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इस दाल को माना जाता है नॉनवेज, वजह जान रह जाएंगे हैरान

Masoor Dal: शाकाहारी भोजन का जिक्र आते ही दाल, चावल, सब्जी और रोटी का ख्याल आता है. लेकिन क्या हो अगर किसी दाल को मांसाहार के समान माना जाए? हिंदू धर्म में इस दाल को तामसिक भोजन की श्रेणी में रखा गया है और कई साधु-संत इसे पूरी तरह त्याग देते हैं. धार्मिक मान्यताओं, पौराणिक कथाओं और आहार विज्ञान के आधार पर इसे शाकाहार और मांसाहार के बीच की एक रहस्यमयी कड़ी माना जाता है.

Shivani Mishra
Edited By: Shivani Mishra

Masoor Dal: आमतौर पर शाकाहारी भोजन का अर्थ दाल, चावल, सब्जी और चपाती से लगाया जाता है. लेकिन क्या हो जब किसी दाल को ही मांसाहार के समान माना जाए? सुनने में यह अजीब लग सकता है, लेकिन हिंदू धर्म में लाल मसूर की दाल को तामसिक भोजन की श्रेणी में रखा गया है. साधु-संत और वैष्णव परंपरा को मानने वाले इसे पूरी तरह त्याग देते हैं.

ऐसा क्यों है कि एक आम दाल को तामसिक और मांसाहार के समान माना जाता है? इसके पीछे धार्मिक मान्यताएं, पौराणिक कथाएं और आहार विज्ञान से जुड़े कुछ कारण बताए जाते हैं. आइए विस्तार से जानते हैं कि क्यों लाल मसूर की दाल को लेकर ऐसी मान्यताएं प्रचलित हैं.

तामसिक भोजन क्यों है लाल मसूर दाल?

हिंदू धर्म में तामसिक भोजन वे होते हैं जो शरीर और मन पर नकारात्मक प्रभाव डालते हैं. इनमें लहसुन, प्याज और अधिक मिर्च-मसाले वाले खाद्य पदार्थ शामिल होते हैं. लाल मसूर की दाल को भी इसी श्रेणी में रखा गया है क्योंकि ऐसा माना जाता है कि यह सुस्ती, क्रोध और नकारात्मक ऊर्जा को बढ़ावा देती है. यही कारण है कि इसे मांसाहारी भोजन के समकक्ष देखा जाता है.

कामधेनु गाय और लाल मसूर की दाल का संबंध

एक प्रचलित मान्यता के अनुसार, लाल मसूर की दाल का संबंध दिव्य गाय कामधेनु के रक्त से जोड़ा जाता है. पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब राजा सहस्त्रबाहु अर्जुन ने ऋषि जमदग्नि के आश्रम से कामधेनु को बलपूर्वक लेने का प्रयास किया, तो संघर्ष के दौरान कामधेनु पर बाणों से हमला हुआ. जहां-जहां उसका रक्त गिरा, वहां लाल मसूर का पौधा उग आया. इसीलिए ब्राह्मण और वैष्णव परंपरा के अनुयायी इसे मांसाहार के समान मानते हैं और इसका सेवन नहीं करते.

स्वरभानु और लाल मसूर की उत्पत्ति

एक अन्य कथा के अनुसार, जब भगवान विष्णु ने स्वरभानु नामक असुर का सिर काटा, तो उसका शरीर दो भागों में विभाजित हो गया—सिर राहु और धड़ केतु बन गया. ऐसी मान्यता है कि कटे हुए मस्तक से जो रक्त बहा, उसी से लाल मसूर की उत्पत्ति हुई. इसीलिए इसे अशुभ और तामसिक भोजन की श्रेणी में रखा गया.

हाई प्रोटीन होने के कारण मांसाहार के समान?

लाल मसूर की दाल को उच्च प्रोटीन युक्त माना जाता है. पोषण विशेषज्ञ बताते हैं कि इसकी प्रोटीन सामग्री मांस के समान होती है, जिससे यह शरीर की ऊर्जा और गर्मी को बढ़ाती है. इसके सेवन से मानसिक उत्तेजना और क्रोध में वृद्धि हो सकती है. साधु-संत, जो संयम और साधना में लीन रहते हैं, इसीलिए इसे नहीं खाते.

तंत्र-मंत्र और लाल मसूर की दाल

हिंदू धर्म में कई तंत्र-मंत्र अनुष्ठानों में लाल मसूर की दाल का उपयोग किया जाता है. विशेष रूप से, देवी काली को प्रसन्न करने के लिए इसे पूजा में चढ़ाया जाता है. यही कारण है कि इसे गूढ़ और रहस्यमयी ऊर्जा से भी जोड़ा जाता है.

क्या आज भी लोग इसे मांसाहार मानते हैं?

आधुनिक समय में अधिकांश लोग लाल मसूर की दाल को सिर्फ एक पौष्टिक भोजन मानते हैं, लेकिन धार्मिक और पारंपरिक मान्यताओं का प्रभाव आज भी कई जगहों पर देखा जाता है. विशेष रूप से, जो लोग वैष्णव परंपरा का पालन करते हैं, वे इस दाल से परहेज करते हैं.

Disclaimer: ये स्टोरी धार्मिक मान्यताओं पर आधारित है, JBT इसकी पुष्टि नहीं करता.

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02 February 2025, 02:07 PM IST

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