ड्रोन से वार, रनवे पर तबाही, यूक्रेन की इजराइल जैसी सैन्य चतुराई
यूक्रेन का हालिया ड्रोन हमला 1967 के इजराइली ऑपरेशन फोकस और 2024 के पेजर स्ट्राइक की याद दिलाता है. यह हमला रणनीतिक साहस, खुफिया चतुराई और निर्णायक सोच का प्रतीक है. अब यूक्रेन भी उन देशों में शामिल हो गया है जो नतीजों से पहले कार्रवाई करते हैं.

यूक्रेन-रूस युद्ध ने 1 जून 2025 को एक ऐतिहासिक मोड़ ले लिया. यूक्रेन ने रूस के अंदर 4,000 किलोमीटर दूर स्थित एयरबेस पर हमला कर 40 से ज्यादा बॉम्बर्स को तबाह कर दिया. यह हमला न सिर्फ रूस की वायु शक्ति को बड़ा झटका है, बल्कि यह सैन्य रणनीति के इतिहास में दर्ज हो जाने लायक एक अध्याय भी है.
इस हमले की खासियत सिर्फ इसका नुकसान नहीं, बल्कि वह तरीका है जिससे यह अंजाम दिया गया. किसी भी यूक्रेनी फाइटर जेट ने रूसी हवाई सीमा में प्रवेश नहीं किया. ट्रकों में छिपे ड्रोन सिस्टम, रिमोट ऑपरेशन, महीनों की तैयारी और दुश्मन की सुरक्षा पर सटीक सर्जिकल वार—यह सब एक ऐसे युद्ध का संकेत देता है जिसमें अब इनोवेशन सबसे बड़ा हथियार है.
1967 का ऑपरेशन फोकस: रणनीति की शुरुआत
यूक्रेन का यह हमला सीधे 1967 के इजराइली ऑपरेशन 'फोकस' की याद दिलाता है. इजराइल ने उस समय मिस्र, सीरिया और जॉर्डन के एयरबेस पर ऐसे ही बिजली गति से हमला किया था. दो घंटे से भी कम समय में 338 एयरक्राफ्ट नष्ट कर दिए गए थे. इसका असर ये हुआ कि इजराइल ने पूरे युद्ध की दिशा पलट दी थी.
पेजर ऑपरेशन से मिलती-जुलती पैठ
2024 में इजराइल ने हिज़बुल्लाह के खिलाफ ‘पेजर ऑपरेशन’ चलाया था, जिसमें उसने नकली संचार उपकरणों के ज़रिये दुश्मन के नेटवर्क में सेंध लगाई थी. यूक्रेन के हमले में भी कुछ ऐसा ही देखा गया—लंबी योजना, तकनीकी घुसपैठ और एक सिंगल स्ट्राइक में बड़ा नुकसान.
ऑपरेशन बारब्रोसा की याद
यूक्रेन की यह स्ट्राइक रूस की वायुसेना पर 1941 के बाद सबसे बड़ा हमला मानी जा रही है. तब जर्मन लुफ्टवाफे ने हजारों सोवियत विमानों को जमीन पर ही नष्ट कर दिया था. अब यूक्रेन ने वही इतिहास दोहराया है, लेकिन नई तकनीक के साथ.
नतीजा क्या होगा?
इस हमले के बाद युद्ध का संतुलन बदल सकता है. रूस को अपनी एयरबेस सुरक्षा पर नए सिरे से सोचने की जरूरत पड़ेगी. यूक्रेन ने दिखा दिया है कि छोटा देश भी दिमाग और साहस से बड़ी ताकतों को चौंका सकता है.


