बांग्लादेश में दिखे अमेरिकी सैनिक, भारत ने भी म्यांमार भेजी सेनाओं की एक टीम, जानें पड़ोस देश में क्या चल रहा है?
बांग्लादेश में अमेरिकी सैनिकों की मौजूदगी ने हलचल मचा दी है तो दूसरी ओर म्यांमार में भारत की थल, जल और वायु सेना के 120 जवान तैनात हो चुके हैं. यह नजारा पड़ोस में बढ़ती रणनीतिक हलचल का इशारा है. जहां क्षेत्रीय और वैश्विक महाशक्तियां अपनी-अपनी ताकत दिखाने में जुटी हैं.

US Army in Bangladesh: दक्षिण एशिया के रणनीतिक रूप से संवेदनशील भू-भाग में हाल के दिनों में जो सैन्य गतिविधियां देखी गई हैं उन्होंने नई भू-राजनीतिक बहस को जन्म दे दिया है. एक ओर, बांग्लादेश के चटगांव में अमेरिकी सेना के 100 से अधिक सैनिकों की 'गोपनीय' तैनाती चर्चा का विषय बनी हुई है वहीं दूसरी ओर, भारत ने म्यांमार में अपनी थल, वायु और नौसेना के 120 जवानों को भेजकर स्पष्ट संकेत दे दिया है कि वह क्षेत्रीय संतुलन को लेकर तैयार है.
भारत, म्यांमार और बांग्लादेश के त्रिकोणीय क्षेत्र में अचानक बढ़ी सैन्य गतिविधियों को यूं ही नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. इन कार्रवाइयों का समय, स्थान और प्रकृति ऐसी है, जो किसी बड़ी रणनीतिक सोच का हिस्सा प्रतीत होती है. सवाल यह है कि क्या यह सब अमेरिका की इंडो-पैसिफिक रणनीति के तहत हो रहा है? या फिर दक्षिण एशिया में एक नया ‘प्रॉक्सी युद्ध’ जन्म ले रहा है?
बंगाल की खाड़ी में रणनीतिक दखल
बांग्लादेश के चटगांव में 10 सितंबर को अमेरिकी वायुसेना का C-130J सुपर हर्क्यूलिस विमान उतरा जिसमें करीब 120 अमेरिकी सैनिक सवार थे. ये अधिकारी ढाका होते हुए चटगांव पहुंचे और वहां के एक होटल में बिना औपचारिक पंजीकरण के ठहरे. यह पूरा ऑपरेशन 'पैसिफिक एंजल 25-3' का हिस्सा है जो अमेरिका, बांग्लादेश और श्रीलंका की वायुसेनाओं के बीच 15 से 18 सितंबर तक चला. इस सैन्य अभ्यास में बांग्लादेशी वायुसेना के C-130J विमान और MI-17 हेलीकॉप्टरों के साथ-साथ अमेरिका के दो C-130J विमान शामिल रहे. कुल 242 सैनिकों ने इसमें हिस्सा लिया, जिनमें 150 बांग्लादेशी और 92 अमेरिकी शामिल थे. हालांकि इस ऑपरेशन की गोपनीयता और अमेरिकी सैनिकों की अप्रत्याशित मौजूदगी ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं.
स्थानीय असहजता और सुरक्षा सवाल
बांग्लादेशी सैन्य सूत्रों के मुताबिक स्थानीय प्रशासन अमेरिकी सैन्य आगमन से अनभिज्ञ था और यह स्थिति उन्हें असहज कर गई. चटगांव भारत के पूर्वोत्तर राज्यों और म्यांमार की अस्थिर सीमा के बेहद करीब है. इससे पहले हवाई में हुए 'लैंड फोर्सेज टॉक्स' में अमेरिका और बांग्लादेश ने अपने द्विपक्षीय सैन्य संबंधों को गहरा करने की बात कही थी. विश्लेषकों का मानना है कि यह केवल एक अभ्यास नहीं बल्कि अमेरिका की बड़ी रणनीति का हिस्सा है. खासकर चीन के बढ़ते प्रभाव को संतुलित करने के उद्देश्य से. अमेरिका पहले से ही 'टाइगर लाइटनिंग 2025' और 'पैसिफिक एंजल' जैसे अभ्यासों के जरिए बांग्लादेश को रणनीतिक रूप से अपने पक्ष में लाने की कोशिश कर रहा है.
म्यांमार में त्रि-सेना की मौजूदगी
इन घटनाओं के बीच भारत ने भी बिना शोर-शराबे के अपनी चाल चली. 16 सितंबर को भारतीय वायुसेना का IL-76 विमान म्यांमार की राजधानी नायपीडॉ पहुंचा, जिसमें थलसेना, वायुसेना और नौसेना के कुल 120 जवान शामिल थे. यह 'इंडिया-म्यांमार रेसिप्रोकल मिलिट्री कल्चरल एक्सचेंज' का तीसरा संस्करण है जो 16 से 20 सितंबर तक आयोजित हुआ. अभ्यास का उद्देश्य केवल सैन्य सहयोग नहीं बल्कि सांस्कृतिक और रणनीतिक रिश्तों को मजबूत करना भी है. इसके तहत म्यांमार के जवानों को बोधगया लाया गया. जिससे यह साफ संकेत मिलता है कि भारत म्यांमार की सैन्य जंटा से संबंध मजबूत बनाए रखना चाहता है.
चीन, रोहिंग्या संकट और 'नए ग्रेट गेम' की आहट
इस पूरे घटनाक्रम का एक बड़ा संदर्भ है म्यांमार में चल रहा और रोहिंग्या संकट. 2017 के नरसंहार के बाद करीब 10 लाख रोहिंग्या बांग्लादेश में शरण लिए हुए हैं. हाल ही में और 1.5 लाख नए शरणार्थी पहुंचे हैं. बांग्लादेश ने राखाइन में 'ह्यूमैनिटेरियन कॉरिडोर' की मांग की है जिसे कुछ विश्लेषकों ने अमेरिकी लॉजिस्टिक सपोर्ट की आड़ बताया है.
उधर चीन म्यांमार के विद्रोहियों और जंटा दोनों से अपने संबंध बनाए हुए है. जबकि अमेरिका बांग्लादेश के जरिए अपनी पकड़ मजबूत करना चाहता है. भारत के लिए यह स्थिति चुनौतीपूर्ण है क्योंकि उसकी 'एक्ट ईस्ट पॉलिसी', पूर्वोत्तर की सुरक्षा और कलादान जैसे परियोजनाएं म्यांमार की स्थिरता पर निर्भर हैं.
'प्रॉक्सी वॉर' की जमीन तैयार?
सोशल मीडिया और विशेषज्ञों की चर्चा में यह सवाल आ रहा है कि क्या दक्षिण एशिया में एक नया प्रॉक्सी युद्ध जन्म ले रहा है? अमेरिका बांग्लादेश के माध्यम से विद्रोही गुटों को समर्थन देकर म्यांमार की जंटा पर दबाव बनाना चाहता है जबकि भारत अपनी भू-राजनीतिक स्थिति को सुरक्षित रखने के लिए म्यांमार सरकार के साथ खड़ा है. भारतीय रणनीतिक विश्लेषक इसे 'नए ग्रेट गेम' की शुरुआत बता रहे हैं जहां चीन, अमेरिका और भारत तीनों ही इस क्षेत्र में अपने-अपने मोहरे बिछा रहे हैं.


