गर्मी में ज्यादा पसीना आना हो सकता है बीमारी का संकेत, जानें वजह
गर्मियों में पसीना आना शरीर की सामान्य प्रक्रिया है जो शरीर को ठंडा रखने में मदद करता है. लेकिन अगर बिना गर्मी या मेहनत के भी अत्यधिक पसीना आ रहा है, तो यह हाइपरहाइड्रोसिस जैसी स्वास्थ्य समस्या का संकेत हो सकता है, जिसका समय रहते इलाज कराना जरूरी है.

गर्मियों में पसीना आना आम बात है. तापमान 45 डिग्री से ऊपर जा रहा है और वायु प्रदूषण भी इस तपती गर्मी में ज़हरीली चादर की तरह वातावरण को ढक रहा है. ऐसे में शरीर को ठंडा रखने के लिए पसीना आना स्वाभाविक प्रक्रिया है. लेकिन अगर आप ठंडी, वातानुकूलित जगह पर बैठे हैं और फिर भी पसीना आ रहा है, तो यह एक सामान्य बात नहीं, बल्कि एक बीमारी हो सकती है. इस स्थिति को गंभीरता से लेना जरूरी है क्योंकि इसके पीछे छिपी बीमारी शरीर को कई तरह की परेशानियों में डाल सकती है.
गाजियाबाद के एमएमजी अस्पताल के सीनियर फिजिशियन डॉ. आलोक रंजन बताते हैं कि जब व्यक्ति को बिना किसी वजह के लगातार और अत्यधिक पसीना आता है, तो यह स्थिति हाइपरहाइड्रोसिस (Hyperhidrosis) कहलाती है. सामान्य रूप से गर्मी में या परिश्रम करने पर पसीना आता है, लेकिन अगर कोई व्यक्ति शांत, ठंडे वातावरण में भी पसीने से तरबतर हो रहा है, तो यह किसी चिकित्सकीय समस्या का संकेत है.
हाइपरहाइड्रोसिस के कारण
दिल्ली के वरिष्ठ फिजिशियन डॉ. अजय कुमार बताते हैं कि हाइपरहाइड्रोसिस के पीछे कई कारण हो सकते हैं:
- तंत्रिका तंत्र की समस्या
- हार्मोनल असंतुलन
- आनुवांशिक कारण
- तनाव या चिंता
कुछ दवाइयों का साइड इफेक्ट
ये समस्या आमतौर पर हथेली, तलवे, बगल या चेहरे पर ज्यादा पसीने के रूप में सामने आती है. इससे न केवल असहजता होती है, बल्कि दुर्गंध और सोशल एंग्जायटी जैसी मानसिक समस्याएं भी हो सकती हैं.
लक्षण और खतरे
हाइपरहाइड्रोसिस के प्रमुख लक्षणों में अत्यधिक पसीना, दुर्गंध, कपड़े बार-बार गीले होना, और डिहाइड्रेशन शामिल हैं. यदि इसका इलाज समय पर न कराया जाए, तो यह तंत्रिका तंत्र और हृदय संबंधी समस्याओं को जन्म दे सकता है. इसके साथ-साथ, यदि पसीना आने के साथ थकान, बुखार या वजन कम हो रहा है, तो यह किसी गंभीर रोग जैसे टीबी या हार्मोनल ट्यूमर की ओर भी इशारा कर सकता है.
क्या करें अगर ये लक्षण दिखें?
यदि आपको सामान्य से अधिक पसीना आता है, तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें. डॉक्टर आवश्यकतानुसार ब्लड टेस्ट, थायरॉयड और हार्मोन प्रोफाइल जैसी जांचों के जरिए बीमारी की पुष्टि करते हैं. इलाज में मेडिकल थेरेपी, एंटीपरस्पिरेंट्स, बोटॉक्स इंजेक्शन, या जरूरत पड़ने पर सर्जरी तक की सलाह दी जाती है.


