस्थान की रेत हरियाणा के रास्ते दिल्ली-NCR तक पहुंच सकती है, जिससे राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में रेगिस्तान बनने का खतरा पैदा हो सकता है.

नई दिल्ली: भारत की सबसे प्राचीन पर्वत श्रृंखलाओं में शामिल अरावली पर्वतमाला एक बार फिर बड़े विवाद के केंद्र में है. हाल ही में सुप्रीम कोर्ट द्वारा अरावली की नई परिभाषा को मंजूरी दिए जाने के बाद पर्यावरणविदों, सामाजिक संगठनों और आम लोगों की चिंता बढ़ गई है. आशंका जताई जा रही है कि अगर अरावली का बड़े पैमाने पर क्षरण हुआ, तो राजस्थान की रेत हरियाणा होते हुए दिल्ली-एनसीआर तक पहुंच सकती है और देश की राजधानी पर रेगिस्तानीकरण का खतरा मंडरा सकता है. सवाल यह है कि यह विवाद आखिर शुरू कैसे हुआ और इसकी जड़ क्या है?
भारत की ‘ग्रीन वॉल’ क्यों है अरावली
करीब 692 किलोमीटर लंबी अरावली पर्वतमाला गुजरात से लेकर राजस्थान, हरियाणा और दिल्ली तक फैली है. यह सिर्फ पहाड़ों की श्रृंखला नहीं, बल्कि उत्तर भारत के लिए एक प्राकृतिक ढाल है, जो मरुस्थलीय रेत को आगे बढ़ने से रोकती है. साथ ही यह जल संरक्षण, भूजल रिचार्ज, वन्यजीवों के आवास और जलवायु संतुलन में अहम भूमिका निभाती है.
1990 के दशक से शुरू हुआ विवाद
अरावली में अवैध खनन की शिकायतें 1990 के दशक में सामने आने लगी थीं. संगमरमर, ग्रेनाइट और अन्य खनिजों की भरमार के चलते खनन गतिविधियां तेज हुईं, जिससे पहाड़ियां कटने लगीं और पर्यावरणीय क्षति बढ़ी. 1992 में सुप्रीम कोर्ट ने पहली बार हस्तक्षेप किया और कुछ इलाकों में खनन पर रोक लगाई.
2002-03: बड़ा मोड़
अक्टूबर 2002 में सेंट्रल एम्पावर्ड कमेटी (CEC) की रिपोर्ट के बाद हरियाणा और राजस्थान में अरावली क्षेत्र में खनन पर व्यापक रोक लगी. हालांकि, 2003 में राजस्थान सरकार ने समाधान के तौर पर ‘मर्फी फॉर्मूला’ अपनाया. इसके तहत समुद्र तल से 100 मीटर या उससे अधिक ऊंचाई वाली पहाड़ियों को ही अरावली माना गया, जबकि इससे कम ऊंचाई वाले इलाकों को खनन योग्य घोषित कर दिया गया.
सुप्रीम कोर्ट की सख्ती और राहत
2005 में सुप्रीम कोर्ट ने नए खनन पट्टों पर रोक लगाई और 2009 में हरियाणा के फरीदाबाद, गुरुग्राम और मेवात में पूर्ण प्रतिबंध लगाया. 2010 में फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया की रिपोर्ट ने खुलासा किया कि अवैध खनन से कई पहाड़ियां पूरी तरह नष्ट हो चुकी हैं.
2025 की नई परिभाषा और ताजा विवाद
नवंबर 2025 में केंद्र सरकार ने मर्फी फॉर्मूले को आधार बनाकर अरावली की नई परिभाषा अधिसूचित की, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने लागू कर दिया. इसके साथ ही पॉलीगॉन लाइन की जगह कंटूर लाइन को आधार बनाया गया, जिससे पर्यावरणविदों का दावा है कि अरावली का बड़ा हिस्सा खनन के लिए खुल सकता है.
आगे की राह
सरकार का कहना है कि खनन सीमित क्षेत्र तक ही रहेगा, लेकिन विशेषज्ञ मानते हैं कि यह बदलाव अरावली के लिए घातक हो सकता है. अरावली का संरक्षण सिर्फ पर्यावरण नहीं, बल्कि दिल्ली-एनसीआर के भविष्य से भी जुड़ा है. अब यह देखना अहम होगा कि विकास और पर्यावरण के बीच संतुलन कैसे साधा जाता है.


