स्टारफ़िश डिज़ाइन, सिक्योरिटी टाइट… फिर भी दाशिंग एयरपोर्ट पर सुनाई देती है खामोशी
बीजिंग का दाशिंग इंटरनेशनल एयरपोर्ट, जिसे दुनिया का सबसे बड़ा हवाई टर्मिनल कहा जाता है, आज एक "सफ़ेद हाथी" साबित हो रहा है। अरबों डॉलर की लागत से बना यह प्रोजेक्ट यात्रियों की कमी और सन्नाटे से जूझ रहा है।

International News: चीन ने दुनिया को चौंकाने के लिए बीजिंग में दाशिंग इंटरनेशनल एयरपोर्ट बनाया। 18 अरब डॉलर की लागत से बने इस प्रोजेक्ट का सपना था कि साल 2040 तक यह 100 मिलियन यात्रियों को संभालेगा। लेकिन हालात कुछ और ही कहानी बयां कर रहे हैं। यात्रा ब्लॉगर और कमर्शियल पायलट स्टीफ़न ड्यूरी जब इस एयरपोर्ट पर पहुंचे तो उन्हें खामोशी ने हैरान कर दिया। उन्होंने कहा कि इतना विशाल टर्मिनल खाली नज़र आ रहा था।
यहां तक कि कई दुकानें भी बंद पड़ी थीं। बीजिंग के लोग आज भी पुराने "कैपिटल एयरपोर्ट" को ही तरजीह दे रहे हैं। वजह है उसकी लोकेशन और आसानी। सरकार ने 19 मिनट में पहुंचाने वाली एक्सप्रेस ट्रेन भी चलाई, लेकिन इसके बावजूद दाशिंग एयरपोर्ट वीरान पड़ा है।
सख़्त सिक्योरिटी, ख़ाली गलियारे
इस एयरपोर्ट की सिक्योरिटी को पायलट ने "बेहद मज़बूत" बताया। हर एंट्री पर चेकिंग, हर जगह गार्ड्स तैनात। लेकिन सवाल यह उठता है कि जब यात्री ही नहीं हैं तो इतनी सख़्ती किसके लिए है? यही इसकी सबसे बड़ी विडंबना है। लोग कहते हैं यह सिक्योरिटी दिखाने के लिए है, काम करने के लिए नहीं। असली तस्वीर यह है कि सुरक्षाकर्मी ज़्यादा दिखते हैं और यात्री ग़ायब। यही विरोधाभास दुनिया की नज़रों में सबसे बड़ा सवाल बन गया है।
स्टारफ़िश डिज़ाइन, पर सन्नाटा
दाशिंग एयरपोर्ट को उसके स्टारफ़िश जैसे डिज़ाइन की वजह से आर्किटेक्चरल चमत्कार कहा गया। चार रनवे, एक मिलिट्री स्ट्रिप और हज़ारों हेक्टेयर में फैला यह हवाई किला आज सन्नाटे से गूंज रहा है। यह तस्वीर चीन की जल्दबाज़ी का आईना बन गई है। डिज़ाइन भले ही अद्भुत है लेकिन उसमें रौनक नहीं। जगहें चौड़ी हैं, गलियारे लंबे हैं मगर वहां यात्री नज़र नहीं आते। यह सन्नाटा चीन की महत्वाकांक्षा पर सवालिया निशान खड़ा कर रहा है।
उम्मीदों का प्रोजेक्ट या बोझ?
चीन चाहता था कि यह एयरपोर्ट उसका "ग्लोबल हब" बने, लेकिन यात्रियों की कमी ने इसे सफ़ेद हाथी बना दिया है। हक़ीक़त यह है कि सरकार ने शान दिखाने के लिए अरबों झोंक दिए, मगर आम जनता ने इसे अपनाया ही नहीं। यह प्रोजेक्ट अब बोझ की तरह साबित हो रहा है। जो पैसे सेवाओं और सस्ते किरायों में जाने चाहिए थे, वह पत्थर और सीमेंट में गाड़ दिए गए। नतीजा यह है कि जनता दूरी बना रही है और सरकार सफाई देने पर मजबूर है।
ख़ाली एयरपोर्ट, बड़ा सबक
यह मामला सिर्फ़ एक एयरपोर्ट का नहीं बल्कि चीन की "मेगा प्रोजेक्ट पॉलिसी" का आइना है। जहां शोहरत और ताक़त के लिए बने प्रोजेक्ट अक्सर जनता की ज़रूरत से कट जाते हैं। दाशिंग एयरपोर्ट आज पूरी दुनिया को यही सबक दे रहा है। इसने साबित किया कि चमक-धमक हमेशा कामयाबी नहीं लाती। जब ज़रूरत और जनता की सहूलियत न हो तो अरबों भी बर्बाद हो जाते हैं। यही वजह है कि दाशिंग आज किताबों में केस स्टडी और ज़मीनी हक़ीक़त में शर्मिंदगी बन गया है।


