बांग्लादेश के इस कदम से दक्षिण एशिया में 'जलयुद्ध' भड़कने का खतरा, अब क्या करेगा भारत?
बांग्लादेश इस साल की शुरुआत में संयुक्त राष्ट्र जल सम्मेलन (UN Water Convention) में शामिल होने वाला दक्षिण एशिया का पहला देश बना था. उस समय इसे एक सकारात्मक और दूरदर्शी कदम माना गया था. संयुक्त राष्ट्र ने कहा था कि इस कदम से बांग्लादेश को अपने जल संसाधनों की सुरक्षा और प्रबंधन में मदद मिलेगी.

नई दिल्ली: बांग्लादेश इस साल की शुरुआत में संयुक्त राष्ट्र जल सम्मेलन (UN Water Convention) में शामिल होने वाला दक्षिण एशिया का पहला देश बना था. उस समय इसे एक सकारात्मक और दूरदर्शी कदम माना गया था. संयुक्त राष्ट्र ने कहा था कि इस कदम से बांग्लादेश को अपने जल संसाधनों की सुरक्षा और प्रबंधन में मदद मिलेगी, जो देश की अर्थव्यवस्था और लोगों की जीवन रेखा हैं.
साथ ही उम्मीद थी कि इससे भारत और बांग्लादेश जैसे देशों के बीच सीमा पार नदियों पर बेहतर सहयोग बढ़ेगा, लेकिन कुछ महीनों में ही यह स्थिति बदलती दिखाई दे रही है. विशेषज्ञों का मानना है कि बांग्लादेश का यह कदम दक्षिण एशिया में जल संबंधी तनाव को बढ़ा सकता है.
शोधकर्ता पिंटू कुमार महला क्या बोले
एरिज़ोना यूनिवर्सिटी के शोधकर्ता पिंटू कुमार महला के अनुसार, बांग्लादेश के इस फैसले के पीछे राजनीतिक और रणनीतिक कारण भी हैं. हाल की जल राजनीति ने बांग्लादेश की जल सुरक्षा को खतरे में डाल दिया है. इससे भारत और बांग्लादेश के बीच तनाव बढ़ने की संभावना है. बांग्लादेश की जल समस्या काफी जटिल है. देश के लगभग आधे लोग सूखे इलाकों में रहते हैं, जबकि 60% आबादी बाढ़ के खतरे में है. करीब 6.5 करोड़ लोगों को अभी भी उचित स्वच्छता सुविधाएं नहीं मिली हैं. जनसंख्या वृद्धि और जलवायु परिवर्तन ने जल संकट को और गहरा बना दिया है. देश की 1,415 नदियों में से 81 नदियाँ खत्म हो चुकी हैं या विलुप्ति की ओर हैं. इनमें से अधिकांश नदियाँ भारत और चीन से होकर आती हैं, इसलिए बांग्लादेश की जल निर्भरता पड़ोसी देशों पर है.
चीन ने क्या ऐलान किया है?
चीन ने हाल ही में तिब्बत में यारलुंग त्सांगपो नदी पर दुनिया का सबसे बड़ा जलविद्युत बांध बनाने की घोषणा की है. यह वही नदी है, जो भारत के अरुणाचल प्रदेश से होकर बहती है और आगे जाकर बांग्लादेश में ब्रह्मपुत्र कहलाती है. भारत और बांग्लादेश दोनों को डर है कि चीन का यह बांध क्षेत्र के जल प्रवाह और पर्यावरण पर गंभीर असर डालेगा.
बांग्लादेश की तीन प्रमुख नदियाँ- गंगा, ब्रह्मपुत्र और मेघना का केवल 7% हिस्सा उसके अपने क्षेत्र में आता है. भारत और चीन के बांधों की वजह से उसमें बहने वाले पानी की मात्रा कम होती जा रही है. जलवायु परिवर्तन ने हिमालय क्षेत्र में बर्फ के पिघलने और वर्षा के पैटर्न को भी बदल दिया है, जिससे बाढ़, सूखा और लवणता जैसी समस्याएँ बढ़ी हैं.
भारत ने हस्ताक्षर नहीं किए
बांग्लादेश ने 2019 में अपनी नदियों को कानूनी सुरक्षा देने के बाद संयुक्त राष्ट्र जल सम्मेलन में शामिल होने का निर्णय लिया. यह सम्मेलन साझा जल संसाधनों के सहयोग और टिकाऊ उपयोग को बढ़ावा देता है. हालांकि, भारत ने अभी तक इस पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं, क्योंकि वह जल विवादों को द्विपक्षीय समझौतों के ज़रिए हल करना चाहता है, जैसे कि पाकिस्तान के साथ सिंधु जल संधि और बांग्लादेश के साथ 1996 की गंगा जल संधि.
जल संबंधी तनाव बढ़ने की संभावना
भारत की चिंता यह है कि संयुक्त राष्ट्र जल सम्मेलन का हिस्सा बनने के बाद बांग्लादेश अंतरराष्ट्रीय मंच पर अधिक अधिकार और समर्थन की मांग कर सकता है. खासकर, 2026 में गंगा जल संधि के नवीनीकरण के समय. साथ ही, यह भी आशंका है कि नेपाल और भूटान जैसे देश भी भविष्य में इस सम्मेलन से जुड़ सकते हैं. बांग्लादेश का चीन और पाकिस्तान के साथ संभावित जल सहयोग भारत के लिए एक नई चुनौती बन सकता है और इससे पूरे दक्षिण एशिया में जल संबंधी तनाव बढ़ सकता है.


