महाराष्ट्र में शुरू हुई मल्हार सर्टिफिकेशन... मटन के बवाल में नितेश राणे ने क्यों छेड़ा ये हलाल और झटका मीट का नया विवाद?
महाराष्ट्र में हाल ही में नितेश राणे ने 'मल्हार सर्टिफिकेट' लॉन्च किया, जो हलाल और झटका मीट के बीच फर्क को बताता है. यह सर्टिफिकेशन खास तौर पर हिंदू दुकानदारों को झटका मटन बेचने की मंजूरी देता है, जिससे राजनीतिक और धार्मिक विवाद शुरू हो गया है. इस सर्टिफिकेशन को लेकर विपक्षी दलों ने तीखी आलोचना की है, और इसे धार्मिक विभाजन की ओर इशारा करने वाला कदम बताया है. क्या यह सर्टिफिकेशन सरकारी योजना है या कुछ और? जानिए इस विवाद के बारे में सबकुछ, जो महाराष्ट्र की सियासत में हलचल मचा रहा है.

Malhar Certification: महाराष्ट्र में इन दिनों हलाल और झटका मीट को लेकर राजनीति गरमाई हुई है. बीजेपी के नेता और महाराष्ट्र सरकार के मंत्री नितेश राणे ने हाल ही में एक नया विवाद खड़ा कर दिया. उन्होंने 'मल्हार सर्टिफिकेशन' की शुरुआत की, जो खासतौर पर हिंदू दुकानदारों को 'झटका मटन' बेचने के लिए प्रमोट करता है. अब सवाल उठ रहे हैं कि इस पहल का क्या उद्देश्य है और क्या यह महाराष्ट्र में धार्मिक विभाजन को बढ़ावा देने वाला कदम हो सकता है?
क्या है मल्हार सर्टिफिकेशन?
नितेश राणे ने 'मल्हार सर्टिफिकेशन' लॉन्च किया है, जो हिंदू दुकानदारों को 'झटका मटन' बेचने के लिए एक प्रमाण पत्र प्रदान करेगा. उनका कहना है कि यह सर्टिफिकेशन सिर्फ उन्हीं दुकानों को मिलेगा, जो झटका मटन बेचेंगी. झटका मटन एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें जानवर को एक ही वार में मार दिया जाता है. इसका समर्थन करने वालों का मानना है कि यह तरीका जानवरों को कम पीड़ा पहुंचाता है. राणे ने हिंदू समुदाय से अपील की है कि वे सिर्फ इन सर्टिफाइड दुकानों से ही मटन खरीदें.
हलाल और झटका मीट में अंतर
'हलाल' मीट और 'झटका' मीट के बीच एक महत्वपूर्ण अंतर होता है. हलाल मीट उस प्रक्रिया से प्राप्त होता है, जिसमें जानवर को एक खास धार्मिक तरीके से मारा जाता है और खून को शरीर से बाहर निकाला जाता है. यह प्रक्रिया मुस्लिम समुदाय द्वारा प्रचलित है और इसे धार्मिक दृष्टि से उचित माना जाता है. वहीं, झटका मटन में जानवर को तेज़ी से एक ही वार में मारा जाता है, ताकि उसे ज्यादा दर्द न हो. यह प्रक्रिया हिंदू समुदाय में प्रचलित है और इसे कुछ लोगों द्वारा बेहतर माना जाता है.
विवाद और विपक्ष की प्रतिक्रिया
नितेश राणे के इस कदम के बाद विपक्षी दलों ने इसे तीखा विरोध किया है. उनका कहना है कि इस तरह की पहल से समाज में धार्मिक विभाजन बढ़ सकता है. एनसीपी के नेता रोहित पवार ने सवाल उठाया कि अगर यह एक सरकारी योजना है तो मुख्यमंत्री ने इसे क्यों लॉन्च नहीं किया? वहीं, कांग्रेस के नेताओं का कहना है कि इस सर्टिफिकेशन का उद्देश्य केवल चुनावी लाभ हासिल करना हो सकता है.
कुछ लोग तो यह भी सवाल उठा रहे हैं कि यह प्रमाणन किसकी निजी कंपनी द्वारा चलाया जा रहा है और इसके पीछे किसी राजनीतिक दल का स्वार्थ हो सकता है.
क्या है असल उद्देश्य?
इस पहल के पीछे जो उद्देश्य है, वह अभी तक स्पष्ट नहीं हुआ है. कई लोग इसे एक चुनावी रणनीति मान रहे हैं, खासकर जब राज्य में पुणे जिला पंचायत चुनाव नजदीक हैं. हालांकि, राज्य सरकार ने इस पहल को अभी तक आधिकारिक रूप से समर्थन नहीं दिया है. इससे यह सवाल खड़ा हो गया है कि क्या यह सचमुच एक सरकारी योजना है या यह कुछ और है?
धार्मिक विभाजन का खतरा
विशेषज्ञों का कहना है कि इस सर्टिफिकेशन की शुरुआत से धार्मिक भावनाओं को आहत करने का खतरा हो सकता है. झटका मीट और हलाल मीट का संबंध हिंदू और मुस्लिम समुदाय से जुड़ा हुआ है. अगर यह पहल पूरी तरह से हिंदू दुकानदारों तक सीमित रहती है, तो यह समाज में और अधिक तनाव पैदा कर सकता है.
इस मुद्दे पर राजनीति और धर्म का खेल खुलकर सामने आ चुका है, और इसे लेकर बहस तेज हो गई है. नितेश राणे की यह पहल किस दिशा में जाएगी, यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा, लेकिन इसने महाराष्ट्र की राजनीति को और अधिक गरमा दिया है.
इससे साफ है कि मटन के एक सर्टिफिकेट को लेकर शुरू हुआ विवाद, राजनीति और धार्मिक पहचान से जुड़ा हुआ मुद्दा बन चुका है. क्या यह सच में समाज में एकता बढ़ाने वाला कदम होगा या फिर यह विभाजन को बढ़ावा देगा, यह देखने वाली बात होगी.