10 बार, नीतीश कुमार...बिहार में उड़ा महागठबंधन, रुझानों में NDA बहुमत से कहीं ज्यादा आगे
बिहार विधानसभा चुनाव के शुरुआती रुझानों में एनडीए भारी बहुमत की ओर बढ़ता दिखा, जबकि महागठबंधन लगभग टूटता नजर आया. भाजपा जेडी(यू) से आगे निकलकर गठबंधन में बड़ी ताकत बनती दिखी. राजद और कांग्रेस दोनों कमजोर प्रदर्शन में फंसे रहे.

बिहार : शुक्रवार को आए शुरुआती चुनावी रुझानों ने साफ कर दिया कि बिहार में सत्ता का पलड़ा एक बार फिर एनडीए के पक्ष में झुकता दिख रहा है. 243 सीटों वाली विधानसभा में गठबंधन दो-तिहाई बहुमत की ओर बढ़ रहा था और उसका “160 पार” का लक्ष्य काफ़ी आगे निकलता दिखा. जैसे ही सुबह आठ बजे मतगणना शुरू हुई, डाक मतपत्रों ने नीतीश कुमार के नेतृत्व वाले एनडीए को तेज़ शुरुआत दिलाई. कुछ ही घंटे में भाजपा और जेडी(यू) के बीच “बड़े भाई” की बहस भी छिड़ गई, क्योंकि भाजपा सीटों में अपने सहयोगी दल से आगे निकलती नजर आई.
महागठबंधन की निराशाजनक स्थिति
जन सुराज और अन्य छोटे दलों का फीका प्रदर्शन
प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी, जिसे चुनाव से पहले संभावित एक्स-फैक्टर माना जा रहा था, अपने पहले ही चुनाव में लगभग ग़ायब-सी हो गई. इसके मुक़ाबले असदुद्दीन ओवैसी की एआईएमआईएम सीमांचल क्षेत्रों में बेहतर प्रदर्शन करती दिखाई दी और कई सीटों पर बढ़त बनाए रखी.
NDA के भीतर भाजपा- JD(यू) का बदलता समीकरण
चुनावी रुझान इस ओर इशारा कर रहे थे कि इस बार एनडीए में भाजपा का कद और बड़ा हो सकता है. भाजपा 90 से अधिक सीटों पर बढ़त के साथ शीर्ष पर थी, जबकि नीतीश कुमार की जेडी(यू) उससे कुछ पीछे रहीं. जूनियर सहयोगियों में चिराग पासवान की एलजेपी (आरवी) और जीतन राम मांझी की एचएएम भी अच्छी स्थिति में दिखीं, जबकि उपेंद्र कुशवाहा की आरएलएम सीमित सीटों पर चुनाव लड़ने के बावजूद कुछ स्थानों पर अच्छा प्रदर्शन कर रही थी.
राजद के दिग्गजों के लिए भी कठिन परीक्षा
महागठबंधन की खराब स्थिति के बीच राजद के शीर्ष नेताओं के लिए भी परिस्थितियाँ चुनौतीपूर्ण होती दिखीं. तेज प्रताप यादव अपनी नई पार्टी के साथ महुआ सीट पर पिछड़ते नज़र आए, जबकि राघोपुर जैसे पारंपरिक गढ़ में तेजस्वी यादव भी उतार-चढ़ाव वाले मुकाबले में संघर्ष करते दिखाई दिए.
नीतीश कुमार की ऐतिहासिक वापसी की ओर संकेत
जेडी(यू) के शुरुआती बढ़त वाले रुझानों और एनडीए के बढ़ते ग्राफ को देखते हुए यह स्पष्ट हो रहा था कि नीतीश कुमार दसवीं बार मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने की स्थिति में पहुँच सकते हैं. हालांकि भाजपा के फिर से जेडी(यू) से अधिक सीटें हासिल करने के संकेत ने आगे coalition dynamics को और दिलचस्प बना दिया.
“सुशासन” और “मोदी फैक्टर” का मिला जुला असर
एनडीए की मज़बूत स्थिति को दो प्रमुख कारणों से जोड़कर देखा गया नीतीश कुमार की सामाजिक कल्याण आधारित राजनीति और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का आक्रामक प्रचार अभियान. महिलाओं की बड़ी संख्या में भागीदारी और कई योजनाओं का सीधा असर एनडीए के वोट बैंक में साफ़ नज़र आया, जबकि चुनावी रैलियों में भाजपा द्वारा उठाए गए मुद्दों ने भी माहौल को उनके पक्ष में मोड़ा.
सीमांचल में AIMIM के बावजूद NDA की पैठ
मुस्लिम बहुल सीमांचल क्षेत्र में भी एनडीए को अपेक्षा से बेहतर प्रतिक्रिया मिलती दिखाई दी. भाजपा ने जिन मुद्दों को चुनावी मंचों पर प्रमुखता दी, वे यहाँ के मतदाताओं के बीच चर्चा का विषय रहे और रुझानों से संकेत मिला कि पार्टी को इन इलाकों में भी लाभ मिला.
रिकॉर्ड मतदान और महिलाओं की भूमिका
इस चुनाव की एक बड़ी खासियत यह रही कि 1951 के बाद सबसे अधिक 66.91 प्रतिशत मतदान दर्ज हुआ. पुरुषों की तुलना में अधिक संख्या में महिलाओं का वोट डालने पहुँचना निर्णायक साबित हुआ. दोनों चरणों में 69 और 74 प्रतिशत की भारी वोटिंग ने सत्ता का रुख एनडीए की ओर मोड़ने में अहम भूमिका निभाई.
एग्जिट पोल का अनुमान करीब सही साबित
चुनाव से पहले आए एक्सिस माई इंडिया के सर्वेक्षणों में एनडीए को 121 से 141 सीटों के बीच और महागठबंधन को 98 से 118 सीटों के बीच रहने का अनुमान लगाया गया था. रुझानों ने इस अनुमान को काफ़ी हद तक सटीक ठहराते हुए एनडीए को स्पष्ट बढ़त मिलती दिखाई.


