पोप फ्रांसिस हर जगह लाल जूते क्यों पहनते थे? क्या है इसके पीछे की दिलचस्प कहानी
88 वर्षीय पोप फ्रांसिस का वेटिकन में निधन हो गया, जिनकी सादगीपूर्ण जीवनशैली और लाल जूतों की अनोखी परंपरा हमेशा याद की जाएगी.

ईसाई समुदाय के सबसे बड़े धर्म गुरु पोप फ्रांसिस का आज निधन हो गया. 88 वर्ष की आयु में उन्होंने वेटिकन स्थित अपने आवास कासा सांता मार्टा में अंतिम सांस ली. पोप फ्रांसिस लंबे समय से बीमार चल रहे थे और उनके निधन की जानकारी वेटिकन ने एक आधिकारिक बयान के माध्यम से साझा की. उनके निधन से ना केवल धार्मिक जगत, बल्कि पूरी दुनिया में शोक की लहर दौड़ गई है.
पोप फ्रांसिस हमेशा अपने सादगीपूर्ण जीवन, सामाजिक न्याय के लिए समर्पण और विशिष्ट पहनावे को लेकर चर्चाओं में रहे. खासकर, उनके लाल जूते हमेशा मीडिया की सुर्खियों का हिस्सा रहे. उनके निधन के बाद एक बार फिर ये सवाल चर्चा में है कि आखिर पोप हमेशा लाल जूते ही क्यों पहनते थे?
लाल जूतों की परंपरा
कैथोलिक परंपरा में लाल रंग को यीशु मसीह की शहादत और धार्मिक जुनून का प्रतीक माना जाता है. ऐसा कहा जाता है कि ये रंग उन शहीदों के रक्त का प्रतिनिधित्व करता है जिन्होंने सदियों से ईसाई धर्म के लिए अपने प्राण न्योछावर किए. पोप द्वारा लाल जूते पहनना ना केवल आध्यात्मिक परंपरा को दर्शाता है, बल्कि ये चर्च की विरासत से जुड़ा एक ऐतिहासिक प्रतीक भी है.
2003 में एक खास मोची के साथ हुई थी शुरुआत
लाल जूतों की ये परंपरा साल 2003 में शुरू हुई थी, जब इटली के मशहूर मोची एंटोनियो अरेलानो ने वेटिकन के लिए खास लाल चमड़े के जूते तैयार किए. सबसे पहले इन्हें पोप बेनेडिक्ट XVI ने पहना और फिर पोप फ्रांसिस ने भी इस परंपरा को अपनाया. रिपोर्ट्स के अनुसार, अरेलानो ने बताया कि जब उन्होंने आम दर्शकों के बीच पोप को जूते भेंट किए, तो पोप ने उन्हें पहचानते हुए कहा, ये मेरा मोची है. ये पल उनके लिए बेहद गौरवपूर्ण था.
पोप फ्रांसिस 2013 में पोप बेनेडिक्ट XVI के इस्तीफे के बाद चर्च के सर्वोच्च पद पर आसीन हुए थे. वे इतिहास के पहले लैटिन अमेरिकी पोप थे. उन्होंने हमेशा सादगी, विनम्रता और आम जनता से जुड़ाव को प्राथमिकता दी. ऐसा कहा जाता है कि पोप बनने से पहले उन्होंने चर्च से कभी एक पैसा भी नहीं लिया और हमेशा समाज के वंचित वर्गों की सेवा में समर्पित रहे.


