अपने दंड की प्राण प्रतिष्ठा क्यों करते हैं संन्यासी? मरने के बाद लेते हैं समाधि
महाकुंभ 2025 में भी दंडी संन्यासियों का आकर्षण श्रद्धालुओं को अपनी ओर खींचता है. श्रद्धालुओं के मन में यह सवाल उठता है कि दंडी संन्यासी कौन होते हैं और वे अपने दंड की प्राण प्रतिष्ठा क्यों करते हैं.

1920 को पटना में स्वतंत्रता संग्राम सेनानी मजहर उल हक के घर पर महात्मा गांधी से एक संत सहजानंद की मुलाकात हुई. इस मुलाकात ने सहजानंद को गांधी जी के विचारों से प्रभावित किया और वे राष्ट्रीय मुक्ति आंदोलन में शामिल हो गए. सहजानंद को भारत में किसान आंदोलनों का जनक माना जाता है. महाकुंभ 2025 में भी दंडी संन्यासियों का आकर्षण श्रद्धालुओं को अपनी ओर खींचता है. श्रद्धालुओं के मन में यह सवाल उठता है कि दंडी संन्यासी कौन होते हैं, वे दंड क्यों रखते हैं और इसे क्यों अपनी जान से भी ज्यादा महत्वपूर्ण मानते हैं.
दंडी स्वामी का क्या अर्थ है?
दंडी शब्द का अर्थ है एक संन्यासी जो अपने साथ दंड लेकर चलता है, यह उसे एक विशेष यात्रा या तपस्या का प्रतीक बनाता है. दंडी स्वामी वह होते हैं जो धार्मिक जीवन जीने में निपुण होते हैं और शंकराचार्य की परंपरा के अनुसार उन्हें यह दंड दीक्षा के बाद मिलता है. शंकराचार्य की परंपरा में दंडी स्वामी ही चुने जाते हैं.
दंडी स्वामी बनने के लिए संन्यासियों को कठोर नियमों का पालन करना पड़ता है. नियमों का पालन करते हुए 12 वर्ष के तप के बाद वे दंड छोड़कर परमहंस के रूप में प्रतिष्ठित होते हैं. धर्मशास्त्रों में दंडियों के लक्षण और तपस्या के नियमों का वर्णन किया गया है. दंडी बनने के लिए एक संन्यासी को ब्राह्मण होना चाहिए और उसे माता-पिता और पत्नी का त्याग करना होता है.
संन्यास का उद्देश्य मोक्ष है. इसके लिए सांसारिक बंधनों से मुक्ति आवश्यक होती है. 12 वर्षों के बाद, दंडी संन्यासी अपनी तपस्या से मुक्त होकर परमहंस बन जाते हैं. शंकराचार्य द्वारा स्थापित मठों के जरिए दंडी संन्यासियों की परंपरा लगातार चली आ रही है.
दंडी स्वामी का दर्शन विशेष रूप से महत्वपूर्ण
महाकुंभ में दंडी स्वामी का दर्शन विशेष रूप से महत्वपूर्ण होता है, क्योंकि शास्त्रों के अनुसार दंड भगवान विष्णु का प्रतीक होता है. इसे 'ब्रह्म दंड' भी कहा जाता है. दंडी स्वामी का मानना है कि वे भगवान के अवतार होते हैं और किसी से भी भिक्षा नहीं मांगते, बल्कि केवल निमंत्रण पर भोजन करते हैं. महाकुंभ में इनकी सेवा किए बिना आयोजन अधूरा माना जाता है. दंडी स्वामी को जब दंड मिलता है, तो उसे विशेष रूप से अभिषेक और तर्पण किया जाता है.
दंड विभिन्न प्रकार के होते हैं, जैसे 6, 8, 10 और 12 गांठ वाले, जो संबंधित मंत्रों का प्रतीक होते हैं. दंडी स्वामी इसे हमेशा ढंककर रखते हैं, ताकि इसकी शुद्धता बनी रहे. दंडी स्वामी एक दिन में केवल एक बार भोजन करते हैं और सूर्यास्त से पहले ही इसे समाप्त कर लेते हैं. उनके निधन के बाद उन्हें जलाया नहीं जाता, बल्कि उन्हें समाधि दी जाती है, क्योंकि वे मोक्ष की स्थिति में होते हैं.


