लौटने की कोई उम्मीद नहीं थी... नेपाल से बचे भारतीयों की दिल दहलाने वाली आपबीती
नेपाल में फंसे भारतीयों ने न केवल युवाओं के जोशीले प्रदर्शन को देखा, बल्कि हर पल मौत को करीब आते हुए भी महसूस किया. अभी भी कई भारतीय काठमांडू में फंसे हुए हैं, जिन्हें सुरक्षित निकालने के लिए हर संभव प्रयास किए जा रहे हैं.

Indians Trapped in Nepal: नेपाल में चल रहे सरकार विरोधी हिंसक प्रदर्शनों ने न केवल देश को भीतर से झकझोर दिया बल्कि वहां मौजूद भारतीय नागरिकों को भी जानलेवा संकट में डाल दिया. कई दिनों तक चले हिंसा और उपद्रव के चलते सरकारी कार्यालयों, होटलों, निजी संपत्तियों और संसद भवन तक को निशाना बनाया गया. इस दौरान नेपाल घूमने पहुंचे भारतीय पर्यटक भी काठमांडू की आग में फंस गए. भारत सरकार के त्वरित प्रयासों से अधिकतर भारतीय नागरिकों को सुरक्षित देश वापस लाया गया, लेकिन जो अनुभव वे साथ लेकर लौटे, वो उनके लिए जीवनभर का डर बन गया है. लौटे नागरिकों ने जो आपबीती साझा की है, वो रौंगटे खड़े कर देने वाली है.
ख्याती ने साझा की आपबीती
दिल्ली के द्वारका की रहने वाली ख्याती नेपाल में अपने किसी निजी कार्य से गई थीं. यात्रा के दौरान वह काठमांडू के एक होटल में ठहरी हुई थीं. जब हिंसा और आगजनी अपने चरम पर थी. उन्होंने बताया कि मेरा होटल एयरपोर्ट से केवल आधे घंटे की दूरी पर था लेकिन बाहर निकलना बिल्कुल भी सुरक्षित नहीं लग रहा था. प्रदर्शनकारी अब होटलों को भी आग के हवाले करने लगे थे. ख्याती ने अपने होटल के कमरे से बाहर का हिंसा का वीडियो भी रिकॉर्ड किया. जब स्थिति बेकाबू हुई, तब उन्होंने होटल के मैनेजर से एयरपोर्ट पहुंचाने की गुहार लगाई लेकिन उन्हें समझाया गया कि बाहर निकलना और भी ज्यादा जानलेवा हो सकता है. घंटों इंतजार के बाद वह किसी तरह एयरपोर्ट पहुंचीं और भारत लौटीं.
नेपाल में फंसे हुए भारतीयों की हालत
गाजियाबाद के रहने वाले राजेश देवी सिंह गोला अपनी पत्नी के साथ छुट्टियां बिताने काठमांडू पहुंचे थे. जब उनका होटल भीड़ के निशाने पर आया तो जान बचाने के लिए उन्होंने खिड़की पर लगे पर्दों और चादरों को बांधकर रस्सी बनाई और नीचे उतरने का प्रयास किया. उनके बेटे विशाल गोला ने बताया कि मेरे माता-पिता ने हयात रेजेंसी में कमरा बुक किया था. 9 सितंबर को प्रदर्शन के बाद लौटे तो प्रदर्शनकारी होटल में घुस आए और आग लगाने लगे. उनके पिता ने पर्दों और बेडशीट को जोड़कर रस्सी बनाई और मां को पहले उतारा. मेरी मां जब दूसरी मंजिल तक पहुंचीं तो नियंत्रण खो बैठीं और गिर गईं. उनके सिर से खून बह रहा था. तभी एक आर्मी की जीप आई जो मेरी मां को लेकर चली गई, लेकिन मेरे घायल पिता को वहीं छोड़ गई.
बाद में जब उनके पिता किसी तरह अस्पताल पहुंचे, तो वहां उन्हें बताया गया कि उनकी पत्नी की मौत हो गई है. उन्होंने कहा कि ये हादसा हमारे पूरे परिवार के लिए गहरा सदमा है. हम अब तक इससे उबर नहीं पाए हैं. हालांकि, काठमांडू प्रशासन ने अब तक राजेश देवी सिंह गोला की मौत की पुष्टि नहीं की है लेकिन यदि पुष्टि होती है तो यह नेपाल हिंसा में किसी भारतीय की पहली मौत होगी.


