शब-ए-बारात पर हलवा बनाने की रिवायत, जानिए क्यों है खास
शब-ए-बारात के दिन अधिकतर मुस्लिमों के घर हलवा बनाया जाता है. इस दिन वह हजरत ओवैस करनी को याद करते हैं और उस हलवे पर फातिहा और नजर कराते हैं. हजरत ओवैस करनी यमन में पैदा हुए थे. वे अपनी मां और पैगंबरे इस्लाम हजरत मोहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से बेपनाह मोहब्बत किया करते थे.

अकीदा और अकीदत का गहरा संबंध इंसान के धर्म और महापुरुषों से है. इसका एक उदाहरण शब-ए-बारात पर बनने वाला हलवा है. इस दिन अधिकतर मुस्लिम घरों में हलवा बनाते हैं, उस पर फातिहा पढ़ी जाती है और एक-दूसरे को खिलाया जाता है. यूपी के मारहरा शरीफ के जामिया अहसनुल बरकात के प्रिंसिपल मौलाना इरफान अजहरी का कहना है कि हलवे पर फातिहा पढ़ना, यह अपने बुजुर्गों को याद करने का एक अकीदा है.
उन्होंने बताया कि यह रिवायत यमन के मशहूर बुजुर्ग हजरत ओवैस करनी से जुड़ी हुई है. शब-ए-बारात अल्लाह के इबादत की खास रात है, जब अल्लाह अपने बंदों की माफी और उनके जीवन का हिसाब-किताब करते हैं. इस रात मुसलमान अल्लाह की इबादत करते हैं और कब्रिस्तान जाकर अपने पूर्वजों की कब्रों पर जाकर उनकी मगफिरत की दुआ करते हैं. इसी दिन हलवा बनाने की भी रिवायत चली आ रही है.
हलवा बनाने की वजह
एक रिवायत के अनुसार, जंगे उहुद के दौरान पैगंबर हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के दांत चोटिल हो गए थे. जब हजरत ओवैस करनी को यह खबर मिली, तो उन्होंने अपने सभी दांत तोड़ दिए. यह घटना शब-ए-बारात की रात को हुई थी, और तभी से हलवा बनाकर फातिहा पढ़ने की रिवायत है. हालांकि, मौलाना इरफान अजहरी कहते हैं कि इस बारे में कोई ठोस प्रमाण नहीं मिलता.
हजरत ओवैस करनी का अकीदा
मौलाना इरफान अजहरी बताते हैं कि शब-ए-बारात पर हलवा बनाकर और उस पर फातिहा लगाकर हम अपने बुजुर्गों के साथ-साथ हजरत ओवैस करनी के अकीदे को भी याद करते हैं. हजरत ओवैस करनी ने पैगंबर मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से बेहद मोहब्बत की थी. पैगंबर ने उन्हें "खैर-उल-तबीईन" का खिताब दिया था. मौलाना इरफान कहते हैं कि हजरत ओवैस करनी अपनी मां से बहुत प्यार करते थे और उनकी सेवा में लगे रहते थे.


