'चुनाव नहीं तो बगावत तय'... भंवर में फंसे यूनुस सरकार! सेना के अल्टीमेटम से बांग्लादेश में गरमाई राजनीति
बांग्लादेश में अंतरिम सरकार के मुखिया प्रोफेसर मोहम्मद यूनुस गंभीर राजनीतिक संकट में फंसे हैं. उन पर जल्द चुनाव कराने का दबाव लगातार बढ़ता जा रहा है. सेना, विपक्ष, छात्र संगठन और नागरिक समूह सभी यूनुस से चुनाव की स्पष्ट टाइमलाइन की मांग कर रहे हैं. वहीं यूनुस इस्तीफे और जनविद्रोह के बीच उलझे हुए हैं.

बांग्लादेश की राजनीति एक नाजुक मोड़ पर आ खड़ी हुई है, जहां अंतरिम सरकार के मुखिया प्रोफेसर मोहम्मद यूनुस पर चुनाव कराने का जबरदस्त दबाव बन गया है। सेना से लेकर विपक्षी दल, छात्र संगठन और नागरिक समूह तक – हर कोई मांग कर रहा है कि देश में जल्द चुनाव कराए जाएं। लेकिन इन सबके बीच खुद यूनुस गहरे असमंजस में फंसे नजर आ रहे हैं.
स्थिति इतनी उलझ चुकी है कि अगर वह इस्तीफा देते हैं, तो उन पर कायरता का आरोप लगेगा, और अगर वे कुर्सी पर बने रहते हैं, तो व्यापक जनविद्रोह का खतरा मंडरा रहा है। इस राजनीतिक भंवर से बाहर निकलना यूनुस के लिए किसी चुनौती से कम नहीं है.
सेना ने दी चेतावनी
बांग्लादेश की सेना ने साफ कर दिया है कि देश को अब सिर्फ एक निर्वाचित सरकार ही स्थिरता दे सकती है। सेना प्रमुख वाकर-उज-जमां ने यह भी कहा है कि दिसंबर तक चुनाव होने चाहिए, वरना हालात नियंत्रण से बाहर जा सकते हैं। इस अल्टीमेटम को यूनुस हल्के में नहीं ले सकते – यह स्पष्ट चेतावनी है कि अगर वे चुनाव टालते हैं, तो सेना भी मैदान में उतर सकती है.
छात्र संगठनों का बदला रुख
शुरुआत में जो छात्र संगठन यूनुस के समर्थन में थे, अब वही उनसे जवाब मांग रहे हैं। उनका कहना है कि जब तक शेख हसीना के शासनकाल की कथित ज्यादतियों पर कार्रवाई नहीं होती और चुनाव सुधार लागू नहीं किए जाते, तब तक कोई भी आम चुनाव स्वीकार्य नहीं होगा। यूनुस के लिए यह स्थिति दोधारी तलवार जैसी है – चुनाव कराएं तो छात्र भड़केंगे, सुधारों पर ध्यान दें तो सेना और विपक्ष नाराज.
रोडमैप दो, वरना आंदोलन होगा
पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा जिया की पार्टी बीएनपी और कट्टरपंथी संगठन जमात-ए-इस्लामी अब सड़कों पर उतरने को तैयार हैं। दोनों दलों के बीच हाल ही में कई बैठकें हुई हैं जिनमें रणनीति तय की गई है – या तो यूनुस सरकार चुनाव की ठोस टाइमलाइन दे या फिर विपक्ष सड़कों पर आंदोलन करेगा। बीएनपी महासचिव मिर्जा फखरुल इस्लाम ने साफ कहा है, “बिना रोडमैप अब कोई समर्थन संभव नहीं।”
राष्ट्रीय सरकार का प्रस्ताव नाकाम
यूनुस ने सभी दलों से बातचीत कर एक नई राष्ट्रीय सरकार बनाने का विकल्प भी सुझाया था, लेकिन विपक्ष ने इस प्रस्ताव को सिरे से खारिज कर दिया। बीएनपी का कहना है कि अगर चुनाव नहीं कराए गए, तो किसी भी नई सरकार को वैधता नहीं दी जाएगी। यानी यूनुस के पास न इस्तीफे का विकल्प आसान है, न सत्ता में टिके रहना और न ही कोई नया फॉर्मूला स्वीकार्य.
सरकार की प्राथमिकताएं
सरकार की ओर से सलाहकार और पर्यावरण मंत्री सायदा रिजवाना हसन ने बताया है कि सरकार के सामने तीन मुख्य एजेंडे हैं – चुनाव कराना, सुधार लागू करना और अवामी लीग के नेताओं पर मुकदमे चलाना। इंटरनेशनल ट्राइब्यूनल की स्थापना हो चुकी है और जल्द ही सुनवाई शुरू होने वाली है। लेकिन उन्होंने यह भी स्वीकारा कि सहयोग के बिना यह प्रयास अधूरे रह जाएंगे.
बुद्धिजीवियों और मीडिया की अपील
सरकार के बाहर से भी यूनुस को इस्तीफा न देने की अपीलें आ रही हैं। वरिष्ठ पत्रकार, शिक्षाविद और नागरिक संगठनों ने एक सुर में कहा है कि अगर यूनुस इस संकट की घड़ी में पीछे हटे, तो यह पूरे राष्ट्र के साथ विश्वासघात होगा। उनका मानना है कि जब देश अंधकार में था, तब यूनुस ही आशा की किरण बने थे – अब जब देश संकट में है, तो उन्हें डटे रहना चाहिए.
इतिहास में दर्ज होगा यूनुस का हर फैसला
अब सवाल यही है कि प्रो. यूनुस किस रास्ते पर चलेंगे? इस्तीफा देकर आलोचना से बच सकते हैं, या जनता के लिए लड़ते हुए डटे रह सकते हैं। लेकिन जो भी फैसला वे लेंगे, उसका असर न सिर्फ उनकी छवि पर पड़ेगा, बल्कि बांग्लादेश की राजनीतिक दिशा को भी तय करेगा.


