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भगवान जगन्नाथ का कसाई भक्त के प्रति अद्वितीय प्रेम, जानें कैसे बदला उसका जीवन

भगवान और उनके भक्तों के बीच प्रेम और भक्ति की कई अनगिनत कहानियां हैं, जिनमें से एक दिलचस्प और प्रेरणादायक कहानी भगवान जगन्नाथ और उनके एक कसाई भक्त की है. यह कहानी हमें सिखाती है कि भगवान का प्रेम निस्वार्थ और निष्कलंक होता है, और उनके भक्तों के प्रति उनका सच्चा प्रेम हमेशा अडिग रहता है.

Deeksha Parmar
Edited By: Deeksha Parmar

भक्ति की दुनिया में भगवान और उनके भक्तों के बीच प्रेम और स्नेह की अनगिनत कहानियां हैं. इनमें से एक दिलचस्प और अद्भुत कहानी भगवान जगन्नाथ और उनके एक कसाई भक्त की है. यह कहानी हमें यह सिखाती है कि भगवान के प्रेम और भक्ति का कोई सीमा नहीं होती, और उनके भक्तों के प्रति उनका सच्चा प्रेम हमेशा निस्वार्थ और निष्कलंक होता है. यह कहानी एक कसाई के जीवन को बदलने की है, जिसने भगवान के प्रति अपनी निष्ठा से एक नई दिशा पाई.

कहानी का आरंभ एक कसाई से होता है, जो अपने जीवन में शुद्धता और पूजा का महत्व नहीं जानता था. एक दिन वह गलती से भगवान शालिग्राम के रूप में भगवान विष्णु को अपने मांस तौलने की दुकान में ले आया. लेकिन जैसे ही भगवान ने उसे देखा, उन्होंने अपनी अनूठी शक्ति से उसे एक नया रास्ता दिखाया. आइए जानते हैं इस अद्भुत घटना की पूरी कहानी.

शालिग्राम का मांस तौलने का अनोखा वाकया

कसाई सदन का जीवन सिर्फ मांस बेचने और तौलने तक सीमित था. एक दिन, जब वह दुकान पर मांस तौल रहा था, उसे एक गोल पत्थर मिला. उसे यह पत्थर भार तौलने के काम आ सकता था, इस सोच के साथ उसने उसे अपनी दुकान पर रख लिया. लेकिन उसे यह नहीं पता था कि वह पत्थर असल में भगवान शालिग्राम हैं, जो भगवान विष्णु का रूप हैं. सदन ने उसी पत्थर से मांस तौलना शुरू कर दिया, और इसके साथ ही उसकी आंखों से अश्रुपूरित आंसू बहने लगे.

साधु की नजरें और प्रभु का संदेश

एक दिन एक साधु महात्मा कसाई की दुकान से गुजर रहे थे और उन्होंने देखा कि सदन शालिग्राम से मांस तौल रहा था. साधु महात्मा ने उसे डांटा और कहा, "तुम क्या कर रहे हो, यह बहुत बड़ा पाप है, तुम नहीं जानते कि यह शालिग्राम है, भगवान विष्णु का रूप है." सदन ने चौंकते हुए कहा, "महाराज, मुझे इसके बारे में कुछ भी नहीं पता था, यह मेरी गलती है."

महात्मा ने शालिग्राम को लिया और उसे शुद्ध नदियों के जल से स्नान कराया, पंचामृत से स्नान कराया, चंदन और इत्र लगाया, और फिर उसे चांदी के सिंहासन पर बैठाया. ठाकुर जी के समक्ष भव्य कीर्तन किया और खीर का भोग अर्पित किया. भगवान के प्रति भक्ति और प्रेम में महात्मा की आंखों से आंसू बह रहे थे.

शालिग्राम वापस कसाई के पास जाए

रात्रि में भगवान शालिग्राम ने महात्मा को सपने में दर्शन दिए और कहा, सुनो, मुझे सदन कसाई के पास छोड़ आओ.महात्मा ने कहा, "प्रभु, वह मांस बेचता है, वह शुद्ध नहीं है, वह पवित्र नहीं है, वह महापापी है. आप वहां क्यों जाना चाहते हैं?

भगवान शालिग्राम ने उत्तर दिया, "हमें कहीं स्नान करने में सुख मिलता है, कहीं सिंहासन पर बैठने में सुख मिलता है, कहीं भोजन करने में सुख मिलता है, लेकिन सदन कसाई के यहां हमें लुड़कने में सुख मिलता है. जब वह मांस तौलता है, तो हम इधर-उधर लुड़कते हैं और उसमें हमें बहुत आनंद आता है."

कसाई सदन का जीवन बदल गया

अगली सुबह महात्मा ने शालिग्राम को लेकर सदन के पास वापस जाने का निर्णय लिया. जब वह सदन के पास पहुंचे, तो कसाई ने हैरान होकर पूछा, "आपने इसे वापस क्यों लाया? यहाँ तो मैं मांस बेचता हूं, यह तो बहुत गंदा स्थान है." महात्मा ने उत्तर दिया, "प्रभु ने कहा कि इन्हें तुम्हारे पास ही रहना है, यही उनका आदेश है." यह सुनकर सदन के हाथ-पांव कांपने लगे, और उसकी आंखों से आंसू बहने लगे. अब उसने निश्चय किया कि वह अपना कारोबार छोड़कर भगवान के चरणों में अपना जीवन समर्पित करेगा.

सदन कसाई की यात्रा

कसाई ने अपनी दुकान बेच दी और अपने जीवन को भगवान के लिए समर्पित करने का संकल्प लिया. उसने ठान लिया कि वह भगवान जगन्नाथ से मिलने के लिए पुरी जाएगा. लोग उसे रास्ता बताते गए और वह एक नयी दिशा की ओर चल पड़ा, अपने प्रभु के साथ मिलने के लिए.

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04 June 2025, 02:37 PM IST

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