क्या अब वक्त घटेगा? धरती की रफ्तार बढ़ने से दिन हो सकते हैं छोटे
धरती की रफ्तार को लेकर वैज्ञानिकों ने चौंकाने वाला खुलासा किया है. अब तक माना जाता था कि पृथ्वी धीरे-धीरे घूमती है, लेकिन इतिहास में पहली बार इसके घूमने की गति सामान्य से तेज दर्ज की गई है. इस बदलाव का असर सीधे-सीधे दिन की लंबाई और हमारी घड़ियों पर पड़ सकता है.

धरती के घूमने की गति को लेकर वैज्ञानिकों ने हाल ही में एक हैरान करने वाला खुलासा किया है. अब तक हम पढ़ते और मानते आए हैं कि पृथ्वी की रफ्तार धीरे-धीरे कम हो रही है, लेकिन अब इतिहास में पहली बार यह तेजी से घूमने लगी है. वैज्ञानिकों के मुताबिक, इस बदलाव के असर से आने वाले समय में दिन की लंबाई में मिलीसेकंड की कमी आ सकती है, जो घड़ियों और समय की गणना के तरीके को बदल सकता है.
पृथ्वी की यह बढ़ती रफ्तार वैज्ञानिकों के लिए एक नई चुनौती बन चुकी है. अगर यह सिलसिला यूं ही चलता रहा तो 2029 तक इंसान को इतिहास में पहली बार "एक सेकंड" घटाना पड़ सकता है. यानी अब तक जहां 'लीप सेकंड' जोड़ा जाता था, भविष्य में "लीप सेकंड माइनस" की जरूरत पड़ सकती है.
क्यों तेज घूम रही है धरती?
धरती की सामान्य रफ्तार में मिलीसेकंड की तेजी देखी जा रही है. पहले जहां हर साल रोटेशन में थोड़ी गिरावट आती थी, अब 2025 की कुछ तारीखों पर यह उल्टा हो रहा है. खासकर 9 जुलाई, 22 जुलाई और 5 अगस्त को धरती की रफ्तार सामान्य से ज्यादा रहेगी. विशेषज्ञों के अनुसार, 5 अगस्त 2025 का दिन 1.51 मिलीसेकंड छोटा हो सकता है.
लीप सेकंड का उल्टा असर?
अब तक समय की सटीकता बनाए रखने के लिए वैज्ञानिक 'लीप सेकंड' जोड़ते रहे हैं, ताकि समय का तालमेल खगोलीय गणनाओं से बना रहे. लेकिन अगर धरती की गति में इसी तरह तेजी आती रही, तो 2029 में पहली बार एक सेकंड 'कम' करना पड़ सकता है. यानी घड़ी की सूई एक बार पीछे खिसक सकती है.
क्यों हो रही है धरती की गति में तेजी?
वैज्ञानिकों के अनुसार, पृथ्वी की गति बढ़ने के पीछे कई संभावित कारण हो सकते हैं:
पृथ्वी के कोर में चल रहे बदलाव
महासागरों की धाराओं में उतार-चढ़ाव
भूकंप या ग्लेशियरों का पिघलना
पृथ्वी के पिघले बाहरी कोर में हलचल
हालांकि, इनमें से कोई भी कारण फिलहाल पूरी तरह स्पष्ट नहीं है.
डायनासोर युग से अब तक कैसे बदलता रहा वक्त?
रिसर्चर्स बताते हैं कि डायनासोर युग में पृथ्वी का एक दिन सिर्फ 23 घंटे का हुआ करता था. फिर धीरे-धीरे दिन बढ़ते गए और आज हम 24 घंटे के दिन में जी रहे हैं. लेकिन अब पहली बार दिन छोटा होने की संभावना है, जो समय को मापने के पूरे ढांचे को चुनौती दे सकता है.
इंसानों पर क्या होगा असर?
हालांकि आम लोगों को मिलीसेकंड की कमी महसूस नहीं होगी, लेकिन सैटेलाइट नेविगेशन, इंटरनेशनल बैंकिंग टाइमस्टैम्प्स, और स्पेस साइंस जैसी गतिविधियों में इसकी बड़ी भूमिका है. यही वजह है कि वैज्ञानिक इस बदलाव को बेहद गंभीरता से ले रहे हैं.
समय अब स्थिर नहीं रहा!
समय को लेकर एक आम धारणा यह रही है कि वह स्थिर और अचल है. लेकिन यह पूरी तरह पृथ्वी की रफ्तार पर निर्भर करता है. जैसे-जैसे पृथ्वी की गति में बदलाव होता है, समय की गणना भी प्रभावित होती है.
अभी स्थायी नहीं है बदलाव
वैज्ञानिक अभी तक यह तय नहीं कर पाए हैं कि पृथ्वी की यह रफ्तार स्थायी रूप से बढ़ रही है या यह कुछ समय के लिए अस्थायी बदलाव है. लेकिन यदि यह ट्रेंड बना रहा तो समय मापने के तरीके में इतिहास का सबसे बड़ा परिवर्तन संभव है.


