Explainer: यूक्रेन की नाराज़गी के पीछे छुपा डर, क्या पश्चिम धीरे-धीरे पुतिन को नई इज़्ज़त देने लगा है?
अलास्का में पुतिन की एंट्री और अमेरिकी सैनिकों के झुकने वाली तस्वीरों ने यूक्रेन को नाराज़ कर दिया। असल चिंता यह है कि कहीं पश्चिम धीरे-धीरे पुतिन को नई इज़्ज़त और वैध पहचान देकर सामान्य नेता की तरह पेश न कर दे।

International News: अलास्का का ऐतिहासिक मंज़र अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की यह मुलाक़ात पांच साल बाद हुई। अलास्का एयरबेस पर तीन घंटे तक दोनों नेता आमने-सामने बैठे। मुलाक़ात से ज्यादा चर्चा उस वीडियो की रही जिसमें अमेरिकी सैनिक झुककर पुतिन के विमान के सामने रेड कार्पेट बिछा रहे थे। यह नज़ारा मीडिया कैमरों में क़ैद हुआ और सोशल मीडिया पर तूफ़ान की तरह फैला। वायरल तस्वीरों ने पूरी बहस का रुख बदल दिया। आलोचकों ने कहा कि सुपरपावर कहलाने वाले अमेरिका की यह इज़्ज़त का झुकाव है। यह केवल स्वागत का दृश्य नहीं बल्कि एक बदले हुए दौर का प्रतीक है। कई विश्लेषकों ने इसे "ताक़त की सियासत" से जोड़ दिया। लोगों ने सवाल उठाए कि कहीं यह दृश्य पश्चिम की नयी मजबूरी तो नहीं दिखा रहा।
यूक्रेन ने इस घटना पर सख़्त ऐतराज़ जताया। वहां के पूर्व अधिकारी मुस्तफ़ा नय्यम ने इन तस्वीरों को "शर्मनाक" करार दिया। उनका कहना था कि जिस पुतिन ने हमारे मुल्क पर हमला किया, उसके सामने अमेरिकी सैनिकों का झुकना लोकतंत्र की रूह को चोट पहुंचाने वाला है। यूक्रेनी मीडिया ने भी इसे अमेरिका के लिए इज़्ज़त का नुकसान बताया।
छिपे डर की हक़ीक़त
यूक्रेन का यह ऐतराज़ सिर्फ़ ग़ुस्से का इज़हार नहीं बल्कि एक गहरे डर की तरफ़ इशारा है। डर यह कि कहीं पश्चिम धीरे-धीरे पुतिन को "नॉर्मलाइज़" न कर दे। यानी जिस नेता को युद्ध अपराधी कहा जा रहा था, वही अब अंतरराष्ट्रीय मंचों पर इज़्ज़त पाते दिख रहे हैं। यह यूक्रेन के लिए सबसे बड़ी मनोवैज्ञानिक चिंता है। इस डर के पीछे यह भी है कि अगर पुतिन को स्वीकार्यता मिलनी शुरू हो गई तो यूक्रेन के लिए मिल रही वैश्विक मदद पर भी असर पड़ सकता है। पश्चिमी देश धीरे-धीरे रुख बदलते हैं तो यूक्रेन को अकेला छोड़ा जा सकता है।
इसके अलावा यूक्रेन को यह भी डर है कि पुतिन की इमेज सुधारने से उसकी जंग में वैधता कमज़ोर पड़ सकती है। यही कारण है कि यह ऐतराज़ केवल तस्वीरों तक सीमित नहीं बल्कि रणनीतिक चिंता भी है।
ट्रंप का बयान और सफ़ाई
राष्ट्रपति ट्रंप ने इस पूरी मुलाक़ात को सकारात्मक बताया। उन्होंने कहा कि सीज़फायर पर अब तक कोई सहमति नहीं बन पाई है। उनका कहना था कि असली फ़ैसला अब जेलेंस्की और यूरोपीय मुल्कों पर है। ट्रंप का बयान साफ़ करता है कि वॉशिंगटन इस जंग से दूरी भी बनाए रखना चाहता है और बातचीत का सिलसिला जारी भी रखना चाहता है। ट्रंप ने यह भी कहा कि बातचीत का दरवाज़ा हमेशा खुला रहना चाहिए।
उन्होंने अपने बयान में संकेत दिया कि रूस से बातचीत कठिन है लेकिन असंभव नहीं। उनकी सफ़ाई यह थी कि दुनिया को अभी लंबे युद्ध से बचाना ज़रूरी है। हालांकि, आलोचक मानते हैं कि ट्रंप का बयान केवल राजनयिक संतुलन साधने की कोशिश है। इस तरह के बयान अमेरिका की स्थिति को लचीला दिखाते हैं मगर स्पष्टता की कमी भी उजागर करते हैं।
भविष्य की राजनीति का इम्तिहान
इस मुलाक़ात ने दुनिया की सियासत में कई नए सवाल खड़े कर दिए। क्या यह सचमुच अमेरिका और रूस के रिश्तों में नया मोड़ है या फिर सिर्फ़ एक प्रतीकात्मक मुलाक़ात? सैनिकों का झुकना और यूक्रेन की नाराज़गी आने वाले समय में लगातार बहस का हिस्सा रहेंगे। अलास्का की यह शाम कूटनीति, इज़्ज़त और ताक़त तीनों का बड़ा इम्तिहान साबित हुई। यह सवाल भी उठा कि क्या अमेरिका अब रूस से नयी डील की तरफ़ बढ़ रहा है।
विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसी मुलाक़ातें प्रतीकात्मक होने के बावजूद भविष्य की दिशा तय करती हैं। अगर तस्वीरें ज़्यादा चर्चा में रहेंगी तो असली मुद्दे दब सकते हैं। इसी कारण यह घटना केवल आज की ख़बर नहीं बल्कि आने वाले कल की रणनीति का संकेत बन गई है। यह राजनीति के भविष्य का वह दौर है जहां इमेज और हक़ीक़त के बीच फासला और गहराता जा रहा है।


