बदलते बिहार में बदलेंगे नेता! क्या 2025 के चुनाव में लालू-नीतीश खेलेंगे आखिरी सियासी पारी?
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 से पहले सियासत में सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या यह लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार की आखिरी सियासी पारी साबित होगी? दोनों नेता अब भी अपनी-अपनी पार्टियों और गठबंधनों के केंद्र में हैं. लेकिन उम्र, सेहत और बदलते राजनीतिक हालात इस चुनाव को उनके लिए निर्णायक बना सकते हैं.

Bihar election 2025: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या राज्य की राजनीति के दो दिग्गज चेहरे लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार अपनी आखिरी सियासी पारी खेलने जा रहे हैं? बढ़ती उम्र और सेहत की समस्याओं के बीच दोनों नेता अब भी अपनी-अपनी पार्टियों और गठबंधनों के सबसे मजबूत स्तंभ बने हुए हैं. जहां आरजेडी ने चुनाव से ठीक पहले लालू यादव को एक बार फिर से राष्ट्रीय अध्यक्ष की जिम्मेदारी सौंप दी है, वहीं जेडीयू "25 से 30, फिर से नीतीश" के नारे के साथ मैदान में उतर चुकी है.
लालू यादव और नीतीश कुमार दोनों ही जेपी आंदोलन की उपज रहे हैं और पिछले चार दशकों से बिहार की राजनीति के केंद्र में बने हुए हैं. लेकिन अब बदलते राजनीतिक समीकरणों, नई पीढ़ी के नेताओं के उभरने और स्वास्थ्य संबंधी चुनौतियों के बीच यह सवाल उठना लाजमी है कि क्या 2025 का चुनाव इन दोनों नेताओं की अंतिम राजनीतिक पारी साबित होगा.
जेपी आंदोलन से निकले दो दिग्गज
लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार की राजनीतिक यात्रा एक साथ शुरू हुई थी. 1974 के संपूर्ण क्रांति आंदोलन से सक्रिय राजनीति में कदम रखने वाले दोनों नेता बाद में मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचे. लालू यादव ने 1990 में पहली बार बिहार की सत्ता संभाली और पिछड़ों-दलितों को राजनीति में नई पहचान दी. वहीं नीतीश कुमार ने 2005 से अब तक राज्य की बागडोर कई बार संभालते हुए विकास की राजनीति पर जोर दिया.
"25 से 30 फिर से नीतीश" का नारा
जेडीयू का मानना है कि नीतीश कुमार की सियासत अभी खत्म नहीं हुई है. जेडीयू प्रवक्ता अरविंद निषाद का कहना है, "राजनीति एक चक्रीय व्यवस्था है, जिसे कोई रोक नहीं सकता लेकिन इसका अर्थ यह नहीं निकलता है कि नीतीश कुमार शासन-व्यवस्था से अलग हो रहे हैं. बिहार की जनता एक बार फिर से नीतीश कुमार पर भरोसा जताते हुए उनको ही मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठाएगी."
लालू सिर्फ नेता नहीं, विचारधारा हैं: आरजेडी
आरजेडी की ओर से भी यही संदेश दिया जा रहा है कि लालू यादव केवल एक व्यक्ति नहीं बल्कि एक विचारधारा हैं. पार्टी प्रवक्ता अरुण यादव कहते हैं, "लालू जी सिर्फ नेता नहीं है, वह तो एक विचारधारा, सोच, सिद्धांत एवं विज्ञान हैं, जो अजर एवं अमर रहेगा. उन्हीं के सोच एवं पदचिह्नों पर बिहार की राजनीति चल रही है. उसी को तो हमारे नेता तेजस्वी यादव अब आगे बढ़ा रहे हैं."
क्या कहते हैं विशेषज्ञ?
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि दोनों नेताओं ने तीन से अधिक दशकों तक बिहार की राजनीति पर अपना दबदबा बनाए रखा है, लेकिन अब समय बदल रहा है. बिहार की राजनीति में इन दोनों ने लंबी लकीर खींची है. अब इन दोनों को स्वत: राजनीति से अलग होना चाहिए और नई पीढ़ी के लोगों को राजनीति में आने का अवसर देना चाहिए. 2025 का चुनाव दलों के लिए ‘नया बिहार’ बनाने का एजेंडा होना चाहिए.
लालू यादव की राजनीतिक यात्रा
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जन्म: 11 जून 1948, गोपालगंज, बिहार
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1974: जेपी आंदोलन में सक्रिय भागीदारी
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1977: पहली बार लोकसभा सदस्य बने
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1990: पहली बार बिहार के मुख्यमंत्री बने
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1997: चारा घोटाले के बाद इस्तीफा, आरजेडी की स्थापना
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2004: रेल मंत्री बने और ‘गरीब रथ’ जैसी योजनाओं से चर्चा में आए
नीतीश कुमार की राजनीतिक यात्रा
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जन्म: 1 मार्च 1951, बख्तियारपुर, बिहार
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शिक्षा: बिहार इंजीनियरिंग कॉलेज (अब NIT पटना) से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग
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1974: जेपी आंदोलन से राजनीति में एंट्री
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1985: पहली बार विधायक चुने गए
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1989: पहली बार सांसद बने
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1990-2004: केंद्र में कई बार मंत्री पद संभाला
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2005 से अब तक: 9 बार मुख्यमंत्री पद की शपथ लेकर रिकॉर्ड बनाया
बिहार की राजनीति तीन दशकों से लालू और नीतीश के इर्द-गिर्द घूमती रही है. लेकिन 75 पार उम्र और गिरती सेहत को देखते हुए यह मुमकिन है कि 2025 का चुनाव दोनों दिग्गज नेताओं की आखिरी सियासी पारी साबित हो. आने वाले समय में बिहार की राजनीति की कमान नई पीढ़ी के नेताओं के हाथों में जाती दिख रही है.


