5000 करोड़ खर्च, फिर भी नहीं जारी हुआ डेटा: कांग्रेस की SECC रिपोर्ट पर उठे सवाल
कांग्रेस पार्टी ने दशकों तक जातिगत जनगणना के मुद्दे को या तो नजरअंदाज किया या फिर सिर्फ राजनीतिक फायदे के लिए इस्तेमाल किया. आज भी पार्टी का रुख अस्पष्ट और टालमटोल वाला है. 1951 से ही कांग्रेस सरकारों ने जातिगत डेटा को जनगणना से बाहर रखा, जिससे ओबीसी और अन्य पिछड़े वर्गों को उनके अधिकारों से वंचित रखा गया.

जातिगत न्याय की बात करने वाली कांग्रेस पार्टी की असलियत कुछ और ही है. वर्षों से पार्टी ने जातिगत जनगणना के मुद्दे को या तो नजरअंदाज किया या फिर सिर्फ राजनीतिक फायदे के लिए इस्तेमाल किया. आज जब देश में सामाजिक न्याय को लेकर चर्चाएं जोरों पर हैं, जातिगत जनगणना की मांग जमीनी स्तर तक पहुंच चुकी है. लेकिन आजादी के बाद से अब तक कांग्रेस पार्टी इस मसले पर या तो चुप रही है या फिर जानबूझकर कोई ठोस कदम नहीं उठाया. वहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र सरकार ने इस दिशा में स्पष्ट और निर्णायक पहल की है.
जातिगत जनगणना पर दशकों की चुप्पी
आज़ादी के बाद जब 1951 की पहली जनगणना हुई, तो कांग्रेस सरकार ने जानबूझकर उसमें जाति आधारित आंकड़े शामिल नहीं किए. 1931 की जनगणना के बाद से अब तक कोई समग्र जातिगत डेटा देश के पास नहीं है. 1941 की जनगणना में शामिल आंकड़े भी द्वितीय विश्व युद्ध के कारण कभी सार्वजनिक नहीं किए गए.
ओबीसी की आवाज़ को किया नजरअंदाज
कांग्रेस ने ओबीसी और पिछड़े वर्गों की मांगों को हमेशा नजरअंदाज किया. क्षेत्रीय पार्टियों की बार-बार की अपील के बावजूद, कांग्रेस ने न तो जातिगत जनगणना कराई और न ही सामाजिक-आर्थिक योजनाओं में उनकी भागीदारी सुनिश्चित की.
यूपीए सरकार में भी जातिगत आंकड़े दबा दिए गए
2010 में तत्कालीन कानून मंत्री एम वीरप्पा मोइली ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से 2011 की जनगणना में जातिगत आंकड़े शामिल करने की सिफारिश की थी. लेकिन कांग्रेस सरकार ने इसे टाल दिया. इसके बदले सरकार ने सामाजिक-आर्थिक जाति जनगणना (SECC) करवाई, लेकिन इसे मुख्य जनगणना से अलग रखा गया, जिससे इसकी विश्वसनीयता पर सवाल उठे.
5000 करोड़ खर्च, फिर भी डेटा गायब
SECC पर करीब 5000 करोड़ रुपये खर्च हुए, लेकिन इसके जातिगत आंकड़े आज तक जारी नहीं किए गए. 2016 में केवल सामाजिक-आर्थिक डेटा जारी हुआ, जबकि जातिगत जानकारी को दबा दिया गया. इससे ओबीसी, एससी और एसटी वर्गों को उनके हक की जानकारी और भागीदारी से वंचित रखा गया.
आधा-अधूरा और राजनीतिक
कर्नाटक में 2015 में कांग्रेस सरकार ने 'सामाजिक-आर्थिक व शैक्षणिक सर्वे' कराया, लेकिन रिपोर्ट को 9 साल तक दबाए रखा गया. फरवरी 2024 में जब कांग्रेस नेतृत्व के दबाव में इसे जारी किया गया, तो डिप्टी सीएम डीके शिवकुमार ने खुलकर इसका विरोध किया, क्योंकि यह रिपोर्ट वोक्कालिगा और लिंगायत जैसी प्रभावशाली जातियों को असहज कर सकती थी.
बेकार के सर्वे पर बर्बाद हो रहा पैसा
जब तक एक पारदर्शी और वैज्ञानिक पद्धति से राष्ट्रीय स्तर पर जाति जनगणना नहीं होती, तब तक राज्यों द्वारा करवाए जा रहे राजनीतिक मंशा से प्रेरित अधूरे सर्वे सिर्फ पैसे की बर्बादी हैं. कांग्रेस शासित कर्नाटक इसका सबसे बड़ा उदाहरण है.
कांग्रेस ने पिछड़े वर्ग के नेताओं का किया अपमान
कांग्रेस का इतिहास backward वर्ग के नेताओं को दरकिनार करने से भरा है. सीताराम केसरी, ओबीसी नेता को पार्टी दफ्तर से बाहर निकाल कर सोनिया गांधी को जगह दी गई.वीरेन्द्र पाटिल, ओबीसी मुख्यमंत्री को बिना सम्मान के हटा दिया गया. जगजीवन राम, दलितों के सबसे बड़े नेता, कभी कांग्रेस में पूरी तरह आगे नहीं बढ़ने दिए गए. डॉ. भीमराव अंबेडकर को भी कांग्रेस ने हिंदू कोड बिल पर समर्थन नहीं दिया और उन्हें मंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा. रामनाथ कोविंद जब राष्ट्रपति बने तो सोनिया गांधी ने उन्हें एक बार भी शिष्टाचार भेंट नहीं दी. द्रौपदी मुर्मू के खिलाफ कांग्रेस ने न केवल समर्थन नहीं किया, बल्कि सिद्धारमैया ने उन्हें अपमानजनक रूप से संबोधित किया.
भाजपा का स्पष्ट और निर्णायक रुख
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा सरकार ने एससी वर्गों में आंतरिक आरक्षण पर राष्ट्रीय समिति बनाकर गंभीर पहल की. इसके बाद तेलंगाना और कर्नाटक जैसे कांग्रेस शासित राज्यों ने भी ऐसी कमेटियां बनाई, लेकिन कांग्रेस सरकारों ने रिपोर्ट बनवाकर फाइलों में दफन कर दीं. तेलंगाना की 2024 की SEEEPC रिपोर्ट फरवरी 2025 में पूरी हुई, जिसमें 98% जनसंख्या को कवर किया गया, जबकि कर्नाटक में नवंबर 2024 में बनी नागमोहन दास समिति की रिपोर्ट आज तक लागू नहीं की गई.
अब वक़्त है कार्रवाई का, बहानों का नहीं
जातिगत जनगणना सिर्फ आंकड़ों की बात नहीं है, यह सामाजिक न्याय और सभी वर्गों को उनके हक देने की दिशा में अहम कदम है. कांग्रेस ने दशकों तक देरी, गोपनीयता और राजनीतिक गणित का सहारा लिया, लेकिन अब देश को एक पारदर्शी और ईमानदार जातिगत जनगणना की जरूरत है.


