वैश्विक कंपनियों में भारतीय कर्मचारियों के साथ भेदभाव? दिवाली पर ऑफिस बुलाए जाने पर फूट-फूटकर रोई महिला कर्मचारी
एक महिला ने साहस के साथ इस बात का खुलासा किया है कि वैश्विक कंपनियों में कैसे भेदभावपूर्ण नीतियां से भारतीय कर्मचारियों कोनुकसान पहुंचा रही हैं. यह मुद्दा न केवल उनके करियर को प्रभावित कर रहा है, बल्कि उनकी मेहनत और प्रतिभा को भी अनदेखा कर रहा है. क्या ये नीतियां बदलाव की मांग कर रही हैं? यह सवाल हर किसी के मन में दौड़ रहा है.

Indian employees in global companies: देश-विदेश में काम कर रही भारतीय पेशेवरों की मुश्किलें अक्सर नजरअंदाज कर दी जाती हैं, खासकर तब जब बात सांस्कृतिक और धार्मिक पहचान की आती है. हाल ही में एक महिला कर्मचारी ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म रेडिट पर अपना अनुभव साझा किया, जिसने ऑफिस के छुट्टी नीतियों में छिपे भेदभाव को उजागर कर दिया. इस पोस्ट में महिला ने बताया कि किस तरह एक अमेरिकी कंपनी में काम करने के दौरान दिवाली जैसे महत्वपूर्ण त्यौहार पर भी उन्हें ऑफिस से काम करने के लिए मजबूर किया गया. इस स्थिति से आहत होकर वह अपने मैनेजर के सामने भावुक हो गईं और रोने लगीं.
महिला का रेडिट पोस्ट
महिला ने लिखा कि वह एक हाइब्रिड सेटअप में कार्यरत हैं, जहां कुछ दिन कार्यालय और कुछ दिन घर से काम करना अनिवार्य है. लेकिन जब बात भारतीय त्योहारों की आती है, तो कंपनी लचीलापन नहीं दिखाती. उन्होंने कहा कि उनके अमेरिकी और यूरोपीय सहकर्मियों को थैंक्सगिविंग, क्रिसमस और वसंत अवकाश जैसी छुट्टियों के लिए लम्बी छुट्टियां दी जाती हैं, जबकि भारतीय कर्मचारियों को दिवाली जैसे प्रमुख पर्व पर भी ऑफिस आना पड़ता है.
रेडिट पोस्ट में महिला ने नाराजगी जाहिर करते हुए लिखा, 'मैं समझता हूं कि अंत में हम उनके लिए सस्ते श्रमिक हैं, लेकिन भगवान न करे कि हमारी कुछ नीतियां ऐसी हों जो हमारे साथ इंसानों जैसा व्यवहार करें.'
वर्क फ्रॉम होम की उम्मीद
महिला ने यह भी बताया कि उन्होंने पूरे साल वर्क फ्रॉम होम (WFH) के दिन बचाकर रखे थे ताकि दिवाली के दौरान अपने घर से काम कर सकें. लेकिन जब उन्होंने मैनेजर से इस बारे में बात की, तो उन्हें साफ मना कर दिया गया. और 'मैं उस हफ्ते अपने होमटाउन से काम करने की उम्मीद कर रही थी. लेकिन मुझे बताया गया कि मैं नहीं जा सकती क्योंकि किसी को कार्यालय में होना जरूरी है.' महिला ने कहा कि यह निर्णय पूरी तरह अनुचित था क्योंकि ऑफिस में फिजिकल प्रजेंस की बजाय, दिवाली पर कम से कम घर से काम करने की अनुमति मिलनी चाहिए थी. उन्होंने लिखा, 'हमने इसके लिए पूरे साल छुट्टियां और वर्क फ्रॉम होम बचाकर रखा है.' साथ ही एक अन्य सहकर्मी, जो उसी शहर से थीं, उसकी भी छुट्टियां रद्द कर दीं ताकि ऑफिस आ सकें,
मैनेजर से बहस
महिला ने बताया कि जब उन्हें ऑफिस बुलाया गया, तो उन्होंने अपने सीनियर मैनेजर से गुस्से और आंसुओं के साथ बहस की.'मैंने अपने सीनियर मैनेजर से रोते-बिलखते, गुस्से से बहस की और जोर देकर कहा कि मुझे घर जाना है. यही एक मौका है जब मैं घर जा पाऊंगी.'
रेडिट यूजर्स की प्रतिक्रियाएं
महिला की पोस्ट पर बड़ी संख्या में प्रतिक्रियाएं आईं. कई यूजर्स ने खुद के अनुभव साझा किए और बताया कि कैसे वैश्विक कंपनियों में भारतीय कर्मचारियों के साथ भेदभाव किया जाता है. एक यूजर ने लिखा, 'मैं जर्मनी में काम करने वाला एक भारतीय हूं. हमारे प्रोजेक्ट की पुणे में एक छोटी सी टीम है, और मैनेजर हमेशा मीटिंग्स में गर्व से बताते रहते हैं कि उनकी टीम इतनी समर्पित है कि वे वीकेंड और छुट्टियों में भी काम कर सकते हैं.' हालांकि, कुछ लोगों ने यह भी कहा कि पश्चिमी देशों की टीमों के साथ काम करना अधिक लचीला और समझदारी भरा होता है, जबकि भारतीय प्रबंधक अक्सर अधिक कठोर रवैया अपनाते हैं.


