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महागठबंधन में आंतरिक कलह: बिहार में हार के बाद कांग्रेस और आरजेडी के बीच तीखी नोकझोंक

बिहार में कांग्रेस-आरजेडी गठबंधन पर सवाल उठते दिख रहे हैं. कांग्रेस नेता शकील अहमद खान ने गठबंधन को नुकसानदेह बताया, जबकि आरजेडी ने पलटवार किया. इस सियासी खींचतान से बिहार में नए राजनीतिक समीकरणों की अटकलें तेज हो गई हैं.

Yaspal Singh
Edited By: Yaspal Singh

पटनाः बिहार की राजनीति में एक बार फिर गठबंधन को लेकर घमासान तेज हो गया है. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और कटिहार जिले के कड़वा से पूर्व विधायक शकील अहमद खान के बयान ने महागठबंधन के भीतर हलचल पैदा कर दी है. खान का कहना है कि राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के साथ गठबंधन ने कांग्रेस को कोई ठोस चुनावी फायदा नहीं दिया, बल्कि पार्टी को नुकसान ही उठाना पड़ा. उनके इस आकलन पर आरजेडी ने तीखी प्रतिक्रिया दी है.

कांग्रेस को स्वतंत्र राजनीति की जरूरत

शकील अहमद खान ने साफ शब्दों में कहा कि बिहार में कांग्रेस को अपनी अलग राजनीतिक पहचान बनानी चाहिए. उनके मुताबिक, आरजेडी के साथ गठबंधन के चलते कांग्रेस न तो विधानसभा में सीटों की संख्या बढ़ा सकी और न ही जमीनी स्तर पर संगठन को मजबूत कर पाई. उन्होंने कहा कि गठबंधन की वजह से पार्टी कार्यकर्ताओं में भ्रम की स्थिति बनी रही और कांग्रेस की भूमिका सीमित होकर रह गई. खान का मानना है कि पार्टी नेतृत्व को इस पूरे प्रयोग पर गंभीर आत्ममंथन करना चाहिए.

सीट बंटवारे और रणनीति पर सवाल

खान ने आरोप लगाया कि आरजेडी ने कांग्रेस को सीट बंटवारे से लेकर चुनावी रणनीति तक में हाशिये पर रखा. उनका कहना है कि कांग्रेस की बातों को गंभीरता से नहीं लिया गया, जिससे पार्टी का प्रदर्शन कमजोर रहा. गौरतलब है कि शकील अहमद खान खुद हालिया विधानसभा चुनाव में जेडीयू के दुलल चंद्र गोस्वामी से हार गए थे.

चुनावी आंकड़े क्या कहते हैं?

पिछले बिहार विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 61 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे, लेकिन उसे महज छह सीटों पर जीत मिली. इनमें से चार सीटें सीमांचल क्षेत्र की थीं, जिसे कांग्रेस का मजबूत गढ़ माना जाता है. वर्तमान में सीमांचल से कांग्रेस के दो सांसद और चार विधायक हैं, जबकि आरजेडी इस क्षेत्र में सिर्फ एक विधानसभा सीट जीत पाई और उसका कोई सांसद नहीं है. इन आंकड़ों ने कांग्रेस के भीतर गठबंधन को लेकर असंतोष और बढ़ा दिया है.

महागठबंधन की हार के बाद बदला मूड

पार्टी सूत्रों के अनुसार, बिहार में महागठबंधन की हार के बाद दिल्ली में हुई समीक्षा बैठक में कांग्रेस नेताओं ने लगभग एक सुर में आरजेडी के साथ गठबंधन जारी रखने का विरोध किया. कांग्रेस नेताओं का मानना है कि अगर पार्टी अकेले चुनाव लड़ती, तो उसकी सीटों की संख्या बेहतर हो सकती थी. उनका यह भी तर्क है कि बिहार में आरजेडी की छवि अब एक सीमित सामाजिक आधार वाली पार्टी के रूप में बनती जा रही है.

AIMIM को बाहर रखने पर भी विवाद

कांग्रेस के कुछ नेताओं ने दावा किया कि ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) को गठबंधन से बाहर रखने का खामियाजा पार्टी को सीमांचल में भुगतना पड़ा. उनके अनुसार, कड़वा और कस्बा जैसी अहम सीटें इसी वजह से हाथ से निकल गईं. सूत्रों का कहना है कि कांग्रेस AIMIM को गठबंधन में शामिल करना चाहती थी, लेकिन आरजेडी नेता तेजस्वी यादव इसके खिलाफ थे.

आरजेडी की प्रतिक्रिया

इन बयानों पर आरजेडी ने पलटवार किया है. आरजेडी नेता अरुण कुमार ने कहा कि गठबंधन के लिए पहल कांग्रेस की ओर से ही हुई थी. उन्होंने साफ कहा कि हर पार्टी को अपने फैसले लेने की आजादी है और अगर कांग्रेस बिहार में अकेले चुनाव लड़ना चाहती है, तो वह ऐसा कर सकती है.

आगे क्या?

कांग्रेस और आरजेडी के बीच बढ़ती तल्खी ने बिहार की राजनीति में नए समीकरणों के संकेत दे दिए हैं. आने वाले समय में यह देखना दिलचस्प होगा कि कांग्रेस वाकई स्वतंत्र रास्ता अपनाती है या फिर किसी नए गठबंधन की तलाश करती है.

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