धर्मेंद्र की आखिरी फिल्म इक्कीस का फर्स्ट लुक जारी, अगस्त्य नंदा के पिता का रोल...जानें कब थिएटर में देगी दस्तक
धर्मेंद्र की अंतिम फिल्म ‘इक्कीस’ में उनका पहला लुक दर्शकों को गहराई से छू रहा है. वे ब्रिगेडियर एम. एल. खेतरपाल की भूमिका में बेटे अरुण खेतरपाल के बलिदान का गर्व और दर्द समेटे दिखाई देते हैं. श्रीराम राघवन निर्देशित इस फिल्म में अगस्त्य नंदा मुख्य भूमिका निभा रहे हैं.

मुंबई : धर्मेंद्र की आने वाली फिल्म ‘इक्कीस’ से उनका पहला लुक सामने आते ही सिनेमाप्रेमियों के बीच एक अनोखी भावनात्मक लहर दौड़ गई. मैडॉक फ़िल्म्स द्वारा जारी किए गए इस पोस्टर में धर्मेंद्र ब्रिगेडियर एम. एल. खेतरपाल की भूमिका में दिखते हैं एक ऐसे पिता, जिनका 21 वर्षीय बेटा, अरुण खेतरपाल, 1971 के भारत-पाक युद्ध में अदम्य साहस दिखाते हुए शहीद हुआ था. पोस्टर में उनके चेहरे पर उभरी थकान, गहरी खामोशी और आंखों में भरा गर्व व पीड़ा, एक ऐसे पिता की कहानी कहती है जिसने न सिर्फ़ बेटे को पाला, बल्कि एक वीर को जन्म दिया.
आपको बता दें कि निर्देशक श्रीराम राघवन की इस फिल्म में अगस्त्य नंदा अरुण खेतरपाल के किरदार में दिखाई देंगे. युवा पराक्रम, देशभक्ति और अटूट साहस की यह कहानी 25 दिसंबर 2025 को रिलीज होने जा रही है. फिल्म का मकसद केवल युद्ध को दिखाना नहीं, बल्कि उस परिवार की भावनाओं को भी समझाना है, जो देश के लिए अपना सबकुछ न्योछावर कर देता है. धर्मेंद्र का लुक एक ऐसी पीढ़ी की विरासत को भी दर्शाता है, जहां से अगली पीढ़ी अगस्त्य अब इस अमर कथा को आगे बढ़ाती है.
पहले लुक ने फैंस के दिलों में गहरी छाप छोड़ी
धर्मेंद्र के इस पहले लुक ने लोगों के दिलों में इसलिए भी गहरी छाप छोड़ी है क्योंकि यह फ़िल्म उनके निधन के बाद रिलीज़ होगी. इस कारण ‘इक्कीस’ अब सिर्फ़ एक युद्ध-आधारित फिल्म नहीं रही; यह उनके लिए एक भावनात्मक विदाई बन गई है. ब्रिगेडियर खेतरपाल की भूमिका में उनके चेहरे की हल्की झुकान, आंखों की नमी और भीतर छिपा हुआ दर्द आज दर्शकों के लिए और भी अर्थपूर्ण हो उठता है, क्योंकि वे भी एक ऐसी ही गहरी कमी महसूस कर रहे हैं. उनका यह किरदार अब एक कलाकार का अंतिम प्रणाम जैसा बन गया है एक ऐसा अभिनंदन, जो धीरज, संवेदना और विरासत से भरा है.
एक अमर कथा, दो अमर नायकों का सम्मान
आज जब दर्शक फिल्म के रिलीज़ का इंतज़ार कर रहे हैं, ‘इक्कीस’ एक नयी ज़िम्मेदारी उठाती दिखाई देती है. यह न सिर्फ़ अरुण खेतरपाल के शौर्य को याद करने का अवसर है, बल्कि धर्मेंद्र की असाधारण अभिनय यात्रा का अंतिम अध्याय भी बन चुकी है. उनकी अंतिम झलक अब एक समय में थमी हुई स्मृति बन गई है यह याद दिलाती है कि महान कलाकार कभी जाते नहीं, वे अपनी कहानियों, किरदारों और भावनाओं में हमेशा जीवित रहते हैं.
क्रिसमस पर आने वाली यह फिल्म अब सिर्फ़ एक युद्ध-नाटक नहीं, बल्कि साहस, बलिदान, प्रेम और सिनेमा की उस शक्ति का उत्सव होगी, जो नायकों को हमेशा जीवित रखती है परदे पर भी और दिलों में भी.


