4 साल में 40 लाख मौतों का खतरा, अमेरिका के फैसले ने HIV संकट को बढ़ाया
दुनियाभर में एड्स के खिलाफ चल रही लड़ाई को उस वक्त बड़ा झटका लगा, जब अमेरिका ने HIV प्रोग्राम्स के लिए दी जाने वाली अंतरराष्ट्रीय फंडिंग अचानक रोक दी. इससे न सिर्फ इलाज और जांच सेवाएं प्रभावित हुईं, बल्कि सप्लाई चेन से लेकर हेल्थ वर्कर्स की नौकरी तक खतरे में पड़ गई.

HIV और एड्स के खिलाफ जहां दुनियाभर में बीते दो दशकों से बड़ी कामयाबी मिल रही थी, वहीं अब इस जंग को एक बड़ा झटका लगा है. अमेरिकी सरकार द्वारा अंतरराष्ट्रीय HIV कार्यक्रमों के लिए दी जाने वाली फंडिंग अचानक बंद कर दिए जाने से दर्जनों देशों में स्वास्थ्य सेवाएं चरमरा गई हैं. संयुक्त राष्ट्र की संस्था UNAIDS ने चेतावनी दी है कि अगर अमेरिका ने दोबारा फंडिंग शुरू नहीं की, तो 2029 तक दुनिया में 4 मिलियन मौतें और 6 मिलियन नए संक्रमण देखने को मिल सकते हैं.
दरअसल, अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के कार्यकाल के दौरान HIV से जुड़ी विदेशी मदद पर रोक लगाई गई थी, जो 2025 तक पूरी तरह खत्म कर दी गई. इसका असर न केवल गरीब देशों पर, बल्कि पूरी दुनिया के एड्स नियंत्रण अभियान पर पड़ा है. आइए जानते हैं कि कौन-सा प्रोग्राम था यह, और अमेरिका के इस फैसले ने कैसे एक वैश्विक संकट को जन्म दे दिया.
20 साल पुराना ‘PEPFAR’ प्रोग्राम
2003 में तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज बुश द्वारा शुरू किया गया PEPFAR (President’s Emergency Plan for AIDS Relief) प्रोग्राम दुनिया का सबसे बड़ा HIV-अनुदान कार्यक्रम था. इस योजना ने अब तक 80 मिलियन लोगों की जांच करवाई और 20 मिलियन से अधिक लोगों को मुफ्त इलाज मुहैया कराया.
PEPFAR के ज़रिए न सिर्फ अफ्रीका बल्कि भारत, नेपाल, कंबोडिया और लैटिन अमेरिका जैसे दर्जनों देशों में HIV कंट्रोल संभव हुआ. नाइजीरिया जैसे देशों में 99.9% HIV दवाओं की सप्लाई इसी फंडिंग से होती थी. लेकिन जनवरी 2025 में अमेरिका ने यह सहायता अचानक बंद कर दी, जिससे हजारों क्लीनिक बंद हो गए, दवाओं की आपूर्ति रुक गई और लाखों मरीजों की जिंदगी खतरे में पड़ गई.
UNAIDS की रिपोर्ट में डरावना अनुमान
UNAIDS ने अपनी ताजा रिपोर्ट में कहा है, अगर अमेरिका की बंद की गई फंडिंग की भरपाई नहीं हुई, तो अगले 4 सालों में 40 लाख लोगों की मौत और 60 लाख नए HIV संक्रमण के मामले सामने आ सकते हैं." इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि पहले से मौजूद इलाज योजनाएं ठप हो रही हैं, टेस्टिंग की दर घट गई है और एड्स से जुड़ी जनजागरूकता मुहिमें रुक गई हैं.
हेल्थ सिस्टम पर टूटा कहर
अमेरिका का यह प्रोग्राम केवल दवाइयां ही नहीं देता था, बल्कि वह डेटा कलेक्शन, जागरूकता अभियान और अस्पतालों की मैनेजमेंट में भी बड़ी भूमिका निभाता था. अब जब फंडिंग रुक गई है तो अफ्रीकी और एशियाई देशों के सरकारी सिस्टम के पास न मरीजों का डेटा है, न भविष्य की योजना. कई कम्युनिटी हेल्थ संस्थान बंद हो चुके हैं और WHO जैसी संस्थाओं को भी दोबारा पूरी व्यवस्था खड़ी करनी पड़ रही है, जिसमें वक्त और पैसा दोनों लगेंगे.
नई दवा Yeztugo से उम्मीदें
इस बीच HIV से बचाव के लिए एक नई दवा Yeztugo ने नई उम्मीदें जगाई हैं. यह दवा हर 6 महीने में एक डोज से 100% तक संक्रमण रोकने में कारगर मानी जा रही है. अमेरिका की FDA ने इसे मंजूरी दे दी है और दक्षिण अफ्रीका में इसके उपयोग की योजना बन चुकी है. लेकिन चुनौती ये है कि इस दवा को बनाने वाली कंपनी Gilead ने इसे केवल गरीब देशों के लिए सस्ती कीमत पर देने का ऐलान किया है, जबकि मिडल-इनकम देशों जैसे लैटिन अमेरिका इसमें शामिल नहीं हैं. यानी जहां संक्रमण तेजी से बढ़ रहा है, वहां यह दवा अब भी आम लोगों की पहुंच से बाहर है.
अमेरिका के फैसले से बिगड़ सकता है 20 सालों का संतुलन
HIV के खिलाफ लड़ाई में PEPFAR जैसी योजनाओं ने बीते दो दशकों में जो आधार तैयार किया था, वह अब एक झटके में डगमगा गया है. UNAIDS, WHO और दुनिया की तमाम हेल्थ एजेंसियां अब यह अपील कर रही हैं कि अमेरिका को इस फंडिंग को फिर से शुरू करना चाहिए, वरना अगले कुछ वर्षों में एड्स दोबारा वैश्विक महामारी का रूप ले सकता है.


