SCO समिट में मोदी-जिनपिंग की होगी खास बातचीत, क्या खत्म होगा भारत-चीन का तनाव?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का तियांजिन में SCO समिट के लिए शानदार स्वागत हुआ. ट्रंप के 50% टैरिफ के बाद मोदी की चीनी राष्ट्रपति जिनपिंग और रूसी राष्ट्रपति पुतिन के साथ अहम मुलाकातें भारत की कूटनीतिक चाल को मजबूत करेंगी. वैश्विक शक्ति संतुलन पर दुनिया की नजरें टिकी हैं.

SCO Summit 2025: शंघाई सहयोग संगठन (SCO) का आगामी समिट चीन के तियानजिन शहर में होने जा रहा है और इसके साथ ही वैश्विक राजनीति के समीकरण तेजी से बदलते नजर आ रहे हैं. जहां एक ओर चीन इस मंच को अपनी रणनीतिक शक्ति के प्रदर्शन के रूप में पेश कर रहा है वहीं अमेरिका की चिंता और बढ़ गई है. खासकर जब पाकिस्तान के आतंकवाद पर इस मंच की चुप्पी बनी रहती है और चीन हमेशा इस मंच पर अपनी प्रमुख भूमिका में रहता है.
शी जिनपिंग की SCO पर पकड़ और अमेरिका की चिंता
चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग इस बार SCO समिट को केवल एक औपचारिक बैठक नहीं बल्कि अपनी ताकत का प्रदर्शन बनाने की दिशा में ले जा रहे हैं. चीन न केवल इस मंच पर अपना प्रभाव बनाए हुए है बल्कि पाकिस्तान जैसे सहयोगियों की मदद से SCO को अपनी रणनीतिक जरूरतों के अनुसार ढालता आ रहा है. यही कारण है कि पाकिस्तान के आतंकवाद पर इस मंच से अब तक कोई ठोस आलोचना नहीं हुई.
रेयर अर्थ मिनरल्स की वजह से अमेरिका का डर
अमेरिका के लिए चिंता की एक और बड़ी वजह रेयर अर्थ एलिमेंट्स हैं. दुनिया के लगभग 60-65% रेयर अर्थ उत्पादन पर चीन का नियंत्रण है जबकि ब्राजील दूसरे स्थान पर है. अमेरिका ने ब्राजील पर 50% टैरिफ लगाया है लेकिन चीन के साथ वह ऐसा करने में असमर्थ है. ट्रंप को चीन के आगे झुकना पड़ा क्योंकि वैश्विक तकनीकी और रक्षा उद्योगों में इन 17 धातुओं की जरूरत अत्यधिक है.
क्या भारत को मिलेगा SCO से कोई लाभ?
भारत के लिए यह सवाल अहम हो गया है कि क्या चीन-प्रधान SCO से उसे कोई ठोस फायदा होगा? इस बार समिट में चीन, भारत के साथ सांस्कृतिक साझेदारी का हवाला देते हुए वातावरण सौहार्दपूर्ण बनाने की कोशिश कर रहा है. चीनी दूतावास ने भगवान गणेश की छवि साझा कर यह जताया कि भारत और चीन का संबंध ऐतिहासिक और सांस्कृतिक रूप से जुड़ा है.
भारत और चीन के बीच दो अहम बैठकें
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस समिट के दौरान चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग से दो बार मुलाकात कर सकते हैं. पहली मुलाकात रविवार दोपहर होगी. जबकि दूसरी SCO शिखर सम्मेलन के औपचारिक भोज से पहले. सोमवार को मोदी और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के बीच भी एक महत्वपूर्ण बैठक प्रस्तावित है. मोदी का उद्देश्य अमेरिका द्वारा लगाए गए टैरिफ के प्रभाव को कम करना और एशियाई देशों के साथ अपने संबंधों को और अधिक मजबूत करना है.
चीन पर भरोसा? भारत के लिए बड़ा सवाल
भारत और चीन के बीच व्यापार को लेकर लंबे समय से तनाव बना हुआ है. चीन अक्सर भारतीय उत्पादों को सीमा पर रोक देता है कभी गुणवत्ता तो कभी चेकिंग के नाम पर. यही वजह है कि जानकार पूछ रहे हैं क्या चीन अब भारतीय माल के लिए अपने बाजार को खोलेगा? क्या यह संबंध भारत के हित में होंगे?
SCO में भारत की भूमिका क्यों है खास?
SCO भारत के लिए आतंकवाद जैसे गंभीर मुद्दों पर पाकिस्तान को घेरने का एक प्रभावशाली मंच है. साथ ही यह भारत और रूस के पारंपरिक संबंधों को भी मजबूती देता है. हालांकि चीन के साथ संबंध हमेशा जटिल रहे हैं. लेकिन इस मंच पर आमने-सामने बैठकर दोनों देशों को क्षेत्रीय और वैश्विक मुद्दों पर चर्चा का मौका मिलता है.
भारत के लिए रणनीतिक संतुलन का मौका
विशेषज्ञ मानते हैं कि SCO भारत को एक रणनीतिक संतुलन बनाने का मौका देता है. अगर भारत इस मंच से दूरी बनाएगा, तो पाकिस्तान को खुला मैदान मिल सकता है. यही कारण है कि भारत SCO में सक्रिय भागीदारी बनाए रखना चाहता है.
डोकलाम से अरुणाचल तक क्या बदलेंगे रिश्ते?
प्रधानमंत्री मोदी की यह चीन यात्रा केवल बहुपक्षीय बैठक नहीं बल्कि भारत-चीन संबंधों का एक निर्णायक मोड़ हो सकती है. डोकलाम, अरुणाचल और सीमा विवादों के बीच यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या मोदी और जिनपिंग की मुलाकात से किसी समाधान की दिशा तय होती है.
तियानजिन से तय होगी वैश्विक राजनीति की दिशा
यह समिट उस समय हो रहा है जब रूस-यूक्रेन युद्ध, अमेरिका के टैरिफ्स और वैश्विक शक्ति संघर्ष अपनी चरम पर हैं. ऐसे में यदि भारत, रूस और चीन किसी साझा रणनीति पर सहमति बनाते हैं. यह अमेरिका और यूरोप के लिए एक बड़ा संकेत हो सकता है. भारत के सामने विकल्प साफ है या तो वह चीन-रूस खेमे में शामिल हो या फिर अपनी परंपरागत नीति सबसे दोस्ती किसी से दुश्मनी नहीं को कायम रखे.


