score Card

US को उल्टा पड़ सकता है भारत को विरोधी मानना, ट्रंप कर रहे बड़ी गलती... विदेश नीति विशेषज्ञों ने दी चेतावनी

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा भारतीय आयातों पर 50% टैरिफ लगाने की योजना को विदेश नीति विशेषज्ञ खतरनाक मान रहे हैं. AIIA की रिपोर्ट के अनुसार, इससे अमेरिका-भारत संबंधों में विश्वास की कमी हो सकती है और भारत चीन के करीब जा सकता है. भारत की ऊर्जा नीति बाज़ार आधारित है, और अमेरिका के लिए भारत रणनीतिक साझेदार है. विशेषज्ञों का मानना है कि इस टैरिफ का भारत की अर्थव्यवस्था पर असर सीमित रहेगा.

Utsav Singh
Edited By: Utsav Singh

US India Trade Relations : अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने 27 अगस्त से भारत से आने वाले आयातों पर 50 प्रतिशत तक टैरिफ (आयात शुल्क) लगाने की योजना बनाई है. यह खबर सामने आने के बाद विदेश नीति के विशेषज्ञों ने आगाह किया है कि अगर अमेरिका भारत को व्यापार-विरोधी देश के रूप में पेश करता है, तो यह रणनीति अमेरिका के ही खिलाफ जा सकती है. विशेषज्ञों का कहना है कि यह कदम अमेरिका और भारत के बीच लंबे समय से चले आ रहे भरोसे को नुकसान पहुंचा सकता है.

US और नई दिल्ली के रिश्तों में खटास

आपको बता दें कि ऑस्ट्रेलियन इंस्टीट्यूट ऑफ इंटरनेशनल अफेयर्स (AIIA) की हालिया रिपोर्ट के अनुसार, ऐसे दबाव बनाने वाले कदम दोनों देशों के बीच दशकों से चले आ रहे सहयोग और विश्वास को नुकसान पहुंचा सकते हैं. रिपोर्ट में यह भी चेतावनी दी गई है कि अगर अमेरिका भारत पर व्यापारिक दबाव डालता रहा, तो भारत चीन के और नजदीक जा सकता है, जो अमेरिका की रणनीतिक योजना के लिए ठीक नहीं होगा.

भारत ने क्यों चुना रूसी तेल?
दरअसल, रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि भारत ने रियायती रूसी तेल का रुख क्यों किया. ऊर्जा विशेषज्ञों का मानना है कि भारत के फैसले पूरी तरह से बाज़ार की ज़रूरतों और यथार्थ पर आधारित हैं. जैसे ही पारंपरिक तेल आपूर्तिकर्ताओं ने अपनी आपूर्ति यूरोप की ओर मोड़ दी, भारत ने अपने 1.4 अरब लोगों को सस्ती ऊर्जा उपलब्ध कराने के लिए रूस से सस्ता तेल खरीदना शुरू कर दिया. यह कोई राजनीतिक निर्णय नहीं था, बल्कि एक व्यावहारिक आर्थिक आवश्यकता थी.

US के लिए भारत क्यों है जरूरी?
भारत के विदेश मंत्रालय ने स्पष्ट किया है कि तेल आयात का उद्देश्य सिर्फ सस्ती और अनुमानित लागत पर ऊर्जा सुनिश्चित करना है. AIIA की रिपोर्ट इस पर बल देती है कि भारत को अमेरिका का आर्थिक प्रतिद्वंद्वी नहीं, बल्कि एक रणनीतिक साझेदार समझा जाना चाहिए. भारत हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अमेरिका की दीर्घकालिक रणनीति का अहम हिस्सा है. बीते वर्षों में 2008 के असैन्य परमाणु समझौते और रक्षा सहयोग की बढ़ोतरी ने दोनों देशों के रिश्तों को मज़बूत किया है.

व्यापारिक संबंधों में दिखी मजबूती
भारत और अमेरिका के बीच व्यापारिक रिश्तों में बीते कुछ वर्षों में काफी मजबूती आई है. वर्ष 2024 में दोनों देशों के बीच कुल द्विपक्षीय व्यापार 129 अरब डॉलर तक पहुंच चुका है. इसके अलावा, दोनों देशों ने 2030 तक इस व्यापार को 500 अरब डॉलर तक पहुंचाने का लक्ष्य रखा है. यह आंकड़े इस बात का प्रमाण हैं कि दोनों देश आर्थिक रूप से एक-दूसरे पर निर्भर होते जा रहे हैं.

भारत पर टैरिफ का सीमित प्रभाव
S&P ग्लोबल के निदेशक यीफार्न फुआ ने हाल ही में कहा कि भारत पर ट्रंप की टैरिफ नीति का दीर्घकालिक असर शायद ही देखने को मिलेगा. उनका कहना है कि भारत की अर्थव्यवस्था पूरी तरह व्यापार पर आधारित नहीं है, इसलिए टैरिफ जैसे कदम भारत की अर्थव्यवस्था को ज्यादा नुकसान नहीं पहुंचाएंगे. उन्होंने 13 अगस्त को एक वेबिनार में यह भी कहा कि भारत की भूमिका क्वाड समूह में, साथ ही आतंकवाद-रोधी सहयोग में उसकी सक्रियता, अमेरिका के लिए उसे एक अनिवार्य साझेदार बनाती है.
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर US -भारत संबंध कमजोर 
डोनाल्ड ट्रंप की ओर से प्रस्तावित टैरिफ नीति भले ही अमेरिका की घरेलू राजनीति के लिए अहम हो, लेकिन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर यह अमेरिका-भारत संबंधों को कमजोर कर सकती है. भारत ने हमेशा अपने फैसले आर्थिक आवश्यकताओं के आधार पर लिए हैं. विशेषज्ञों की राय में, भारत पर इन टैरिफ का असर सीमित होगा, और अमेरिका को भारत को साझेदार के रूप में देखना जारी रखना चाहिए, न कि विरोधी के रूप में.

calender
18 August 2025, 04:19 PM IST

ताजा खबरें

ट्रेंडिंग वीडियो

close alt tag