'मैं सभी धर्मों का सम्मान करता हूं', खजुराहो मूर्ति विवाद पर CJI बीआर गवई ने दी सफाई
खजुराहो मंदिर विवाद में टिप्पणी को लेकर विवाद में आए CJI बी.आर. गवई ने सफाई दी कि उनकी बात को गलत पेश किया गया. उन्होंने कहा कि वे सभी धर्मों का सम्मान करते हैं. विवादित याचिका को प्रचार हित प्रेरित बताकर खारिज किया और संविधान की धर्मनिरपेक्षता बनाए रखने की प्रतिबद्धता दोहराई.

भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) बी.आर. गवई उस समय विवादों में घिर गए जब उन्होंने मध्य प्रदेश के खजुराहो स्थित जवारी मंदिर में भगवान विष्णु की मूर्ति के पुनर्निर्माण की याचिका पर टिप्पणी करते हुए याचिकाकर्ता से कहा था कि आप अगर भगवान विष्णु के सच्चे भक्त हैं तो स्वयं उनसे प्रार्थना करें. इस बयान को कई लोगों ने सोशल मीडिया पर आपत्तिजनक बताते हुए आलोचना शुरू कर दी.
सीजेआई ने दी सफाई
गुरुवार को विवाद बढ़ने के बाद सीजेआई गवई ने खुद सामने आकर सफाई दी. उन्होंने कहा कि उनकी टिप्पणी को सोशल मीडिया पर तोड़-मरोड़ कर पेश किया गया है और उनका ऐसा कोई इरादा नहीं था जिससे किसी की धार्मिक भावनाएं आहत हों. उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि मैं सभी धर्मों का सम्मान करता हूं. किसी ने मुझे बताया कि मेरी बात को गलत ढंग से पेश किया जा रहा है."
याचिका को बताया प्रचार हित से प्रेरित
मूल मामला उस याचिका से जुड़ा था जिसमें खजुराहो मंदिर परिसर में भगवान विष्णु की सात फीट ऊंची मूर्ति के पुनर्निर्माण और पुनःस्थापना की मांग की गई थी. इसे खारिज करते हुए सीजेआई गवई ने कहा था कि यह याचिका प्रचार हित से प्रेरित है, और यह मामला भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) के अधिकार क्षेत्र में आता है, न कि सर्वोच्च न्यायालय के.
शिव मंदिर जाकर पूजा करें वाला बयान भी चर्चा में
सीजेआई गवई ने याचिकाकर्ता से यह भी कहा था कि अगर वे पूजा करना चाहते हैं, तो पास के शिव मंदिर में जा सकते हैं, जहां खजुराहो का सबसे बड़ा शिवलिंग स्थित है. उन्होंने हल्के-फुल्के अंदाज में कहा था कि अगर आपको शैव धर्म से कोई आपत्ति नहीं है, तो आप वहाँ पूजा कर सकते हैं. इस बयान पर भी सोशल मीडिया पर मिली-जुली प्रतिक्रियाएं देखने को मिलीं.
धर्मनिरपेक्षता की पुनः पुष्टि
अपने स्पष्टीकरण में सीजेआई ने दोहराया कि भारत के संविधान के धर्मनिरपेक्ष स्वरूप को बनाए रखना उनकी प्राथमिकता है और न्यायपालिका का काम निष्पक्षता से करना होता है. उन्होंने कहा कि उनका उद्देश्य केवल यह था कि न्यायालय को उन मामलों में नहीं घसीटा जाना चाहिए जो धार्मिक आस्था के बजाय प्रशासनिक अधिकार क्षेत्र में आते हैं.


