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बिहार चुनाव से पहले सियासी ड्रामा.. टिकट के चक्कर में नेताओं का 'प्लान B' शुरू

बिहार में विधानसभा चुनाव से पहले सियासी हलचल अपने चरम पर है. टिकट की दौड़ और राजनीतिक समीकरणों के खेल में नेता जमकर पाला बदल रहे हैं. हर दिन नए चेहरे, नई पार्टियों के रंग में रंगे नजर आ रहे हैं, जिससे सियासी गलियारों में रोमांच और अटकलों का बाजार गर्म है.

Goldi Rai
Edited By: Goldi Rai

Bihar Elections 2025: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के नजदीक आते ही राज्य की राजनीति में हलचल तेज हो गई है. टिकट की दौड़ में पिछड़ने का डर नेताओं को पार्टी बदलने पर मजबूर कर रहा है. यही वजह है कि राज्य में एक नया राजनीतिक खेल 'मिशन दल-बदल' के रूप में सामने आ रहा है, जिसमें नेता अब अपनी निष्ठा नहीं बल्कि टिकट और चुनावी जीत की संभावना के आधार पर पार्टियां बदल रहे हैं. राजनीति में निष्ठा से ज्यादा अब 'टिकट' पर फोकस है, और यही वजह है कि चुनावी मौसम में कई नेता विचारधारा की बजाय सत्ता की गाड़ी में सवार होने के लिए दल बदलने का रास्ता अपना रहे हैं.

बिहार की राजनीति में 'दल बदल मिशन'

जहां टिकट पाने के लिए नेताओं की निष्ठा पार्टी से नहीं, बल्कि संभावित चुनावी जीत से जुड़ने लगी है. चुनाव के पहले दल बदलना अब सामान्य बात बन गई है. यदि किसी नेता को अपनी पार्टी से टिकट मिलने की संभावना नहीं दिखती, तो वह 'प्लान-B' के तहत दल बदलने का रास्ता अपना लेता है. नेताओं के बीच पार्टी बदलने की रेस में प्रमुख दलों- JDU, BJP, RJD, और कांग्रेस के नेता शामिल हैं. नामचीन नेताओं जैसे रामचंद्र सदा, डॉ. अच्युतानंद, डॉ. रेणु कुशवाहा, और अन्य ने पार्टी बदलने की प्रक्रिया को अपना लिया है.

टिकट के लिए दल बदलने वाले प्रमुख नेता

राजनीतिक हलचल के बीच बिहार के कई नेता अपनी-अपनी पार्टी बदलने में जुटे हैं. यह बदलाव खास तौर पर उन नेताओं के लिए है जो टिकट की गारंटी चाहते हैं. कुछ नेताओं ने हाल ही में अपनी पार्टी बदली है.

  • रामचंद्र सदा - लोजपा से जदयू में.

  • डॉ. अच्युतानंद - लोजपा (रामविलास) से कांग्रेस में.

  • डॉ. रेणु कुशवाहा - लोजपा (रामविलास) से आरजेडी में.

  • विनोद कुमार सिंह - जदयू से कांग्रेस में.

  • डॉ. अशोक राम - कांग्रेस से जदयू में.

  • डॉ. रविंद्र चरण यादव - बीजेपी से कांग्रेस में.

पार्टी बदलने की वजह

इन नेताओं के पार्टी बदलने के पीछे मुख्य कारण चुनावी टिकट की अनिश्चितता है. पिछले चालीस दिनों में कई विधायक और मंत्री अपनी-अपनी पार्टियों से इस्तीफा देकर दूसरे-दूसरे दलों में शामिल हो चुके हैं. हर नेता के लिए टिकट पाने का डर और अपनी पार्टी से उम्मीद की कमी असली कारण है.

  • डॉ. अच्युतानंद ने 30 जून को लोजपा (रामविलास) से इस्तीफा देकर कांग्रेस जॉइन किया क्योंकि उन्हें महनार से टिकट मिलने की संभावना नहीं थी.

  • डॉ. रेणु कुशवाहा जो पहले जदयू, फिर भाजपा और लोजपा में रह चुकी थीं, अब राजद में शामिल हो गईं, जहां उन्हें उम्मीद है कि नई राजनीति में उन्हें जगह मिलेगी.

  • रामचंद्र सदा जो पहले लोजपा में थे, अब फिर से जदयू में लौट आए हैं.

  • विनोद कुमार सिंह जदयू के एमएलसी रहे हैं, अब कांग्रेस के टिकट पर फुलपरास से चुनाव लड़ना चाहते हैं.

  • डॉ. अशोक राम जो छह बार कांग्रेस से विधायक रहे हैं, अब जदयू में शामिल हो गए हैं, जबकि कुशेश्वरस्थान सीट पहले से जदयू के पास है.

  • डॉ. रविंद्र चरण यादव ने 4 अगस्त को बीजेपी छोड़कर कांग्रेस जॉइन की.

‘सीट’ और ‘सेटिंग’ की राजनीति

वरिष्ठ पत्रकार अरुण पांडेय का कहना है, 'आज के दौर में सिर्फ सीट जीतने की क्षमता ही मायने रखती है. जब नेताओं को लगता है कि टिकट मिलने में दिक्कत हो सकती है, तो वे पार्टी बदलने का मन बना लेते हैं.' उन्होंने यह भी बताया कि इस बार अनुमान है कि 50 से अधिक विधायकों का टिकट कट सकता है, और ऐसे में यह स्वाभाविक है कि नेता दूसरी पार्टी की जाएंगे. साथ ही सुनील पांडेय भी इस बात से भी सहमत हैं कि चुनावी मौसम में दल बदल एक सामान्य प्रक्रिया बन चुका है. वे इसे 'राजनीतिक महोत्सव' मानते हैं, जिसमें नेता अपनी जीत की रणनीति के हिसाब से पार्टी बदलते हैं. 'चुनाव से पहले नेता खुद को जीत के फार्मूले में फिट करने के लिए पार्टी बदलते हैं. कुछ नेता हर चुनाव से पहले अपना झंडा और पार्टी बदलते हैं.'

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07 August 2025, 02:01 PM IST

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