परमाणु युद्ध की वापसी? ट्रम्प और मेदवेदेव की जुबानी जंग से सहमी दुनिया
वर्तमान समय में रूस और अमेरिका के बीच परमाणु तनाव फिर से बढ़ गया है, जैसा कि मेदवेदेव और ट्रम्प की हालिया टिप्पणियों में दिखा. यह स्थिति 1962 के क्यूबा मिसाइल संकट की याद दिलाती है, जब दुनिया परमाणु युद्ध के करीब पहुंच गई थी. उस समय संयम और राजनयिक समझ से संकट टला था, लेकिन आज सोशल मीडिया पर होता यह संवाद स्थिति को और अस्थिर बना रहा है.

हाल ही में पूर्व रूसी राष्ट्रपति और वर्तमान में रूस की सुरक्षा परिषद के उपाध्यक्ष दिमित्री मेदवेदेव ने एक टेलीग्राम पोस्ट के ज़रिए अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प को मज़ेदार अंदाज़ में ताना मारा. उन्होंने कोल्ड वॉर की फिल्मों, परमाणु सिद्धांतों और पुराने "डेड हैंड" सिस्टम यानी Perimeter का ज़िक्र किया. यह वो सिस्टम था जो सोवियत युग में बनाया गया था ताकि यदि पूरी रूसी नेतृत्व ही खत्म हो जाए, तब भी स्वचालित रूप से परमाणु प्रत्युत्तर (retaliation) किया जा सके.
मेदवेदेव की तीखी टिप्पणी
ट्रम्प ने तैनात करेंगे परमाणु पनडुब्बी
इसके तुरंत बाद ट्रम्प ने घोषणा की कि उन्होंने दो अमेरिकी परमाणु पनडुब्बियों को “उपयुक्त क्षेत्रों” में तैनात करने का आदेश दिया है. उन्होंने कहा कि शब्द बहुत शक्तिशाली होते हैं और अक्सर अंजाने पर परिणामी संकट पैदा कर सकते हैं. उन्होंने यह स्पष्ट किया कि यह कदम केवल सावधानी के तौर पर उठाया गया है, ताकि कोई गैर‑ज़रूरी घटना न घटे.
रूस का आत्मविश्वास
रूसी सांसद विक्टर वोडोलात्सकी ने कहा कि रूस के पास दुनिया भर में इतनी परमाणु पनडुब्बियाँ हैं कि वे आसानी से अमेरिकी दो सबमरीन का सामना कर सकती हैं. उन्होंने दावा किया कि ट्रम्प द्वारा भेजी गई सबमरीन पहले से ही रूस के नियंत्रण में पहले से मौजूद हैं. इसलिए, रूस की ओर से किसी प्रतिक्रिया की आवश्यकता ही नहीं है.
क्यूबा मिसाइल संकट, समय सीमा और भय
1962 में की गई सबसे खतरनाक परमाणु झड़प को क्यूबा मिसाइल संकट कहा जाता है. जब सोवियत संघ ने क्यूबा में परमाणु मिसाइलें छुपाकर तैनात कीं, तो अमेरिका की धरती से केवल 145 किलोमीटर की दूरी पर ये मिसाइलें पहुंच गईं थी. पूरे विश्व ने उस वक्त सांस रोके इस घटना का निदान देखा.
संकट की उत्पत्ति
1961 में फिदेल कास्त्रो की अगुवाई में क्यूबा अमेरिका विरोधी दिशा में बढ़ा और सोवियत संघ से जुड़ गया. अमेरिकी CIA की Bay of Pigs ऑपरेशन असफल रही और यह अमेरिका के लिए शर्मिंदगी थी. इस बीच सोवियत नेता खूष्चेव ने क्यूबा में परमाणु मिसाइलें तैनात करने की गुप्त योजना बनाई, जिससे अमेरिका के जुपिटर मिसाइलों को संतुलन मिले.
अमेरिका की खोज और प्रतिक्रिया
14 अक्टूबर 1962 को अमेरिकी U‑2 विमान ने क्यूबा में मिसाइल साइटों की तस्वीरें लीं. इसके अगले दिन राष्ट्रपति केनेडी को यह जानकारी दी गई. 22 अक्टूबर को उन्होंने राष्ट्रीय टेलीविजन पर घोषणा की कि सोवियत मिसाइलें अमेरिका की सीमाओं के बहुत करीब पहुंच गई हैं. उन्होंने एक नौसैनिक "कोरंटाइन" (quarantine) घोषित किया, जिससे क्यूबा को और हथियार नहीं मिल सकें.
सोवियत संघ की चुनौती
सोवियत नेतृत्व ने इस कार्रवाई को अवैध बताया लेकिन कुछ जहाज बिना मिसाइल लाए वापस लौट गए, जबकि कुछ जहाजों को तलाशी के बाद गुजरने दिया गया. इसमें स्पष्ट हुआ कि विदेश नीति अब सीधे टकराव की बजाय सांकेतिक तनाव और निरीक्षण पर मोड़ रही है.
ब्लैक सैटरडे: सबसे खतरनाक दिन
27 अक्टूबर, 1962 को एक U‑2 विमान क्यूबा पर दुर्घटनाग्रस्त हुआ और मेजर रुडोल्फ एंडरसन की मृत्यु हुई. खूष्चेव ने उसी दिन दो पत्र भेजे—पहला सौहार्दपूर्ण प्रस्ताव (हमले की शर्त पर मिसाइल हटाने की पेशकश) और दूसरा एक नई मांग (यूएस की टर्की में मौजूद जुपिटर मिसाइलें हटाई जाएं). केनेडी ने पहले पत्र को स्वीकार कर लिया, जबकि दूसरे पर उन्होंने गुप्त रूप से अपनी पूरी प्रतिक्रिया की.
संकट का समाधान
28 अक्टूबर को खूष्चेव ने स्वीकार किया कि सोवियत मिसाइलें क्यूबा से हटाई जाएंगी और अमेरिका क्यूबा पर हमला नहीं करेगा. क़रंटाइन 20 नवंबर तक जारी रहा और अप्रैल 1963 तक टर्की में अमेरिकी जुपिटर मिसाइलें हटाई गईं, जिससे सीधा टकराव टल गया.
उसके बाद का प्रभाव
इस संकट के बाद व्हाइट हाउस और क्रेमलिन के बीच सीधा हॉटलाइन संपर्क स्थापित किया गया. वर्ष 1963 में Partial Nuclear Test Ban Treaty पर हस्ताक्षर हुए, जिससे वातावरण, पानी और अंतरिक्ष में परमाणु परीक्षणों पर रोक लगी. दोनों देशों में संवाद और संयम की अहमियत बढ़ी.
कोल्ड वॉर की तुलना में कहीं ज्यादा खतरनाक
आज की स्थिति में जहां सोशल मीडिया पर परमाणु भाषा सार्वजनिक हो गई है, यह कोल्ड वॉर की तुलना में कहीं ज़्यादा खतरनाक बन चुकी है. ट्रम्प और मेदवेदेव द्वारा सोशल मीडिया पर सार्वजनिक बयानबाज़ी कर दी गई नाभिकीय संप्रेषण प्रक्रिया से 1962 की गुप्त रणनीति का तेज विरोधाभास होता है. इससे यह स्पष्ट होता है कि वर्तमान तनावों में सजगता, संयम और राजनयिक उपाय ही हमें बड़े संकट से बचाने का आधार हैं.


