बिहार विधानसभा चुनाव से पहले नीतीश कुमार का बडा दांव, अगड़ी जातियों के लिए बनाया उच्च जाति आयोग, जानें कौन-कौन होंगे सदस्य
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने आगामी विधानसभा चुनाव से पहले अगड़ी जातियों के विकास हेतु "उच्च जाति आयोग" के गठन की घोषणा की है. आयोग का उद्देश्य अगड़ी जातियों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति सुधारना है. महाचंद्र प्रसाद सिंह को अध्यक्ष और राजीव रंजन को उपाध्यक्ष बनाया गया है. यह कदम जाति जनगणना के बाद राजनीतिक संतुलन साधने की रणनीति माना जा रहा है. अल्पसंख्यक आयोग का भी पुनर्गठन हुआ है, जिससे सरकार का हर वर्ग को साधने का संकेत मिलता है.

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इस साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले एक बड़ा राजनीतिक दांव खेला है. उन्होंने राज्य में अगड़ी जातियों के विकास के लिए एक विशेष आयोग बनाने की घोषणा की है. इस आयोग को "उच्च जाति आयोग" नाम दिया गया है और इसका उद्देश्य अगड़ी जातियों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति को सुधारना तथा उन्हें आवश्यक योजनाओं का लाभ दिलाना है.
बीजेपी-जेडीयू गठबंधन की साझेदारी दिखी आयोग में
इस आयोग की अध्यक्षता भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के वरिष्ठ नेता महाचंद्र प्रसाद सिंह को सौंपी गई है, जबकि उपाध्यक्ष के तौर पर जनता दल यूनाइटेड (जदयू) के मुख्य प्रवक्ता राजीव रंजन को नियुक्त किया गया है. आयोग का कार्यकाल तीन वर्षों के लिए निर्धारित किया गया है. इस नियुक्ति से यह स्पष्ट है कि भाजपा-जदयू गठबंधन आगामी चुनावों को ध्यान में रखते हुए विभिन्न वर्गों को संतुलन देने की कोशिश कर रहा है.
पुराने सवर्ण आयोग का पुनर्गठन
गौरतलब है कि बिहार में पहले भी एक सवर्ण आयोग कार्यरत था, जिसे अब पुनर्गठित किया गया है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अपने संबोधन में कहा कि यह आयोग अगड़ी जातियों के कल्याण के लिए योजनाएं तैयार करेगा और उनकी समस्याओं को सरकार के समक्ष रखेगा.
अल्पसंख्यक आयोग में भी बदलाव
इससे एक दिन पहले ही राज्य सरकार ने अल्पसंख्यक आयोग का भी पुनर्गठन किया था. गुलाम रसूल बल्यावी, जो जदयू के पूर्व राज्यसभा सांसद हैं, उन्हें इस आयोग का अध्यक्ष नियुक्त किया गया है. बल्यावी हाल ही में वक्फ कानून के खिलाफ अपनी आवाज़ बुलंद कर रहे थे. उनकी नियुक्ति को अल्पसंख्यक समुदाय को साधने की रणनीति के रूप में देखा जा रहा है.
जाति जनगणना के बाद अगला कदम
बिहार वह पहला राज्य था जिसने जाति आधारित जनगणना पूरी की और उसके आंकड़े सार्वजनिक किए. इस पृष्ठभूमि में अगड़ी जातियों के लिए आयोग का गठन राजनीतिक रूप से काफी अहम माना जा रहा है. इससे यह संकेत मिलता है कि सरकार अब हर जाति समूह को ध्यान में रखते हुए उनकी सामाजिक स्थिति सुधारने की दिशा में काम कर रही है.
राजनीतिक मायने और संभावित असर
बिहार में इस साल के अंत में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं. ऐसे में यह निर्णय सीधा राजनीतिक असर डाल सकता है. राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह कदम नीतीश कुमार और उनके गठबंधन की उस रणनीति का हिस्सा है, जिसमें वे विभिन्न सामाजिक वर्गों को संतुलित प्रतिनिधित्व देकर अपना जनाधार मजबूत करना चाहते हैं.


