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दिल्ली में क्लाउड सीडिंग का ट्रायल फेल, नहीं हुई बारिश...IIT कानपुर ने बताया ट्रायल में क्या हुआ हासिल

दिल्ली में प्रदूषण से निपटने के लिए क्लाउड सीडिंग के प्रयास किए गए, लेकिन मौसम की स्थिति सही नहीं होने के कारण ये प्रयास प्रभावी नहीं रहे, केवल सीमित प्रदूषण कमी आई.

Utsav Singh
Edited By: Utsav Singh

नई दिल्ली : राजधानी दिल्ली में बढ़ते प्रदूषण से राहत पाने के लिए दिल्ली सरकार ने आर्टिफिशियल रेन, या क्लाउड सीडिंग, को एक अंतिम उपाय के रूप में अपनाने का विचार किया है. हालांकि, मौसम वैज्ञानिकों का कहना है कि इस समय इस तकनीक का उपयोग प्रभावी नहीं होगा.

क्या है क्लाउड सीडिंग?

क्लाउड सीडिंग एक ऐसी तकनीक है, जिसमें बादलों से बारिश कराई जाती है, जिनमें पहले से पर्याप्त नमी मौजूद हो. इस प्रक्रिया में विमान से रासायनिक पदार्थ जैसे सिल्वर आयोडाइड, सोडियम क्लोराइड, या कैल्शियम क्लोराइड छोड़े जाते हैं, ताकि जलवाष्प छोटे-छोटे पानी के कणों में बदलकर वर्षा का रूप ले सके. हालांकि, यह तकनीक साफ आसमान से बारिश नहीं कर सकती, और इसे उन्हीं बादलों पर लागू किया जा सकता है, जो पहले से वर्षा के लिए तैयार हो.

क्लाउड सीडिंग कब सफल होती है?
मौसम वैज्ञानिक डॉ. अक्षय देओरास के अनुसार, क्लाउड सीडिंग तब प्रभावी होती है जब वातावरण में पर्याप्त नमी हो और बादल ऊर्ध्वाधर रूप से विकसित हो रहे हों. इसे सबसे अधिक मानसून के बाद या पश्चिमी विक्षोभ के दौरान देखा जाता है, जब बादल स्वाभाविक रूप से बारिश के लिए विकसित होते हैं.

दिल्ली में क्लाउड सीडिंग का प्रयोग
हालांकि, वर्तमान में दिल्ली-एनसीआर के ऊपर पर्याप्त नमी नहीं है, और आसमान में जो बादल हैं, वे बारिश करने के लिए उपयुक्त नहीं हैं. IIT कानपुर की रिपोर्ट भी यही बताती है कि 27 अक्टूबर से 29 अक्टूबर के बीच क्लाउड सीडिंग के लिए परिस्थितियाँ पूरी तरह अनुकूल नहीं थीं. नमी का स्तर केवल 10-15% था, जो क्लाउड सीडिंग के लिए अपर्याप्त माना जाता है.

क्लाउड सीडिंग के बाद प्रदूषण में थोड़ी कमी
दिल्ली में क्लाउड सीडिंग के दो ऑपरेशन किए गए, जिसमें प्रदूषण स्तर में कुछ सुधार देखने को मिला. पहले ऑपरेशन के बाद PM2.5 में 6-10% और PM10 में 14-21% की कमी आई, जबकि दूसरे ऑपरेशन के बाद PM2.5 में 1-4% और PM10 में 14-15% की कमी दर्ज की गई. हालांकि, यह कमी ज्यादा महत्वपूर्ण नहीं थी, और इसे हवा में बढ़ी नमी के कारण कणों के बैठने (particulate settling) से जोड़कर देखा गया, न कि वास्तविक वर्षा से.

क्लाउड सीडिंग का असफल परिणाम
क्लाउड सीडिंग के बाद दिल्ली में केवल 0.1 mm की हल्की बूंदाबांदी रिकॉर्ड की गई, जो बारिश के लिहाज से बेहद कम थी. अधिकारियों ने दावा किया था कि कृत्रिम बारिश 15 मिनट से 4 घंटे के भीतर शुरू हो सकती है, लेकिन कई घंटों बाद भी आसमान में कोई बदलाव नहीं आया.

राजनीतिक प्रतिक्रियाएं और आलोचना
दिल्ली में क्लाउड सीडिंग के ट्रायल के असफल परिणाम के बाद, आप नेता सौरभ भारद्वाज ने इस पर सवाल उठाए. उन्होंने ट्वीट कर इसे एक 'फर्ज़ीवाड़ा' बताया और कहा कि सरकार ने केवल दिखावा किया है. उन्होंने इंद्र देवता का मजाक उड़ाते हुए कहा कि सरकार ने सोचा था कि बारिश होगी, लेकिन वह भी नहीं हुई.

भविष्य में क्लाउड सीडिंग का क्या होगा?
IIT कानपुर की रिपोर्ट ने कहा कि भविष्य में क्लाउड सीडिंग तभी की जानी चाहिए, जब वातावरण में नमी का स्तर 60% से अधिक हो और वर्षा वाले बादल पूरी तरह विकसित हो चुके हों. फिलहाल, वर्तमान स्थिति में इस तकनीक से प्रदूषण कम करने की उम्मीद बहुत कम है. दिल्ली सरकार द्वारा क्लाउड सीडिंग के ट्रायल के परिणाम अपेक्षाकृत निराशाजनक रहे हैं. मौसम वैज्ञानिकों की राय है कि इस तकनीक का इस्तेमाल तभी किया जाना चाहिए जब उपयुक्त मौसम परिस्थितियाँ हों, और फिलहाल, दिल्ली में इसे लागू करने का समय सही नहीं है.

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28 October 2025, 11:01 PM IST

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