पुत्र मोह में धृतराष्ट्र बन गए लालू ...RJD की बुरी हार के बाद बोले शिवानंद तिवारी, तेजस्वी को भी सुनाई खरी-खोटी
बिहार चुनाव में RJD की करारी हार के बाद तेजस्वी यादव पर परिवार और पार्टी दोनों ओर से सवाल उठ रहे हैं. पूर्व उपाध्यक्ष शिवानंद तिवारी ने तेजस्वी को कमजोर नेतृत्व का जिम्मेदार ठहराते हुए आरोप लगाया कि लालू यादव पुत्र मोह में निर्णय क्षमता खो चुके हैं.

बिहार : बिहार विधानसभा चुनाव में महागठबंधन की करारी हार के बाद RJD नेता तेजस्वी यादव पार्टी और परिवार दोनों स्तरों पर अभूतपूर्व दबाव में हैं. 35 सीटों पर सिमट चुकी विपक्षी गठबंधन की इस पराजय का ठीकरा अब सीधा तेजस्वी और उनकी सलाहकार टीम पर फोड़ा जा रहा है. आलोचकों का कहना है कि रणनीति, नेतृत्व शैली और टिकट वितरण में हुई गलतियों ने RJD को ऐतिहासिक नुकसान पहुंचाया.
बेटे के प्रति अंधे हो चुके हैं लालू
परिवारवाद के चलते RJD का नुकसान हो रहा
तिवारी ने 1970 के दशक के बिहार आंदोलन के दिनों को याद करते हुए कहा कि लालू की आकांक्षा शुरू से ही सीमित थी, और आज परिवारवाद के चलते RJD का नुकसान साफ दिखाई दे रहा है. उन्होंने आरोप लगाया कि तेजस्वी ने मतदाता सूची पुनर्निरीक्षण जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर संघर्ष का रास्ता नहीं चुना, बल्कि मुख्यमंत्री बनने के सपने देख रहे थे.
SIR को लेकर राहुल के साथ सड़क पर उतरे तेजस्वी
तिवारी का दावा है कि जब उन्होंने तेजस्वी को सलाह दी कि मतदाता सूची के कथित ‘हेरफेर’ के खिलाफ वे राहुल गांधी के साथ सड़क पर उतरें, तो तेजस्वी ने इसे नजरअंदाज कर दिया. उनके अनुसार यह आंदोलन RJD को बड़ा जनसमर्थन दिला सकता था, लेकिन तेजस्वी की निष्क्रियता और गलत सलाहकारों ने पार्टी को चुनावी मैदान में कमजोर कर दिया. तिवारी ने कहा कि उन्हें इसलिए उपाध्यक्ष पद से हटाया गया क्योंकि वे सच्चाई बोल रहे थे.
RJD ने संघर्ष की भावना को त्याग दिया
शिवानंद तिवारी ने अपने पोस्ट में बिहार आंदोलन का भी जिक्र किया जिसने लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार जैसे नेताओं को राष्ट्रीय स्तर पर उभारा. 1974–75 का यह आंदोलन गरीबी, बेरोजगारी और भ्रष्टाचार के खिलाफ एक व्यापक जनविद्रोह था. जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व वाला यह संघर्ष देश में आपातकाल लागू होने और बाद में पहली गैर-कांग्रेसी सरकार बनने की वजह बना. इसी आंदोलन से निकलने वाले नेता आज बिहार की राजनीति के केंद्र में हैं, और तिवारी का कहना है कि RJD ने उसी संघर्ष की भावना को त्याग दिया है.
RJD परिवारवाद और गुटबाजी में उलझती जा रही
पोस्ट में शिवानंद तिवारी ने उस नेता का भी जिक्र किया, जिसे लालू यादव अपने राजनीतिक आदर्श के रूप में देखते थे राम लखन सिंह यादव. ‘शेर-ए-बिहार’ कहे जाने वाले राम लखन सिंह पिछड़े वर्गों की शिक्षा और सामाजिक न्याय के बड़े पैरोकार थे. उन्होंने बिहार में कई शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना करवाई और समाज सुधार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. तिवारी का संकेत साफ था कि जहां लालू के आदर्श सामाजिक न्याय के पक्षधर थे, वहीं आज RJD परिवारवाद और गुटबाज़ी में उलझती जा रही है.
RJD के भीतर असंतोष और तेजस्वी की चुनौती
RJD की चुनावी हार ने पार्टी के अंदर छुपे असंतोष को सतह पर ला दिया है. शिवानंद तिवारी जैसे वरिष्ठ नेताओं के मुखर होने से यह स्पष्ट है कि तेजस्वी यादव न केवल राजनीतिक चुनौती से, बल्कि पारिवारिक और संगठनात्मक संकट से भी जूझ रहे हैं. आने वाले दिनों में यह विवाद पार्टी की दिशा और तेजस्वी की नेतृत्व क्षमता पर बड़ा प्रभाव डाल सकता है.


