देशभर में धूमधाम से होली का उत्सव, जानें रंगों वाली होली की शुरुआत कैसे हुई
Happy Holi 2025: रंगों का पर्व होली भारत में बहुत धूमधाम से मनाया जाता है. रंगों वाली होली विशेष रूप से फाल्गुन मास की पूर्णिमा को खेली जाती है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि इसकी शुरुआत कैसे हुई थी?

Happy Holi 2025: आज देशभर में हिंदुओं का प्रमुख त्योहार होली मनाया जाएगा. होली रंगों का त्योहार है, जो बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माना जाता है. होली की शुरुआत बसंत ऋतु के आगमन के साथ होती है और यह सिर्फ एक त्योहार ही नहीं, बल्कि सामाजिक मेलजोल और प्रेम का प्रतीक भी है. इस दिन लोग आपसी भेदभाव को भूलकर एक-दूसरे को रंग लगाते हैं और गले मिलते हैं. कल पूरे देश में होली बड़े उत्साह के साथ मनाई जाएगी, और लोग अबीर-गुलाल उड़ाकर इस रंगीन त्योहार का आनंद लेंगे.
रंगों से खेली जाने वाली होली की परंपरा का संबंध भगवान कृष्ण से जुड़ा है. कहा जाता है कि भगवान कृष्ण को अपने गहरे रंग के कारण यह डर था कि राधा और गोपियां उनसे प्रेम करेंगी या नहीं. तब माता यशोदा ने कृष्ण को सलाह दी कि वे राधा और उनकी सखियों पर रंग डाल सकते हैं. यही परंपरा आगे चलकर रंगों वाली होली के रूप में प्रचलित हो गई. आज भी वृंदावन, मथुरा, बरसाना और नंदगांव में इस परंपरा को हर्षोल्लास से मनाया जाता है.
होली कैसे मनाई जाती है?
होली का त्योहार दो दिनों तक मनाया जाता है. पहले दिन होलिका दहन होता है, जिसमें लोग लकड़ियों और उपलों का ढेर जलाते हैं. होलिका दहन बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है. दूसरे दिन रंगों की होली खेली जाती है, जिसमें लोग एक-दूसरे को रंग और गुलाल लगाते हैं. होली के दिन लोग एक-दूसरे के घर जाकर मिठाइयां बांटते हैं. यह त्योहार एकता और भाईचारे का प्रतीक है और हमें सिखाता है कि हमें हमेशा बुराई पर अच्छाई की जीत का समर्थन करना चाहिए.
होली की पौराणिक कथा
होली से जुड़ी सबसे प्रसिद्ध कथा भक्त प्रह्लाद और हिरण्यकश्यप की है. हिरण्यकश्यप एक अहंकारी राजा था, जो चाहता था कि सभी लोग उसकी पूजा करें. लेकिन उसका पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु का भक्त था. हिरण्यकश्यप ने उसे मारने की कई योजनाएं बनाई, लेकिन हर बार प्रहलाद बच गया. अंत में हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका को प्रह्लाद को मारने के लिए भेजा, क्योंकि होलिका के पास एक ऐसा वस्त्र था जिससे वह आग में नहीं जल सकती थी. लेकिन भगवान विष्णु की कृपा से होलिका जलकर राख हो गई और प्रहलाद सुरक्षित बच गए. इस घटना की याद में होली का पर्व मनाया जाता है और रंगों वाली होली से पहले होलिका दहन किया जाता है.
रंगों वाली होली का महत्व
होली भारत के प्रमुख और खुशियों से भरे त्योहारों में से एक है, जिसे रंगों का त्योहार भी कहा जाता है. यह सिर्फ धार्मिक और पौराणिक दृष्टि से ही महत्वपूर्ण नहीं है, बल्कि सामाजिक, सांस्कृतिक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी इसका महत्व है. होली मुख्य रूप से बुराई पर अच्छाई की विजय, प्रेम, मेलजोल और उत्सव का प्रतीक है. इस दिन लोग रंगों से खेलकर न केवल खुशियां बांटते हैं, बल्कि आपसी बैर और भेदभाव भी भुला देते हैं.
होली का सबसे सुंदर पहलू यह है कि इसमें जाति, धर्म, वर्ग और सामाजिक स्थिति का कोई भेदभाव नहीं होता. हर कोई एक-दूसरे को रंग लगाता है और “बुरा न मानो, होली है” कहते हुए त्योहार मनाता है. होली से जाति, धर्म, वर्ग और अमीरी-गरीबी की दीवारें टूट जाती हैं और हर कोई समान रूप से इस त्योहार का आनंद लेता है. इसलिए होली सामाजिक बंधनों को मजबूत करने का पर्व भी माना जाता है.