'वह आदमी चला गया, नौकर की कमीज' जैसी कविता कहानी लिखने वाले कवि विनोद कुमार शुक्ल का निधन, रायपुर एम्स में ली अंतिम सांस
प्रख्यात साहित्यकार विनोद कुमार शुक्ल का 89 वर्ष की उम्र में रायपुर एम्स में निधन हो गया. छत्तीसगढ़ की मिट्टी से जुड़े उनके संवेदनशील लेखन ने कविता और कथा को नई दिशा दी. हाल ही में उन्हें ज्ञानपीठ पुरस्कार मिला था.

रायपुरः प्रख्यात कवि, कथाकार और विचारशील लेखक विनोद कुमार शुक्ल का रायपुर स्थित एम्स में निधन हो गया. वे 89 वर्ष के थे और लंबे समय से अस्वस्थ चल रहे थे. इलाज के लिए उन्हें एम्स में भर्ती कराया गया था, जहां उन्होंने अंतिम सांस ली. उनके निधन से न केवल छत्तीसगढ़ बल्कि पूरे देश का साहित्यिक जगत शोक में डूब गया है.
छत्तीसगढ़ की मिट्टी से जुड़ा साहित्यकार
विनोद कुमार शुक्ल का जन्म 1 जनवरी 1937 को छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव में हुआ था. हालांकि, उन्होंने जीवन का बड़ा हिस्सा रायपुर में बिताया. छत्तीसगढ़ की मिट्टी, प्रकृति और आम जनजीवन उनकी रचनाओं की आत्मा रहे. उनकी भाषा में आडंबर नहीं था, बल्कि सहजता और गहराई का दुर्लभ संगम देखने को मिलता था. वे बहुत धीमे और संकोच से बोलने वाले व्यक्ति थे, लेकिन उनकी लिखी पंक्तियां पाठकों के भीतर लंबे समय तक गूंजती रहती थीं.
शिक्षा और अध्यापन से साहित्य तक का सफर
विनोद कुमार शुक्ल ने अपनी उच्च शिक्षा जबलपुर कृषि विश्वविद्यालय से पूरी की. कृषि विज्ञान की पढ़ाई के दौरान ही उनका जुड़ाव मिट्टी, पेड़-पौधों और प्रकृति से और गहरा हुआ, जो आगे चलकर उनकी साहित्यिक संवेदना का आधार बना. उन्होंने प्राध्यापक के रूप में भी कार्य किया और साथ ही लेखन को अपना जीवन समर्पित कर दिया. करीब पांच दशकों तक वे निरंतर लिखते रहे और हिंदी साहित्य को नई दृष्टि दी.
कविता और कहानी की सीमाएं तोड़ने वाला रचनाकार
शुक्ल जी ने अपने साहित्यिक सफर की शुरुआत कविता-संग्रह ‘लगभग जयहिंद’ से की, लेकिन बहुत जल्द उन्होंने कविता और कहानी के बीच की पारंपरिक सीमाओं को धुंधला कर दिया. उनकी रचनाओं में गद्य और पद्य का ऐसा मेल देखने को मिलता है, जो हिंदी साहित्य में विरल है. उनकी कविताएं जैसे ‘वह आदमी चला गया, नया गरम कोट पहिनकर विचार की तरह’, ‘सब कुछ होना बचा रहेगा’ और ‘आकाश धरती को खटखटाता है’ ने कविता को एक नया सौंदर्य और संवेदना दी.
कथा साहित्य में अमिट छाप
कहानी और उपन्यास के क्षेत्र में भी विनोद कुमार शुक्ल का योगदान अतुलनीय है. उनका उपन्यास ‘नौकर की कमीज’ हिंदी साहित्य का एक कालजयी ग्रंथ माना जाता है, जिसने साधारण जीवन की असाधारण व्याख्या की. ‘दीवार में एक खिड़की रहती थी’, ‘पेड़ पर कमरा’ और ‘महाविद्यालय’ जैसी रचनाओं में उन्होंने रोजमर्रा के अनुभवों को गहरे दार्शनिक अर्थों से जोड़ा. उनकी कहानियों की दुनिया बाहर से भले ही साधारण लगे, लेकिन भीतर उतरते ही वह अत्यंत गहन और संवेदनशील प्रतीत होती है.
पुरस्कारों से सजा साहित्यिक जीवन
विनोद कुमार शुक्ल को उनके साहित्यिक योगदान के लिए अनेक प्रतिष्ठित पुरस्कारों से सम्मानित किया गया. उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार, गजानन माधव मुक्तिबोध फेलोशिप, रघुवीर सहाय स्मृति पुरस्कार, राष्ट्रीय मैथिलीशरण गुप्त सम्मान और शिखर सम्मान प्राप्त हुआ. हाल ही में उन्हें हिंदी साहित्य का सर्वोच्च सम्मान ज्ञानपीठ पुरस्कार भी दिया गया था, जो उनके जीवन की एक बड़ी उपलब्धि रही.


