Eid al-Adha 2025: 7 या 8 जून, कब है बकरीद? चांद देख तय होगी ईद की तारीख
Eid al-Adha 2025: इस्लाम धर्म का प्रमुख पर्व ईद-उल-अजहा या बकरीद जून 2025 में मनाया जाएगा. यह त्योहार कुरबानी और भक्ति का प्रतीक है. बकरीद की सटीक तारीख चांद दिखने पर तय होती है और इस बार यह 7 या 8 जून को मनाई जा सकती है.

Eid al-Adha 2025: इस्लाम धर्म के दो सबसे बड़े त्योहारों में से एक ईद-उल-अजहा या बकरीद 2025 में जून महीने में मनाई जाएगी. यह पर्व कुरबानी और आस्था का प्रतीक माना जाता है. बकरीद का दिन इस्लामी कैलेंडर के अनुसार 10 जिल-हिज्जा को मनाया जाता है, जो हिजरी कैलेंडर का अंतिम महीना होता है.
इस साल बकरीद की तारीख 7 या 8 जून को पड़ सकती है, लेकिन अंतिम पुष्टि चांद दिखने के बाद ही की जाएगी. इस्लामिक परंपरा के अनुसार, सभी त्योहार चांद देखने पर निर्भर होते हैं, इसलिए बकरीद की सटीक तारीख भी चांद नजर आने के बाद ही घोषित की जाएगी. हालांकि, इस बार 7 जून को बकरीद मनाए जाने की संभावना ज्यादा जताई जा रही है.
कब है बकरीद 2025?
बकरीद हर साल इस्लामी महीने जिल-हिज्जा की 10वीं तारीख को मनाई जाती है. 2025 में यह दिन 7 या 8 जून को पड़ सकता है. चांद दिखने पर ही इस पर्व की सटीक तारीख तय की जाएगी. इस महीने में हज यात्रा भी संपन्न होती है, और बकरीद उसी के समापन का प्रतीक होती है.
क्यों मनाई जाती है बकरीद?
बकरीद को ईद-उल-अजहा भी कहा जाता है, जिसका अर्थ होता है 'कुर्बानी की ईद'. यह त्योहार हजरत इब्राहीम (अलैहि सलाम) की उस परीक्षा की याद में मनाया जाता है, जिसमें उन्होंने अल्लाह के हुक्म पर अपने सबसे प्रिय पुत्र हजरत इस्माईल (अलैहि सलाम) की कुर्बानी देने का निर्णय लिया.
जैसे ही हजरत इब्राहीम ने अपने बेटे की कुर्बानी देने के लिए कदम बढ़ाया, अल्लाह ने इस्माईल की जगह एक बकरे को भेज दिया. यह घटना अल्लाह की रहमत और इब्राहीम की वफादारी की मिसाल मानी जाती है. तभी से इस दिन कुर्बानी देने की परंपरा शुरू हुई, जिसे आज तक मुसलमान निभाते आ रहे हैं.
क्या है कुर्बानी का महत्व?
बकरीद पर कुर्बानी देना एक महत्वपूर्ण धार्मिक कर्तव्य माना जाता है. इस दिन लोग बकरा, भेड़, ऊंट या गाय जैसे हलाल जानवरों की कुर्बानी देते हैं. यह केवल एक धार्मिक रस्म नहीं, बल्कि अल्लाह के प्रति समर्पण और भक्ति का प्रतीक भी है. माना जाता है कि कुर्बानी देने से आत्मिक शुद्धि और पुण्य की प्राप्ति होती है.
कुर्बानी का मांस कैसे बांटा जाता है?
बकरीद पर कुर्बानी किए गए जानवर का मांस तीन भागों में बांटा जाता है:
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पहला हिस्सा गरीबों और जरूरतमंदों को दिया जाता है.
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दूसरा हिस्सा रिश्तेदारों और मित्रों में बांटा जाता है.
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तीसरा हिस्सा अपने परिवार के लिए रखा जाता है.
यह व्यवस्था समाज में समानता, सहयोग और भाईचारे की भावना को बढ़ावा देती है. इस दिन का मूल संदेश है कि कोई भूखा न रहे और हर व्यक्ति खुशियों में शामिल हो.
सामाजिक और आध्यात्मिक महत्व
बकरीद केवल एक धार्मिक त्योहार नहीं है, यह आत्मसमर्पण, निस्वार्थ सेवा और इंसानियत की भावना को भी उजागर करता है. इस अवसर पर मुसलमान मस्जिदों में विशेष नमाज़ अदा करते हैं और एक-दूसरे को बकरीद की मुबारकबाद देते हैं. यह पर्व समाज को जोड़ने और आपसी सौहार्द बढ़ाने का भी काम करता है.
Disclaimer: ये आर्टिकल धार्मिक मान्यताओं और सामान्य जानकारी पर आधारित है, JBT इसकी पुष्टि नहीं करता है.


