बिहार चुनाव 2025: बाहुबली बिहार में क्यों हुए बेदम? न टिकट, न ताकत!
बिहार की सियासत में कभी बाहुबली नेताओं का दबदबा रहा है. जिनमें आनंद मोहन, अनंत सिंह, शहाबुद्दीन, राजबल्लभ यादव, प्रभानाथ सिंह, रामा सिंह, मुन्ना शुक्ला, सुनील पांडेय और पप्पू यादव जैसे नाम शामिल हैं. इन नेताओं ने न केवल राजनीति की दिशा तय की, बल्कि अपनी ताकत और प्रभाव से बिहार की राजनीति को एक नई पहचान दी. लेकिन इस बार के चुनावी माहौल में इन बाहुबली नेताओं का नाम कहीं नजर नहीं आ रहा है ऐसा क्यों हो रहा है, ये सवाल अब बिहार की सियासत में चर्चा का विषय बन गया है.

Bihar Elections 2025: बिहार की राजनीति में बाहुबली नेताओं का दबदबा हमेशा से एक महत्वपूर्ण चर्चा का विषय रहा है. ये नेता अपने ताकतवर कनेक्शनों, आपराधिक छवि और सियासी खेल के जरिए अपनी जगह बनाते थे. नब्बे के दशक से लेकर 2010 तक, बिहार में बाहुबलियों का समय रहा था, लेकिन अब वह सियासी प्रभाव तेजी से कमजोर हो रहा है. एक दौर था जब बाहुबलियों की ताकत से बिहार की राजनीति की दिशा तय होती थी, लेकिन अब वह अपनी सियासी विरासत को बचाने में संघर्ष कर रहे हैं.
हालांकि, बदलाव के इस दौर में बिहार की सियासत में कई बदलाव देखने को मिल रहे हैं, लेकिन बाहुबली नेताओं की सियासत की तस्वीर अब काफी बदल चुकी है. उनका राजनीतिक असर अब पहले जैसा नहीं दिखता. कानूनी शिकंजे और जेल की सजा ने उन्हें कमजोर किया है और उनके परिवारों के लिए राजनीति अब आसान नहीं रही.
आनंद मोहन का गिरता सियासी असर
बिहार के पूर्व सांसद और बाहुबली नेता आनंद मोहन का एक समय पूरी राजनीति पर गहरा प्रभाव था. उनका वर्चस्व विशेष रूप से तिरहुत डिवीजन में रहा, जहां राजपूत समुदाय में उनकी पकड़ मजबूत थी. लेकिन अब, आनंद मोहन की सियासी विरासत फीकी पड़ चुकी है. उनकी पत्नी, लवली आनंद जेडीयू से सांसद हैं, लेकिन उनके बेटे चेतन आनंद का राजनीतिक भविष्य अब असमंजस में है. जेडीयू से टिकट मिलने की कोई उम्मीद नहीं दिखाई दे रही है, और उनके पुराने प्रभाव को भी अब कोई सहारा नहीं मिल पा रहा है.
अनंत सिंह की पत्नी की राजनीति में चुनौती
बिहार के मोकामा क्षेत्र के बाहुबली नेता अनंत सिंह का भी राजनीतिक दबदबा समय के साथ घटता गया है. अनंत सिंह के जेल जाने के बाद, उनकी पत्नी नीलम देवी ने उनकी राजनीतिक विरासत को संभाला. हालांकि, 2024 के चुनावों से ठीक पहले नीलम देवी का राजनीतिक पैंतरा बदल गया है और अब वह जेडीयू के खेमे में नजर आ रही हैं. लेकिन सवाल यह है कि क्या नीतीश कुमार उन्हें चुनावी मैदान में उतारेंगे? इसका उत्तर अभी तक स्पष्ट नहीं है.
शहाबुद्दीन की विरासत
बिहार के पूर्व बाहुबली नेता शहाबुद्दीन का भी राजनीति में प्रभाव अब खत्म हो चुका है. शहाबुद्दीन की पत्नी हिना शहाब ने आरजेडी से चुनाव लड़ा, लेकिन जीत नहीं मिली. उनका राजनीतिक असर अब पूरी तरह से सिवान में कमजोर हो चुका है. हिना शहाब और उनके बेटे ओसामा शहाब ने आरजेडी जॉइन किया, लेकिन 2025 के विधानसभा चुनावों में उनका टिकट कन्फर्म होना फिलहाल मुश्किल नजर आ रहा है.
सुरजभान सिंह और उनका सिकुड़ता प्रभाव
सुरजभान सिंह का भी बिहार की राजनीति में बड़ा नाम था. मोकामा से विधायक रहे सुरजभान सिंह पर हत्या का आरोप था, जिसके कारण वह खुद चुनाव नहीं लड़ सकते. उनकी पत्नी वीणा देवी अब मोकामा सीट से चुनाव लड़ने की संभावना जता रही हैं, लेकिन उनकी सियासी राह अब पहले जैसी आसान नहीं रही है.
बिहार में बाहुबलियों का भविष्य
बिहार में बाहुबली नेताओं की सियासत का भविष्य अब काफी कठिन हो चुका है. राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि बाहुबलियों का प्रभाव अब पूरी तरह से समाप्त हो चुका है. उनके लिए राजनीति में वंशवाद को बढ़ावा देना अब उतना प्रभावी नहीं रहा है. अब राजनीतिक दल भी उनके परिवारों को टिकट देने में हिचकिचा रहे हैं. बाहुबलियों का नेटवर्क टूट चुका है और उनकी सियासी ताकत भी अब कमजोर हो गई है.


