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Video: न्यूजीलैंड की सड़कों पर फाड़े गए हिंदू झंडे, सोशल मीडिया पर फूटा गुस्सा

Hindu Flag New Zealand: ऑकलैंड की सड़कों पर हुए एक विवादित प्रदर्शन में हिंदू, सिख और LGBTQ+ समुदायों के झंडों की बेअदबी ने न्यूजीलैंड में धार्मिक असहिष्णुता और सामाजिक विभाजन की चिंता को गहरा दिया है. ईसाई नेता ब्रायन तमाकी की अगुवाई में निकाली गई इस रैली ने बहुसांस्कृतिक समाज की जड़ों को झकझोर दिया है, जिस पर सरकार और समुदायों ने तीखी प्रतिक्रिया दी है.

Shivani Mishra
Edited By: Shivani Mishra

Hindu Flag New Zealand: न्यूज़ीलैंड में धार्मिक असहिष्णुता की लहर ने एक बार फिर बहुसांस्कृतिक समाज के ढांचे को हिला कर रख दिया है. ऑकलैंड में एक विवादित प्रदर्शन के दौरान हिंदू, सिख और LGBTQ+ समुदायों के झंडों को फाड़ा, रौंदा और जलाया गया, जिससे देशभर में गुस्से की लहर फैल गई है. यह घटना ब्रायन तमाकी नामक कट्टरपंथी ईसाई नेता और उनके समर्थकों द्वारा आयोजित एक रैली के दौरान घटी, जिसने न्यूजीलैंड की सामाजिक एकता पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं.

इस प्रदर्शन में न सिर्फ धार्मिक प्रतीकों को अपमानित किया गया, बल्कि देश को ईसाई राष्ट्र घोषित करने और आव्रजन कानूनों को कड़ा करने की मांग ने भी आग में घी का काम किया. सरकार और विभिन्न समुदायों ने इस नफरत फैलाने वाले अभियान की कड़ी निंदा की है, साथ ही सभी धर्मों के प्रति सम्मान और सहिष्णुता बनाए रखने की अपील की है.

क्यों भड़की ये नफरत की आग?

21 जून को ऑकलैंड के Aotea स्क्वायर में ब्रायन तमाकी के नेतृत्व में एक रैली का आयोजन किया गया, जिसमें सैकड़ों समर्थकों ने भाग लिया. यह प्रदर्शन न्यूज़ीलैंड को "आधिकारिक तौर पर ईसाई राष्ट्र" घोषित करने की मांग के साथ शुरू हुआ था, लेकिन जल्द ही यह उग्र रूप ले बैठा. प्रदर्शनकारियों ने हिंदू, सिख, इस्लाम, बौद्ध धर्म और LGBTQ+ समुदायों के झंडों को फाड़ा, कुचला और जलाया. इसके अलावा, कुछ ने मुख्यधारा मीडिया के बैनरों को भी निशाना बनाया.

प्रदर्शन में "No immigration without assimilation" जैसे नारे लगाए गए और "NZ’s official religion: Christianity" लिखे बैनर लेकर प्रदर्शनकारियों ने क्वीन्स स्ट्रीट पर मार्च किया. इस दौरान उनके समर्थकों द्वारा परंपरागत माओरी हाका भी प्रस्तुत किया गया, जिस पर सांस्कृतिक अपमान और अनुचित उपयोग के आरोप लगे हैं.

सरकार और समुदायों की प्रतिक्रिया

इस घटना के बाद न्यूज़ीलैंड सरकार और विभिन्न समुदायों के नेताओं ने एक स्वर में इस घृणा अभियान की निंदा की. उप प्रधानमंत्री डेविड सीमोर ने इस प्रदर्शन को अन-कीवी करार देते हुए कहा कि देश की विविधता और सहिष्णुता ही उसकी पहचान है. उन्होंने तमाकी की आप्रवासन पर पाबंदी और धर्मनिरपेक्षता खत्म करने की मांग को सिरे से खारिज कर दिया.

सरकार ने यह स्पष्ट किया है कि देश में सभी धर्मों और समुदायों को समान अधिकार प्राप्त हैं और किसी भी प्रकार की असहिष्णुता के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी.

छिपे हुए सामाजिक तनाव

यह घटना केवल एक प्रदर्शन तक सीमित नहीं है, बल्कि यह न्यूज़ीलैंड के भीतर लंबे समय से पल रहे सामाजिक तनावों को उजागर करती है. कट्टरपंथी ईसाई समूहों और बहुसांस्कृतिक समुदायों के बीच बढ़ती खाई अब सार्वजनिक रूप में सामने आ रही है. प्रदर्शनकारियों द्वारा सख्त आप्रवासन नीति की मांग यह संकेत देती है कि देश की बदलती जनसांख्यिकी को लेकर एक वर्ग में असुरक्षा का भाव गहराता जा रहा है.

एक रिपोर्ट के अनुसार, 2020 से अब तक दर्ज की गई 19,589 घृणास्पद घटनाओं में से लगभग 73% नस्ल या जातीयता आधारित थीं, जबकि धर्म, यौन झुकाव और लिंग पहचान से जुड़े मामलों की संख्या भी सैकड़ों में रही.

सांप्रदायिक सौहार्द की परीक्षा

न्यूज़ीलैंड में इस प्रकार की घटनाएं न सिर्फ उसकी वैश्विक छवि को धूमिल करती हैं, बल्कि यहां बसे प्रवासी समुदायों के मन में भय और असुरक्षा की भावना भी भर देती हैं. हिंदू और सिख समुदायों ने इसे न केवल धार्मिक प्रतीकों का अपमान बताया है, बल्कि इसे सामाजिक बंटवारे की एक खतरनाक साजिश भी करार दिया है.

सरकार और समाज के जिम्मेदार वर्गों के लिए यह समय है कि वे एकजुट होकर इस तरह की नफरत भरी गतिविधियों को रोकें और बहुसांस्कृतिक ताने-बाने को सुरक्षित रखें.

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26 June 2025, 02:51 PM IST

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